सोमवार, 25 मार्च 2024

आपराधिक घटनाओं पर डरे नेताओं संस्थाओं जनता का मरणासन्न मौन

 


* करणीदानसिंह राजपूत *

पुलिस और कानून को इग्नोर करते बदले की आग से दोस्तों के साथ मिलकर हथियारों से मारपीट जानलेवा हमला कर घायल करने भाग जाने की आपराधिक घटनाओं में आगे बढ रहे सूरतगढ़ की दशा और दिशा पर विचार करना बहुत जरूरी है।

 आपराधिक घटनाओं पर नेताओं संस्थाओं समाजसेवकों क्रांतिकारियों बड़ी व्यापारिक व धार्मिक संस्थाओं, विधायकों पूर्व विधायकों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं का मर जाने जैसी हालत में, खुद को बचाकर चुप रहना, मौन रहना, दुबक जाना और डर से आपराधिक घटनाओं की निंदा तक नहीं करना,साबित करता है कि शहर की जनसंख्या बढाने और मलमूत्र से गंदगी फैलाने के अलावा कुछ नहीं हो रहा। 


👍 विदेश और अन्य शहरों की घटनाओं पर जुलूस,प्रदर्शन,पुतले फूंकना,ज्ञापन देना सभाएं करना और अपने शहर की घटनाओं पर चुप रहना बड़ा सवाल है? यह कैसा आचरण,कैसा रवैया है?

एक लाख के करीब लोग जिसमें,शिक्षा विद् बुद्धिजीवी,व्यापारी, दुकानदार, शिक्षक,शिक्षा नगरी धर्मनगरी प्रचारित कर अपनी पीठ थपथपाने मीडिया में अखबारों में फोटो छपवाने के अलावा कोई उन्नति नहीं हुई।

23 मार्च 2024 की रात को आठ बजे गढ के आगे मंदिरों से घिरे धार्मिक क्षेत्र में एक व्यक्ति पर सुनियोजित जानलेवा हमला होता है। विडिओ से मालुम पड़ता है क्रूरता का। दो व्यक्ति लाठियों से 70 के करीब वार करते हैं और अच्छी तरह से देखकर मरा हुआ जानकर बाद में भाग जाते हैं। 

शनि मंदिर के पास ही इस धार्मिक क्षेत्र में सूरतेश्वर महादेव मंदिर, करणी माता मंदिर,गणेश मंदिर व लोकदेवताओं के मंदिर और कथाओं का गोकुल धाम है। जहां धार्मिक लोगों की भीड़ रहती है। आपराधिक घटना के समय भी सैंकड़ों धर्मपरायण लोगों और वहां से गुजरते लोगों की भीड़ थी। ये धर्मप्रिय लोग हमलावरों से पीड़ित को बचा नहीं रहे थे। सभी देख रहे थे। क्या यही सिखाता है धर्म या यही सीखा है धर्म से कि ऐसी घटना पर बस देखते रहो। ऐसे धार्मिक होने से क्या लाभ मिलता होगा? इस पर धर्मकर्म करने वालों को विचार जरूर करना चाहिए कि आपराधिक घटना में व्यक्ति की अंधाधुंध पिटाई को देखते रहने से कितना धर्म उनके खाते में जुड़ा होगा?

* मौके पर व्यक्ति को बचाने के लिए कोई आगे नहीं आया। लेकिन जब कुछ समय बाद मीडिया के कुछ निडर पत्रकारों ने वीडियो जारी किया समाचार दिखाए उस पर भी किसी ने कुछ कहना बोलना निंदा करना उचित नहीं समझा। ऐसी घटनाओं पर एक लाख लोगों में किसी दो चार का भी नहीं बोलना अपने को मार लेना भी बहादुरी का काम है। 

बड़े अखबारों में इस घटना का छापा नहीं जाना उनके रवैये को दर्शाता है। आखिर ऐसे अखबारों को भी क्यों पढा जाए जो केवल विज्ञप्ति छापने वाले बने हैं। रात आठ बजे की घटना न छपे या रोकी जाए। ट्रोमा सेंटर में भाग कर पहुंचने वाले फोटो लेने वीडियो बनाने वाले पत्रकारों ने भी कुछ नहीं किया। वे भी सब जानकर शांत बैठे रहे। इसका भी कोई तो कारण रहा है। होली पर्व की दो दिन की अखबारों की छुट्टी सो समाचार से मुक्ति।

* शहर में बदले की घटनाओं में हमले होने की यह चौथी पांचवीं बड़ी घटना है। पुलिस की तरफ से किसी भी घटना में तुरंत गिरफ्तारी नहीं हुई न अभियुक्तों को पीछा कर पकड़ने का प्रयास हुआ है। लेकिन सवाल वहीं खड़ा है कि पुलिस तो सूचना मिलने के बाद पहुंचती है लेकिन मौकै पर उपस्थित सैंकड़ों लोग बचाने की कार्यवाही क्यों नहीं करते और घटना के बाद निंदा तक नहीं करते। 

* मौजूदा विधायक डुंगरराम गेदर, पूर्व विधायकों रामप्रताप कासनिया, राजेंद्र सिंह भादू,अशोक नागपाल,गंगाजल मील,इनके ग्रुप, सभी राजनीतिक दल चुप क्यों हैं? क्या इनको अपनी जिम्मेदारी समझने में देरी करनी चाहिए।

 * भाजपा को अपने स्वच्छ शासन प्रशासन और कानून शांति व्यवस्था की सुदृढ़ता के लिए कोई नीति अपनानी चाहिए।

* सभी दूर भागना चाहें तो एकदम साफ घोषणा कर दें कि उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। लेकिन वह घोषणा आज कल के व्यवहार के हिसाब से शर्मनाक होगी०0०

०0०

25 मार्च 2024. 

होली रामरमी की शुभकामनाएं.

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करणीदानसिंह राजपूत,

पत्रकार,

( राजस्थान सरकार द्वारा अधिस्वीकृत)

सूरतगढ़ (राजस्थान)

94143 81356.

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