सच्ची पत्रकारिता भ्रष्टाचार से खत्म नहीं की जा सकती.( राष्ट्रीय प्रेस दिवस)
* करणीदानसिंह राजपूत *
सच्चे और ईमानदार पत्रकार अखबार या चैनल से बाहर किए जाने से पहले ही अपनी बुद्धिमत्ता से स्वयं ही बाहर होकर स्वतंत्र रूप में अधिक लोकप्रिय हो गये हैं। उनकी मान्यता बढी भी और शक्तिशाली भी हुई। ऐसी गौरवपूर्ण पत्रकारिता में भी अनेक पत्रकार अखबार चैनल पैसे के लिए मर रहे हैं और दुत्कारे जाने के बावजूद भ्रष्ट राजनेताओं के तलवे चाटने में लगे हैं। एक तरफ सच्चे पत्रकार हैं तो दूसरी तरफ खोटे पत्रकार हैं।
समाचार ढूंढ कर लाने की नैतिकता मरती जा रही है और सही समाचारों को दबाने की पत्रकारिता पनपने लगी है। भ्रष्टाचारी दुराचारी व्यभिचारी से मित्रता होने व करने को समाचार रोकने को व्यवहारिकता माना जाने लगा है। लोग पत्रकारों को समझाने लगे हैं कि यह व्यवहार अपनाएं ताकि लोग अच्छा माने और घर में दो पैसे भी आएं। इस दार्शनिकता वाली समझाईस समझने में कोई गलती करे और अपना नहीं पाए तो सामने मूर्ख कह देते हैं और पीठ पीछे गालियां देते हैं।
* भ्रष्टाचार दुराचार से समाज का हर वर्ग दुखी और परेशान है लेकिन फिर भी समाचार छापने वाले पत्रकार को उलाहना देते हैं या गंदे अभद्र शब्दों से आलोचना करते हैं। ऐसी गंदी आलोचना करने वालों की जीवनी खोजी जाए तो मालुम होता है कि उक्त व्यक्ति भ्रष्टाचारी है, व्यभिचारी है,दुराचारी है जिसको सच्च लिखा हुआ पढना सुहाता नहीं है। अब तो वोट राजनीति के कारण पार्टियां अपनी पार्टी का पटका माला पहना कर भ्रष्टाचारी व्यभिचारी को पार्टी में प्रवेश कराते हैं तथा फोटो खिंचवा कर छपवाते हैं और विडिओ चैनलों पर चलवाते हैं। सोशल साईट्स और ग्रुप तो ऐसे लोगों से भरे मिलते हैं। ऐसी समाज सेवा करे वह महान और प्रसिद्ध पत्रकार। मतलब पत्रकारिता अब ऐसी दुकान बनाई जा रही है और लोग कहते हैं कि ऐसा माल रखो। सच्च रखोगे सारे दिन वही दिखाओगे खिलाओगे तो खारा कसैला नीम कड़वा कोई क्यों खाएगा? ये उन लोगों के विचार और कथन होते हैं जो खुद गंदे नाले में डुबकियां लगाते रहते हैं। गंदे लोग हों चाहे पत्रकार हों उनसे सच्च की उम्मीद की भी नहीं जा सकती।
इतने बड़े देश में सच्च लिखने पढने वालों की कमी नहीं है। ऐसे लोग संख्या में बहुत हैं लेकिन वे बोलते नहीं चुप रहते हैं। इसलिए भ्रष्टाचारियों को लगता है कि उनको मानने वाले अधिक हैं।
सच्च लिखने वालों को ही स्वतंत्रता चाहिए ताकि वे जनता के अधिकारों को स्थापित करते हुए लोकतंत्र को और अधिक शक्तिशाली बना सकें। ऐसे सच्चे पत्रकारों के लिए ही राष्ट्रीय प्रेस दिवस है।
👌राष्ट्रीय प्रेस दिवस हमारे लोकतंत्र को आकार देने में प्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका की याद दिलाता है। अपनी स्थापना के बाद से, भारतीय प्रेस परिषद ने प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने, पत्रकारिता के मानकों को बनाए रखने और मीडिया के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए अथक प्रयास किया है। मीडिया नैतिकता और प्रेस सुरक्षा जैसे मुद्दों से निपटने से लेकर डिजिटल युग के अनुकूल होने तक, परिषद जनता को सूचित करने, शिक्षित करने और सशक्त बनाने के अपने मिशन में मीडिया का मार्गदर्शन और समर्थन करना जारी रखती है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस न केवल प्रेस की उपलब्धियों का जश्न मनाता है बल्कि एक अधिक सूचित और पारदर्शी समाज के निर्माण में इसकी जिम्मेदारी को भी मजबूत करता है, यह सुनिश्चित करता है कि पत्रकारिता का भविष्य मजबूत, स्वतंत्र और जिम्मेदार बना रहे।०0०
16 नवंबर 2024.
करणीदानसिंह राजपूत,
उम्र 79 वर्ष,
पत्रकारिता 61वां वर्ष.
( राजस्थान सरकार से अधिस्वीकृत)
सूरतगढ़ ( राजस्थान )
94143 81356.
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