गुरुवार, 17 जनवरी 2019

गुरूभरोसा सेवा संस्था:कितने लाचार औरतों पुरुषों को पकड़ ले गए,वेअब कहां है ?

** कितने दिन नशीली दवाएं देकर बंद रखा दुराचार मारपीट  किया **

*** प्रशासन पुलिस आपराधिक मुकदमा करवाकर जांच करवाए तब ही अपराधी आएंगे कानून के शिकंजे में ***

***** करणी दान सिंह राजपूत -

 सूरतगढ़ में गुरु भरोसा सेवा संस्था के क्रियाकलापों को लेकर समाचारों से हड़कंप मचा है और बहुत बड़ा रहस्य छिपा हुआ है कि सेवा भाव के नाम पर कितने लाचार औरतों आदमियों को रेलवे स्टेशन,बस स्टैंड बस स्टैंड के आसपास से और यत्र तत्र पकड़ा गया और संस्था के भवन में ले जाया गया। जिन लोगों को ले जाया गया जबरन पकड़ा गया वे चिल्लाते रहे मगर परवाह नहीं हुई।

लोग मानते रहे की संस्था के लोग सेवा भाव के लिए औरतों और पुरुषों को लाचार लोगों को ले जा रहे हैं जो अपंग हैं बीमार हैं या भटक कर सूरतगढ़ पहुंच गए हैं।

समाचारों से यह लोगों के सामने आया कि जिन लोगों को पकड़ा गया उनका कोई समुचित रिकॉर्ड संस्था में नहीं है। 

कितनी औरतें लड़कियां पकड़ी गई और अब संस्था में कितनी है और बाकी की कहां भेज दी गई? एक -एक महिला और एक -एक पुरुष का रिकॉर्ड पुरुष रिकॉर्ड संस्था की ओर से कभी प्रदर्शित नहीं किया गया।सबसे बड़ा रहस्य यह है कि इस प्रकार के औरतों और पुरुषों को संस्था भवन में नशे की दवाइयां दी जाती रही और मारपीट करके दवाइयां दी जाती जो नहीं लेते उनके भोजन में मिला करके दी जाती रही रही।

 संस्था के संचालक नशीली दवाइयों का डोज भी अपनी मनमर्जी से से देते रहे।किसी डॉक्टर की सलाह नहीं,किसी डॉक्टर की पर्ची नहीं। होना तो यह चाहिए था कि जो भी महिला लड़की पुरूष लाचार हालत में पाया जाता वह पहले पुलिस रिकॉर्ड में आता।पुलिस उसका अता पता मालूम करती और डॉक्टर से जांच करवाकर मानती कि बीमार है या विक्षिप्त है। बाद में किसी संस्था को सेवा के लिए सौंपती। लेकिन यहां पर ऐसा नहीं हो रहा था संस्था के संचालक और उनके कारिंदे  लाचार लोगों को पकड़ते और ले जाते रहे। तत्काल किसी की सूचना कहीं नहीं दी गई गई।पुलिस को भी सूचना अपनी मनमर्जी से अगले दिन या बाद में दी गई। इसका भी कोई रिकॉर्ड नहीं सूचना पुलिस को दी गई। संस्था के पत्र पर कोई क्रमांक नहीं, पत्र पर संस्था के अध्यक्ष या संस्था   संचालन कर्ता के हस्ताक्षर नहीं।


जिन लोगों को पकड़ा गया उनका विधिवत 1-1 का रिकॉर्ड होना चाहिए।वह नहीं। हर व्यक्ति की जांच और हर व्यक्ति की दवा अलग अलग होती है लेकिन ऐसा कोई प्रबंध नहीं। संस्था में जो व्यक्ति सार संभाल के नाम पर लाए गए उनकी संख्या कितनी थी उनमें से कितने लोगों को कहां-कहां भेजा गया? इसकी जांच बहुत जरूरी है। 

जो पकड़े गए उन लोगों को इलाज के लिए तत्काल चिकित्सकों एलोपैथी आयुर्वेदिक होम्योपैथिक आदि से दिखाकर दवाइयां दी जानी चाहिए थी। प्रत्येक की पर्ची प्रत्येक की प्रत्येक की दवा अलग अलग होती और उस हिसाब से ही होती और उस हिसाब से मेडिकल स्टोर से डाक्टर की परची पर ली जाती लेकिन आश्चर्य है कि संस्था के संचालक सभी को जबरन दवाइयां देते रहे और दवाइयों से लाचार लोग अपनी आवाज को समुचित उठा नहीं सकते। उनको मालूम ही नहीं था कि वह सूरतगढ़ की किसी संस्था में बंद हैं।कहां पर बंद है?उनकी एक ही आवाज थी कि यहां से किसी तरह से बाहर निकाला जाए। 

सबसे बड़ा आश्चर्य और घोटाला यह है कि प्रशासन नशे की दवाइयों के विरोध में प्रचार प्रसार कर रहा है। पुलिस भी इसी कार्य में लगी हुई है लेकिन यहां पर इतनी भारी मात्रा में एक साथ नशीली दवाएं बिना डॉक्टर की पर्ची पर कैसे मिलती रही?कौन सा मेडिकल स्टोर यह अपराध शामिल होकर करता रहा ?  ड्रग इंस्पेक्टर किस प्रकार की जांच मेडिकल स्टोरों पर करते रहे हैं?

इन सब की की जांच होना बहुत जरूरी है। किसी भी औरत पुरुष को लाचार मानकर जबरन पकड़ कर ले जाना उसकी मनमर्जी के  विपरीत ले जाना  बंद रखना नशीली दवाइयां देना आदि अपहरण और जबरन बंद रखने के आपराधिक मामले में मुकदमे में नामजद करके और जांच होनी चाहिए।

 आश्चर्य है कि किसी भी औरत और पुरुष को संस्था संचालकों ने कैसे अपनी मर्जी से विक्षिप्त मान लिया, मानसिक बीमार मान लिया, बिना किसी डॉक्टर की जांच के दवाइयां भी देते रहे। प्रतिबंधित दवाइयां कहां से मिली दवाइयों के बिल किस किस रोगी के नाम से बने या बिना बिलों के ही यह सब कुछ होता रहा। 

नशे से संबंधित कोई भी दवा बिना डॉक्टर की पर्ची के दी नहीं जाती। बहुत सख्त नियम है फिर यहां इस संस्था को बहुत सारी दवाएं एक साथ कैसे मिलती रही? 

आश्चर्यजनक यह भी है कि पुरुष और महिला का रखरखाव संरक्षण अलग अलग प्रकार का होता है। महिलाओं की सेवा के लिए कितनी महिलाएं लगाई हुई थी। लाचार महिलाओं को या कथित विक्षिप्त महिलाओं को नहलाने धुलाने का कार्य कौन कर रहा था?

संस्था का संचालन मंडल, कारिंदे और अन्य इसमें जांच के दायरे में लिए जाकर प्रशासन की तरफ से ही आपराधिक मुकदमा होना चाहिए।

देश में आश्रमों आदि का बवाल मचा है, गिरफ्तारियां जांचे और जेलें हुई है वहीं सूरतगढ़ में यह सब कैसे चलता रहा? कुछ पत्रकारों ने गहन जांच के बाद समाचार देने शुरू किए मगर प्रशासन फिर भी नहीं जागा।लेकिन यह मामला बहुत गंभीर है और जांच मुकदमा अविलंब नहीं हुआ तो प्रशासन भी घेरे मेंं आने से बच नहीं पाएगा।

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