रविवार, 18 नवंबर 2012

भाजपा के तीन नेता रामप्रताप कासनिया,राजेन्द्र भादू और अशोक नागपाल क्यों डरते हैं और किससे डरते हैं?


टिप्पणी-करणीदानसिंह राजपूत


भारतीय जनता पार्टी की ओर से एडीएम के माध्यम से 9 नवम्बर 2012 को शहर की समस्याओं को दूर करने का सात सूत्री ज्ञापन राज्यपाल को भेजा गया। इस ज्ञापन में पीने के पानी के शुद्ध वितरण की मांग के साथ चेतावनी दी गई थी कि सात दिनों में सुधार नहीं किया गया तो आंदोलन किया जाएगा। शहर के तीस वार्डों में शुद्धपानी का वितरण होने की कोई सूचना जनता की ओर से तो नहीं है। किसी ने भी नहीं कहा कि पानी शुद्ध मिलने लगा है और निर्धारित समय पर मिलने लगा है। लाईनपार के क्षेत्र को सूर्याेदय नगर कहा जाता है,वहां तो पानी एक दिन छोड़ कर दिया जा रहा है और वह भी निर्धारित समय पर नहीं दिया जाता। भाजपा ही नहीं कोई अन्य पार्टी व नेता भी इस पर नहीं बोले। भाजपा ने आगे चतावनी के अनुरूप कोई आंदोलन शुरू नहीं किया। सच तो यह है कि आंदोलन की चेतावनी देना और आंदोलन करना दोनों में बहुत अंतर है।

यहां पर वे मांगे दी जा रही है जिनमें से किसी एक पर भी काई कार्यवाही हुई हो,ऐसा लग नहीं रहा है।

भाजपा ने जब यह ज्ञापन तैयार किया और जिन नेताओं ने यह उपखंड अधिकारी के मार्फत राज्यपाल को भिजवाया,वे सभी जानते हैं कि राज्यपाल को दिया गया ज्ञापन कितने दिन बाद जाकर कार्यवाही में आता है।

भाजपा यह ज्ञापन स्थानीय अधिकारियों को ही सौंपती जो मांगें स्थानीय स्तर पर हल हो सकती थी। भाजपा ने जो मांगें दी हैं वे हम दुबारा यहां बता रहे हैं, ताकि जनता समझ जाए कि इनमें से पानी शुद्ध दिए जाने,सीवरेज के 8 ईंची व्यास पे पाईपों के बजाय अधिक व्यास के पाईप लगाने,अस्पताल और यातायात की व्यवस्था सुधारने तथा बिजली के एवरेज बिलों को शुद्ध करने की मांगें तो स्थानीय स्तर पर ही हल हो सकती हें।


1.शहर में गंदे पेयजल का वितरण हो रहा है,इसमें 7 दिन में सुधार नहीं किया गया तो आंदोलन किया जाएगा। जनता

2.सीवरेज पाईप कम व्यास के हैं,बड़े व्यास वाले पाईप लगवाए जाऐं।

3.ग्वार को एनसीडीएक्स में शामिल किया जाए।

4.सबसीडी वाले एलपीजी सिलेंडरों की संख्या को सीमित नहीं किया जावे।

5.अस्पताल में अव्यवस्था को दूर किया जावे।

6.यातायात व्यवस्था में सुधार किया जावे।

7.बिजली के एवरेज बिल आ रहे हैं। इस व्यवस्था में सुधार किया जावे।

   

उक्त ज्ञापन देने वालों में जिला किसान मोर्चे के अध्यक्ष राजेन्द्र भादू, पूर्व राज्यमंत्री रामप्रताप कासनिया,जिला महिला मोर्चा अध्यक्ष रजनी मोदी,देहात अध्यक्ष नरेन्द्र घिंटाला,युवा मोर्चे के अध्यक्ष गौरव बलाना,नगर मंडल के प्रयागचंद अग्रवाल,परसराम भाटिया,धर्मदास सिंधी,पूरण कवातड़ा,पार्षद सत्यनारायण छींपा,मुरलीधर पारीक,सुभाष सैनी,गोपीराम दग्गल,प्रेमसिंह राठौड़,प्रभुदयाल,पवन औझा,त्रिलोक कलसी,ओम चाहर, सम्पत बगेरिया,घनश्याम सैनी आदि थे।

