भ्रष्टाचारी व्यभिचारी को पार्टियों में पद और उनके कार्यों का बुरा असर.
* करणीदानसिंह राजपूत *
राजनैतिक पार्टियां जब भ्रष्टाचारी व्यभिचारी को पदाधिकारी बना देती है तब पार्टी के कार्यकर्ता कहते नहीं बोलते नहीं लेकिन ऐसे दुष्कर्मी को अपना नेता मानते नहीं है। ऐसे पदाधिकारी जब बुलावा देते हैं तब वहां 20-25 बड़ी मुश्किल से एकत्रित होते हैं।
भ्रष्टाचारी व्यभिचारी बुरे नेता जब कोई निर्देश देते हैं, धरना प्रदर्शन सभा करते हैं तब बड़ी मुश्किल से 20-30 कार्यकर्ता ही धरने प्रदर्शन में
शामिल होने को पहुंचते हैं। ये भी घंटे दो घंटे मुश्किल से टिकते हैं। कुछ तो फोटो समय में ऐसे पदाधिकारी से दूर भी रहते हैं।
इन 20-30 कार्यकर्ताओं में महिला कार्यकर्ता नहीं होती। जब बार बार ऐसी शर्मनाक स्थिति होती है फिर भी पार्टी के नेता गलती सुधारने का विचार नहीं करते। ऐसे भ्रष्ट पदाधिकारी को साथ रखने वाले नेता और निर्वाचित जन प्रतिनिधि भी बदनाम होते हुए जनता की नजरों में गिरते जाते हैं। लोगों के मुंह तो बंद किए नहीं जा सकते। जनता लाऊडस्पीकर लगाकर सवाल नहीं करती लेकिन एक से दूसरे को पूछती है और वह पूछने जानकारी लेने का तरीका खतरनाक होता है। नेताजी इस व्यभिचारी भ्रष्टाचारी को अपने साथ क्यों रखते हैं? उक्त व्यभिचारी भ्रष्टाचारी हर समय नेताजी के साथ ही लटका हुआ क्यों रहता है? आखिर यह व्यक्ति नेताजी की क्या मदद करता है? भ्रष्ट क्या काम निकालता है जो दूसरा कार्यकर्ता नहीं कर सकता। जिसके भ्रष्टाचार की व्यभिचार की किताब खुली हो हर कोई उस किताब के हर पेज को जानता हो तब नेता और जन प्रतिनिधि नहीं जानते हों तो ऐसा हो ही नहीं सकता। मतलब व्यभिचारी भ्रष्टाचारी को जानते हुए भी अपने साथ रखना निश्चित ही बड़ी मूर्खता होती है। ऐसी मूर्खता भीतर ही भीतर नाम बदनाम करती है और बदनामी का परिणाम भी दिखाई पड़ने लग जाता है। काले धन के लेनदेन में और काले कार्यों को गुप्त रखने में ऐसे पदाधिकारी ही हिस्सेदार हो सकते हैं इसलिए नेताओं जन प्रतिनिधियों के प्रिय होते हैं। ऐसे पदाधिकारियों के पास नेताओं के खुले और छिपे अनेक काम होते हैं। राजनैतिक पार्टियों को यह देखना चाहिए कि किस क्षेत्र में पार्टी की छवि क्यों गिर रही है और उसके कारण में कौन नेता पदाधिकारी हैं? पार्टियां निर्वाचित को तो बदल नहीं सकती लेकिन मनोनीत और नियुक्त पदाधिकारी को हटा सकती है और आसान तरीका होता है पद पर किसी नये को नियुक्त करना। पुराना गलत नयी नियुक्ति से अपने आप ही हट जाता है। लेकिन नेता जनप्रतिनिधि ही हटाना नहीं चाहे,अपने साथ लिपटाए रखना चाहे तब समझना चाहिए कि दोनों एक ही पटरी पर हैं। ऐसी स्थिति हो तब समझना चाहिए कि ऊपर बात पहुंचाने वाला एक भी समझदार पार्टी में नहीं है।०0०
3 नवंबर 2024.
करणीदानसिंह राजपूत,
पत्रकारिता 61 वां वर्ष,
( राजस्थान सरकार से अधिस्वीकृत)
सूरतगढ़ ( राजस्थान )
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