बुधवार, 10 सितंबर 2025

प्रेसवार्ता को हलके में न लें पत्रकार व आयोजक

 

* करणीदानसिंह राजपूत *

प्रेसवार्ता आयोजित करके हलके में लेना बताए समय पर आयोजक या प्रतिनिधि का नहीं होना, देरी से शुरू करना और आयोजन में अपने पदाधिकारियों का स्वागत सत्कार करना करवाना आदि नीति आयोजक को ही नुकसान पहुंचाती है। यह हालत आयोजक को जल्दी से समझ में भी नहीं आती कि इस लापरवाही से किसी एक स्थान पर भी समाचार नहीं छपा तो नुकसान आयोजक को ही होता है। 

प्रेसवार्ता आधा घंटा एक घंटा और अधिक समय देरी से हो और इस बीच कोई एक या अधिक भी चले जाएं तो नुकसान आयोजक का हुआ। एक बार तो आयोजक परवाह नहीं करता। एक दो पत्रकार लौट गये तो क्या है? बाद में समझ में आता है कि जहां खबर छपने से लाभ मिलता वहां तो खबर छपी ही नहीं। इस लापरवाही का नुकसान ज्यादा भी हो जाता है।

* प्रेसवार्ता शुरू करने के समय से पहले ही आयोजक को पहुंचना चाहिए। देरी होने वाली हो तो कोई प्रतिनिधि पहुंचे और बताए लेकिन यह देरी भी दस पंद्रह मिनट तक तो चल सकती है अधिक नहीं। हो सकता हैं किसी पत्रकार या अधिक पत्रकारों को काम हो अन्यत्र जाना हो तब वे देरी पर ठहरेंगे नहीं और यह नुकसान आयोजक का होता है।

* पत्रकार वार्ता में अपने पदाधिकारियों का स्वागत सत्कार करना भी गलत और अपने साथ बीस पच्चीस लोगों को भी बैठाना गलत। पत्रकार वार्ता एक दो संबोधित करे और सवाल जवाब हों। 

** प्रेसवार्ता में मौखिक झूठे आरोप लगाने का प्रचलन भी बढ रहा है। आयोजक के पास प्रमाणिक जानकारी हो सबूत भी प्रेसवार्ता में दे सके वही आरोप किसी पर लगाए जाने चाहिए। 

*** चुनाव के दो तीन महीने बाकी और ऐसे समय झूठे आरोप लगाने की परंपरा बढ जाती है। ऐसा हो रहा है। जब आयोजक झूठ बोले कहे तभी टोक दिया जाना चाहिए। भीड़ हो तब भी टोकना और वार्ता नहीं करने का स्थान छोड़ने का कदम उठाना ही भावी सुधार के लिए अच्छा रहता है।

पत्रकार वार्ता में आयोजक भाषण देने लगते हैं। वे भाषण सुनाते हैं अपने लोगों को मीडिया चुपचाप सुनता रहता है। प्रेसवार्ता में भाषण बाजी नहीं होनी चाहिए और मीडिया को सुननी भी नहीं चाहिए। 

👍 प्रेसवार्ता में सवाल जवाब भी महत्वपूर्ण होते हैं। कोई संशय हो कोई बात स्पष्ट करनी हो तो सवाल होते हैं। उनको सुनना चाहिए लेकिन ऐसे समय में कुछ पत्रकार जानबूझकर वार्ता को खत्म कराने की कोशिश करते हैं। जिनको नहीं करने सवाल तो वे चुपचाप उठ जाएं लेकिन अन्य के लिए बाधा नहीं बनना चाहिए। कुछ पत्रकार पहले सवाल करते नहीं और कोई अन्य पत्रकार सवाल कर ले तब  बीच में ही अपना सवाल दाग कर सक्रिय होने या अधिक जानकर होने का दम भरने लगते हैं। कुछ पत्रकार एक के बाद दूसरा तीसरा सवाल कर बातचीत करने लगते हैं। कुछ पत्रकार अपने साथी पत्रकार के सवाल की काट करने लगते हैं या आयोजक की तरफ से उत्तर देने लग जाते हैं। यह आदत पत्रकार की अपनी ही छवि को चोट पहुंचाती है तथा कोई लाभ नहीं मिलता और आयोजक का भी अहित करती है।

पत्रकार एक ही स्थान पर दो ढाई घंटे लगाएंगे तब अन्य समाचार कवर नहीं कर पाएंगे। ऐसे में महत्वपूर्ण घटना हो जाए त़ब वहां पहुंच ही नहीं पाएंगे। मीडिया को भी अपना महत्व समझना चाहिए। प्रेसवार्ता और सभा आदि के समाचार कवरेज में अंतर होता है। सभा स्थल पर प्रेस गैलरी में आयोजकों के लोग बैठ जाते हैं। सभाओं आदि में पत्रकारों को एक दो घंटे पहले बुला लिया जाता है और बाद में कहा जाता है कि मुख्य व्यक्ति नेता दो घंटे में पहुंचने वाले हैं। पत्रकारों को सभा स्थलों पर वाहनों में ले तो जाते हैं लेकिन वापसी में ध्यान ही नहीं रखा जाता।

👍जब चुनाव होने में कुछ ही दिन बाकी होते हैं तब समय बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है। उन्हीं दिनों में अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्रम भी होते हैं। हर कार्यक्रम आयोजक अपने  समाचारों का प्रकाशन और प्रसारण चाहते हैं और उनको भी जरूरत होती है,इसलिए सभी आयोजकों को पत्रकारों के समय की कीमत समझनी चाहिए।

10 सितंबर 2025.

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करणीदानसिंह राजपूत,

पत्रकार,

( राजस्थान सरकार द्वारा अधिस्वीकृत लाईफटाइम)

सूरतगढ ( राजस्थान )

94143 81356.

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