भारत देश के लिए 21वीं सदी की मुख्य चुनौती है कि सभी को भरपेट भोजन मिल सके। इस चुनौती को पूरा करने में अन्नदाता किसान का अहम योगदान है,लेकिन यदि वह किसान कर्ज की चपेट में से निकलने को छटपटा रहा हो, उसकी हालत दयनीय हो और आत्महत्या तक की नौबत आती रहे तो चिंताजनक हालत है।
किसान की आर्थिक हालत को अच्छी बनाने के दो उद्देश्यों को लेकर सन् 2004 में केंद्र सरकार ने डाक्टर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स का गठन किया जिसे आम लोग स्वामीनाथन आयोग कहते हैं।
इस आयोग ने अपनी पांच रिपोर्टें सौंपी। अंतिम व पांचवीं रिपोर्ट 4 अक्तूबर, 2006 में सौंपी गयी। रिपोर्ट ‘तेज व ज्यादा समग्र आर्थिक विकास’ के 11वीं पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य को लेकर बनी है।
क्यों बनाया गया आयोग
सबको अच्छा भोजन उपलब्ध हो, उत्पादकता बढ़े, खेती से किसान को पर्याप्त लाभ हो, खेती की सस्टेनेबल तकनीक विधियां अपनाई जाएं, किसानों को आसान व पर्याप्त ऋण मिले, सूखे, तटवर्ती एवं पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि की विशेष प्रोत्साहन योजनाएं लागू हों, कृषि लागत घटे और उत्पादन की क्वालिटी बढ़े, कृषि पदार्थों के आयात की दशा में किसान को सरकारी संरक्षण मिले तथा पर्यावरण संरक्षण के मकसद को पंचायतों के माध्यम से हासिल किया जाए- उक्त सभी उद्देश्यों के साथ इस आयोग का गठन किया गया था। नालेज व स्किल बढ़ाना, टेक्नोलोजी का खेती में ज्यादा इस्तेमाल व मार्केटिंग सुविधाएं बढ़ाना भी आयोग की प्राथमिकतों में शुमार था। पानी की कमी दूर करने संबंधी योजनाओं को बढ़ावा देना भी उक्त कमीशन की मंशा थी।
आयोग में कौन क्या था
चेयरमैन -एमएस स्वामीनाथन, पूर्णकालिक सदस्य - राम बदन सिंह, वाईसी नंदा, पार्टटाइम मेंबर - आरएल पिटाले, जगदीश प्रधान, अतुल कुमार अंजान।
सदस्य सचिव : अतुल सिन्हा,
रिपोर्ट में क्या था?
भूमि सुधारों की गति को बढ़ाने पर आयोग की रपट में खास जोर है। सरप्लस व बेकार जमीन को भूमिहीनों में बांटना, आदिवासी क्षेत्रों में पशु चराने के हक यकीनी बनाना व राष्ट्रीय भूमि उपयोग सलाह सेवा सुधारों के विशेष अंग हैं। सिंचाई के लिए सभी को पानी की सही मात्रा मिले, इसके लिए वर्षा पानी हार्वेस्टिंग व वाटर शेड परियोजनाओं को बढ़ावा देने की बात रिपोर्ट में वर्णित है। इस लक्ष्य से पंचवर्षीय योजनाओं में ज्यादा धन आवंटन की सिफारिश की गई है। भूमि की उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही खेती के लिए ढांचागत विकास संबंधी भी रिपोर्ट में चर्चा है। मिट्टी की जांच व संरक्षण भी एजेंडे में है। रिपोर्ट में बैंकिंग व आसान वित्तीय सुविधाओं को आम किसान तक पहुंचाने पर विशेष ध्यान दिया गया है। क्रॉप लोन सस्ती दरों पर, कर्ज उगाही में नरमी, किसान क्रेडिट कार्ड व फसल बीमा भी सभी किसानों तक पहुंचाने की बात है। मिलेनियम डेवलपमेंट गोल (यानी 2015 तक भूखों की तादाद आधी रह जाए) पूरे हों व प्रति व्यक्ति भोजन उपलब्धता बढ़े, इस मकसद से सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आमूल सुधारों पर बल दिया गया है। कम्युनिटी फूड व वाटर बैंक बनाने व राष्ट्रीय भोजन गारंटी कानून की संस्तुति भी रिपोर्ट में है। किसान आत्महत्या की समस्या के समाधान, राज्य स्तरीय किसान कमीशन बनाने, सेहत सुविधाएं बढ़ाने व वित्त-बीमा की स्थिति पुख्ता बनाने पर भी आयोग ने विशेष जोर दिया। मार्केटिंग सुधार भी इन्हीं के साथ-साथ अहम स्थान रखते हैं। किसानों की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य कुछेक नकदी फसलों तक सीमित न रहें, इस लक्ष्य से ग्रामीण ज्ञान केंद्र व मार्केट दखल स्कीम भी लांच करने की सिफारिश रिपोर्ट में है। एमएसपी औसत लागत से 50 फीसदी ज्यादा रखने की सिफारिश भी की गई है ताकि छोटे किसान भी मुकाबले में आएं, यही ध्येय खास है।
