बुधवार, 2 मार्च 2022

सूरतगढ़ में बसपा नेताओं की कमजोरी से कमजोर: क्या चुनाव तक मजबूत हो पाएगी

 

* करणीदानसिंह राजपूत *

डूंगरराम गेदर और अनेक बड़े कार्यकर्ताओं के बसपा छोड़कर कांग्रेस में चले जाने के बाद से बसपा बहुत कमजोर हो गई थी जो अभी तक कमजोरी की हालत में ही है। जो नेता बसपा को अब संचालित कर रहे हैं वे खुद कमजोर हैं और उनकी कमजोरी से बसपा मजबूत नहीं हो रही। 

डूंगरराम गेदर बसपा के पर्याय थे जो मासिक बैठक में मौजूद रहते थे। इसी वजह से सन 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव में भारी मत ले पाए। गेदर के बसपा छोड़ने के बाद मासिक बैठक खत्म ही हो गई। स्थिति यह हो गई कि ऐसा कार्यकर्ता भी बसपा में नहीं रहा जो यदा कदा अपनी गतिविधियों की सूचना लोगों तक और मीडिया तक पहुंचा सके। 

महेन्द्र भादु के बसपा में आने के बाद एक बार लगा था कि पार्टी अपनी कमजोर स्थिति से बाहर निकल पाएगी लेकिन ऐसा हो नहीं सका। महेंद्र भादु भी दिनरात एक कर नहीं पाए। 

 *महेंद्र भादु ने घोषणा की थी कि वे हर गांव का दौरा करेंगे और लोगों को संगठित करेंगे। शुरू में कुछ गांवों का दौरा हुआ और उसके बाद ठप्प हो गया।


पार्टी के पास एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जो सूरतगढ़ की समस्याओं पर धरना प्रदर्शन कर सके। अभी तो समस्याओं पर मांग पत्र तक देने वाली ताकत भी नहीं है।

इतनी कमजोरी और 2023 में विधानसभा चुनाव हैं। क्या बसपा अपनी स्थिति चुनाव लड़ने लायक मजबूत बना पाएगी। सूरतगढ़ सीट से अभी तक चर्चा तो यह है कि महेंद्र भादु ही चुनाव लड़ेंगे। भादु खुद चुनाव लडेंगे तो वे समय क्यों नहीं दे रहे? क्या बेहद कमजोर स्थिति में वे बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ने को तैयार होंगे?

महेंद्र भादु ने पंचायत चुनाव से पहले घोषणा की थी कि सूरतगढ़ पंचायत समिति के चुनाव में सभी डायरेक्टरी सीटों पर लड़ेंगे। प्रधान बनाएंगे। लेकिन सभी सीटों पर नहीं लड़ पाए। यह संख्या तो दस तक भी नहीं पहुंच पाई। पंचायत चुनाव में महेंद्र भादु खुद कहां थे,यह सवाल किया जा सकता है।

डूंगरराम गेदर के समय जो वोट बैंक था वह भी छिन्न भिन्न हो चुका है। ऐसे में एक बार कहा जा सकता है कि बसपा का क्या होगा? चुनाव में हाथी पर सवार होकर कौन लड़ेगा?०0०

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