रविवार, 16 जुलाई 2017

तुम लिपटकर मेरे तन से,चढ़ जाती शिखर- कविता


तुम लता होती और मैं हरियाला पेड़

तुम लिपटकर मेरे तन से,चढ़ जाती शिखर पर,

मैं कोशिश कर तुम्हें दिखलाता नीलगगन

 और दूर की पर्वत श्रृंखला।

तुम्हारे मद मस्त पुष्पों को छूने का

मेरा मन करता।

मेरे छूने की अभिलाषा

तुम्हारे लोच से रह जाती अपूर्ण।

मगर,मैं तुम्हारे पुष्पों की 

मधु गंध को खींच लेता

श्वास से भीतर अंतर मन तक।

तुम सावन की बादली सी

उड़ती निकल जाती।

मगर मैं तृप्त हो जाता

मोती सरीखी बूंदों से,

यह भीगना और सुगंध से

भीतर तक गद गद होना

मेरा तुम्हारा मिलन ही कहलाता।

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करणीदानसिंह राजपूत,

 पत्रकार,सूरतगढ़।

9414381356.

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