किसान की आर्थिक हालत को अच्छी बनाने के दो उद्देश्यों को लेकर सन् 2004 में केंद्र सरकार ने डाक्टर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स का गठन किया जिसे आम लोग स्वामीनाथन आयोग कहते हैं।
इस आयोग ने अपनी पांच रिपोर्टें सौंपी। अंतिम व पांचवीं रिपोर्ट 4 अक्तूबर, 2006 में सौंपी गयी। रिपोर्ट ‘तेज व ज्यादा समग्र आर्थिक विकास’ के 11वीं पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य को लेकर बनी है।
क्यों बनाया गया आयोग
सबको अच्छा भोजन उपलब्ध हो, उत्पादकता बढ़े, खेती से किसान को पर्याप्त लाभ हो, खेती की सस्टेनेबल तकनीक विधियां अपनाई जाएं, किसानों को आसान व पर्याप्त ऋण मिले, सूखे, तटवर्ती एवं पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि की विशेष प्रोत्साहन योजनाएं लागू हों, कृषि लागत घटे और उत्पादन की क्वालिटी बढ़े, कृषि पदार्थों के आयात की दशा में किसान को सरकारी संरक्षण मिले तथा पर्यावरण संरक्षण के मकसद को पंचायतों के माध्यम से हासिल किया जाए- उक्त सभी उद्देश्यों के साथ इस आयोग का गठन किया गया था। नालेज व स्किल बढ़ाना, टेक्नोलोजी का खेती में ज्यादा इस्तेमाल व मार्केटिंग सुविधाएं बढ़ाना भी आयोग की प्राथमिकतों में शुमार था। पानी की कमी दूर करने संबंधी योजनाओं को बढ़ावा देना भी उक्त कमीशन की मंशा थी।
आयोग में कौन क्या था
चेयरमैन -एमएस स्वामीनाथन, पूर्णकालिक सदस्य - राम बदन सिंह, वाईसी नंदा, पार्टटाइम मेंबर - आरएल पिटाले, जगदीश प्रधान, अतुल कुमार अंजान।
सदस्य सचिव : अतुल सिन्हा,
रिपोर्ट में क्या था?
भूमि सुधारों की गति को बढ़ाने पर आयोग की रपट में खास जोर है। सरप्लस व बेकार जमीन को भूमिहीनों में बांटना, आदिवासी क्षेत्रों में पशु चराने के हक यकीनी बनाना व राष्ट्रीय भूमि उपयोग सलाह सेवा सुधारों के विशेष अंग हैं। सिंचाई के लिए सभी को पानी की सही मात्रा मिले, इसके लिए वर्षा पानी हार्वेस्टिंग व वाटर शेड परियोजनाओं को बढ़ावा देने की बात रिपोर्ट में वर्णित है। इस लक्ष्य से पंचवर्षीय योजनाओं में ज्यादा धन आवंटन की सिफारिश की गई है। भूमि की उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही खेती के लिए ढांचागत विकास संबंधी भी रिपोर्ट में चर्चा है। मिट्टी की जांच व संरक्षण भी एजेंडे में है। रिपोर्ट में बैंकिंग व आसान वित्तीय सुविधाओं को आम किसान तक पहुंचाने पर विशेष ध्यान दिया गया है। क्रॉप लोन सस्ती दरों पर, कर्ज उगाही में नरमी, किसान क्रेडिट कार्ड व फसल बीमा भी सभी किसानों तक पहुंचाने की बात है। मिलेनियम डेवलपमेंट गोल (यानी 2015 तक भूखों की तादाद आधी रह जाए) पूरे हों व प्रति व्यक्ति भोजन उपलब्धता बढ़े, इस मकसद से सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आमूल सुधारों पर बल दिया गया है। कम्युनिटी फूड व वाटर बैंक बनाने व राष्ट्रीय भोजन गारंटी कानून की संस्तुति भी रिपोर्ट में है। किसान आत्महत्या की समस्या के समाधान, राज्य स्तरीय किसान कमीशन बनाने, सेहत सुविधाएं बढ़ाने व वित्त-बीमा की स्थिति पुख्ता बनाने पर भी आयोग ने विशेष जोर दिया। मार्केटिंग सुधार भी इन्हीं के साथ-साथ अहम स्थान रखते हैं। किसानों की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य कुछेक नकदी फसलों तक सीमित न रहें, इस लक्ष्य से ग्रामीण ज्ञान केंद्र व मार्केट दखल स्कीम भी लांच करने की सिफारिश रिपोर्ट में है। एमएसपी औसत लागत से 50 फीसदी ज्यादा रखने की सिफारिश भी की गई है ताकि छोटे किसान भी मुकाबले में आएं, यही ध्येय खास है।