अपने अपने पाले में कबड्डी कबड्डी करते रहे
जयपुर में मंदिरों को तोड़े जाने के मामले को लेकर भारतीय जनता पार्टी की सरकार में केवल मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को निशाना बना कर 9 जुलाई को सुबह 9 बजे से 11 बजे तक जयपुर में रास्ते जाम किए गए। इस जाम आंदोलन में संघ सीधे रूप में शामिल नहीं था। संघ आंदोलनों में किसी न किसी संगठन या समिति को माध्यम बना कर साथ देता है ताकि जब भी कोई घातक प्रहार वाला विवाद हो तब गली निकालते हुए बयान दिया जा सके।
जयपुर में दो घंटे जाम लगा कर कबड्डी खेली गई। इसमें न सरकार को परेशानी हुई न संघ संगठनों को परेशानी हुई। इसमें केवल आम जनता को परेशानी हुई और इस कबड्डी से वसुंधरा को राज से हटाना संभव नहीं। इस कबड्डी में किस तरह के पैंतरे डराने धमकाने के चले। इनको समझें।
सरकार की ओर से गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि सरकार कानून व शांति व्यवस्था बनाए रखेगी। वे लोग यानि कि प्रदर्शनकारी अपनी बात शांति से कहते हैं आंदोलन करते हैं तो उनको अपनी बात कहने का हक है। दूसरी बात उन्होंने कही कि भाजपा विधायक व कार्यकर्ता आदि आंदोलन में शामिल होते हैं तो पार्टी चाहेगी तो कार्यवाही करेगी। वह पार्टी का मसला है। मतलब यह कि कोई गड़बड़ी नहीं होगी तो कोई कार्यवाही नहीं होगी। बहुत ही सुलझी हुई शांति के पैकेट में लपेटी हुई चेतावनी या धमकी या ईशारा। इसे और स्पष्ट करदूं कि आप अपने पाले में खेलते रहें हमारे सरकार के पाले में आकर कबड्डी कबड्डी ना करें।
इस पर कबड्डी का रूख यह रहा कि सौ से अधिक संगठनों ने सरकारी पाले में जाकर कबड्डी कबड्डी नहीं किया। सरकार अपने कार्यालयों में ठंडी हवा में मस्त रही और संघ व संगठन सड़कों पर चौराहों पर रामधुन में या केवल नारों में लगे रहे। 70 से अधिक स्थानों पर जाम लगाया गया लेकिन पद्धति लगभग यही रही।
बात आती है चैनलों की वे भी इस कबड्डी में भागीदार रहे। जो लोग चैनलों पर 2 घंटे हालात देखने को जमे रहे उनको बार बार एक ही प्रकार के दृश्यों के दिखलाए जाने से कोफत होने लगी थी।
चैनल कह रहे थे कि जयपुर आगरा सड़क पर 7 किलोमीटर तक का जाम लगा है वहनों की कतार लगी है। लेकिन दृश्य नहीं दिखलाया।
पुलिस के बंदोबस्त का कहा जाता रहा लेकिन केवल एक दो स्थानों पर ट्रैफिक वाले या एक दो बार पुलिस जीप नजर आई। सामान्य प्रदर्शन आदि में सड़कों चौराहों आदि पर सेंकड़ों की संख्या में पुलिस वाले दिखाई देते हैं। ढाल व डंडों सहित। महिला पुलिस अलग से। दिखाई देती है लेकिन ऐसे दृश्य आज के जाम में नहीं थे। केसरिया पताकाओं से प्रदर्शन करते हुए व रामधुन गाते दृश्य जरूर थे। उत्तेजित भाषण नारे आदि कुछ भी नहीं।
वसुंधरा राजे पर वार करने का या चेतावनी देने का यह एक तरीका ही माना जा सकता है। किसके कहने पर या किसके इशारे पर यह खेल हो रहा है। लोग जानते हैं। मंदिरों के तोड़े जाने का एक विषय या बहाना खोजा गया। यह इसलिए लिख रहा हूं कि पूर्व वर्ती कांग्रेस की अशोक गहलोत की सरकार में संपूर्ण प्रदेश में सड़कों में आने वाले व सड़कों के विस्तार विकास में आने वाले मंदिरों व अन्य धार्मिक स्थलों को हटाने की सूची तैयार हुई थी। उस समय जहां जहां नगरपालिकाओं में कांग्रेस के बोर्ड थे व उनका रूखा रवैया था वहां पर राजनैतिक दलों व अन्य जागरूक लोगों व संगठनों द्वारा आवाज भी उठाई गई व धार्मिक स्थलों को हटाने नहीं दिया गया था।
अशोक गहलोत की सरकार के काल में ही मेट्रो ट्रेन का कार्य जयपुर में शुरू हो चुका था।
वसुंधरा पर वार करने के लिए मंदिर मुद्दे को चुना जाना चकित करने वाला नहीं होना चाहिए क्योंकि हमारे देश में धार्मिक मुद्दे पर जनता को एकत्रित करना आसान होता है। संघ व संगठन अन्य भ्रष्टाचार या दुराचार गलत घटिया निर्माण या घोटालों पर आंदोलन करते नहीं दिखते।
यह मुद्दा चुना गया और इसमें जो तरीका चुना गया उसे हवाई फायर कहना चाहिए।
इसे अन्य नाम भी दिए जा सकते हैं चिडिय़ों को उड़ाने के लिए या खुशी में केवल धमाका कारतूस चलाए जाते हैं। आवाज करने के लिए।
वसुंधरा पर वार करना इसलिए नहीं कह रहा कि अगर वार कान नाक को सिर को छूता हुआ हो तब कहा जाता है कि वार फलां पर किया गया। जिस पर किया गया हो वह डर भी जाए। ऐसा वार करने वाले की हिम्मत भी होनी चाहिए। चिडिय़ों को उड़ाने वाले धमाकों से वसुंधरा डरने वाली नहीं।
यह बात घर छोड़ कर या खेत की ढाणी छोड़ कर भाग जाने की नहीं है। खेत की ढ़ाणी भी कोई नहीं छोड़ता। देश के बहुत बड़े प्रदेश राजस्थान की सत्ता छोड़ कर भाग जाना मामूली नहीं हो सकता। वसुंधरा राजे इतनी कच्ची नहीं है कि धमाकों या हवाई फायरों से डर जाए।
मेरा ख्याल है कि जयपुर की 2 घंटे की अपने ही पाले में खेली गई कबड्डी का परिणाम सत्ता बदलाव में आना संभव नहीं। हां, वसुंधरा को यह बतलाया गया है कि संघ राजी नहीं है।
मैं यहां संघ नाराज है शब्द नहीं लिख रहा। हालांकि दोनों की बात एक जैसी ही नजर आती है मगर दोनों की तासीर में अंतर है। संघ के मंदिर टूटते जाने पर अब आने पर उत्तर दिया गया है कि संघ का कार्य करने का अपना तरीका है और वह जब उचित होता है तब कार्यक्रमों में सहयोग करता है।
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