ज्ञापन देकर ये भूल गए कि 9 नवम्बर के ज्ञापन में 7 दिन की अवधि दी गई थी जो बीत गई है। ये सभी जानते हैं,मगर सच कुछ और है। भाजपा का  नगरमंडल काम नहीं कर सकने वाला,किसी भांति चलने फिरने में लाचार और जनता की आवाज नहीं सुनने वाला जिसे  लूला लंगड़ा बहरा कहा जा सकता है,उसके चार पांच पदाधिकारी कभी दो चार ज्यादा हो सकते हैं, झटपट बिना दूरगामी सोचे निर्णय लेते हैं। उसकी विज्ञप्ति जारी कर देते हैं कि फलां दिन ज्ञापन दिया जाएगा। अनेक बार एसएमएस के जरिए भी तुरंत फुरंत बुलावा देते हैं और सीधे उपखंड कार्यालय पर ही पहुंचने का निर्देंश देते हैं। चालीस पचास एकत्रित हो जाते हैं जो एक लाख की आबादी में साधारण बात है। उसमें भी बीस तीस तहसील,उपखंड और एडीएम कार्यालयों में काम कराने आए हुए शामिल हो जाते हैं। भाजपा का लूला लंगड़ा बहरा संगठन इस मामूली संख्या को भी इतराते हुए अच्छी संख्या बतलाता है।

किसान मोर्चा के जिला अध्यक्ष राजेन्द्र भादू, पूर्व राज्यमंत्री रामप्रताप कासनिया और पूर्व विधायक अशोक नागपाल भी साथ होते हैं। आगामी चुनाव के चक्कर में भयभीत ये नेता सब कुछ जानते हुए संगठन के नाम पर मजबूरी में साथ होते हैं। अन्यथा यह कह दिया जाएगा कि कार्यकर्ताओं को साथ नहीं देते। लेकिन जिनको चुनाव लडऩा है,उनको इतना तो जान ही लेना चाहिए कि पांच दस लोग जो निर्णय कर लेते हैं, बाद में कार्यवाही नहीं होती,उससे कितनी भद्द होती है।

इस प्रकार के निर्णय करने वालों को जब तक फटकार नहीं लगती तब तक वो भद्द पिटने वाली कार्यवाही करते रहेंगे। इस प्रकार के निर्णयों पर साथ नहीं देने पर पार्टी कोई निकालने वाली नहीं है। नेताओं को झूठा भय सताने लगता है उस स्थानीय संगठन का जिसमें विगत चुनाव में मील को साथ देने वाले हैं। ये तीनों दिग्गज शक्तिहीन संगठन के चंद पदाधिकारियों से डरना छोड़ें और ज्यादा ही संगठन की बात हो तो नए अध्यक्ष और नई कार्यकारिणी का गठन करवाएं। नगरमंडल के अध्यक्ष गुरदर्शनसिंह सोढ़ी तो एक बार इस्तीफा दे चुके हैं और कई बैठकें उनकी अनुपस्थिति में ही होती रही हैं,जो पांच सात जनों का निर्णय होता है। देहात मंडल की हालत भी न होने के बराबर है। क्या हालत है देहात मंडल की और कितनी ताकत है देहात मंडल में।

साफ साफ हालात तो यह हैं कि वर्तमान नगर और देहात मंडलों के भरोसे तो आगामी विधान सभा चुनाव लड़ा गया तो भगवान ही मालिक होगा। साफ तय करके लडऩा की हार के लिए लड़ रहे हैं।

दिग्गज नेता विगत चुनाव पर नजर डालें कि गुरदर्शसिंह सोढ़ी कहां थे और देहात मंडल के अध्यक्ष नरेन्द्र घिंटाला का पार्टी प्रत्याशी को कितना और कैसा सहयोग रहा था?

अब एक प्रसिद्ध भजन...

उठ जाग मुसाफिर भोर भई,अब रैन कहां जो सोवत है।

जो सोवत है सो खोवत है,जो जागत है सो पावत है।

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फोटो-भाजपा नेताओं अशोक नागपाल,रामप्रताप कासनिया और राजेन्द्र भादू व अन्य नेताओं ने 24-10-2010 को नगरपालिका की समस्याओं पर तत्कालीन उपखंड अधिकारी कालूराम को ज्ञापन दिया था। उसके बाद धरना लगाया था और जैसे तैसे कई दिनों तक चलाने के बाद जैसे तैसे समझौता आश्वासन से उठाया था।

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