कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने नशा मुक्ति के लिए क्या कदम उठाए थे या केवल देखती रही?
- करणीदान सिंह राजपूत-
पंजाब हिंदुस्तान का अन्न उत्पादन में सर्वाधिक महत्व रखने वाला छोटा सा प्रांत जहां पिछले कुछ सालों से युवाओं में नशे की प्रवृति बढ़ती ही जा रही है।करोड़ों रुपए की ड्रग्स पकड़ी जाती है और जो नहीं पकड़ी जाती वह भी न जाने कितने करोड़ की होती होगी। पंजाब में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति का सारा दोष भारतीय जनता पार्टी और अकाली दल के गठबंधन से बनी सरकार पर थोपा जाता रहा है। इस पर फिल्में भी बनी, भाषण हुए, प्रदर्शन हुए।
एक बहुत बड़ा सवाल पैदा होता है कि क्या सारा दोष भाजपा अकाली दल की सरकार का रहा है?
पंजाब में बड़े नामी अंतर्राष्ट्रीय साधु-संतों के विशाल डेरों से लेकर छोटे डेरों की संख्या करीब 9000 बताई गई है। यह संख्या अपने आप में बहुत बड़ी है। ये बड़े बड़े साधु संत इनके अनुयाई कहते रहे हैं कि वे नशे के विरुद्ध हैं। इनका दावा रहा है कि नशा करने वाले को प्रेरित करके नशा छुड़वाते रहे हैं। इन लोगों ने निश्चित रूप से नशा छुड़वाया भी होगा।
इसके अलावा जो राजनीतिक दल कांग्रेस आम आदमी पार्टी मुख्य रूप से नशा बढ़ाने का आरोप भाजपा अकाली गठबंधन सरकार पर लगाती रही हैं। उनसे एक सवाल है कि इन पार्टियों के पदाधिकारी कार्यकर्ता और संगठन नशे की बढ़ोतरी रोकने के लिए क्या करते रहे? कब कब इन्होंने कदम उठाए? इन लोगों ने कितने शिविर लगाए ?
इन लोगों ने कितने लोगों का नशा छुड़वाने में मदद की ?जब आरोप लगाते हैं तो यह भी बताना चाहिए कि उन्होंने नशा छुड़वाने का कितना प्रयास किया?
यह भी बताएं कि सत्ताधारी पार्टी भाजपा और अकाली गठबंधन की सरकार ने उनके नशा मुक्ति कार्य में बाधाएं खड़ी की। कम से कम यह साबित तो करना चाहिए।
जब 9000 साधु संतों के डेरे हैं।कांग्रेस औरआम आदमी पार्टियों क् संगठन है।
तब अकेली सरकार पर आरोप लगाना कितना उचित होगा।
इन राजनीतिक दलों को चुप बैठे रहने की क्या आवश्यकता रही? वे भी तो काम कर सकते थे।
भारतीय जनता पार्टी और अकाली दल का गठबंधन किन किन कारणों से आज जनता से विमुख बताया जा रहा है। उसके ऊपर चाहे जितने आरोप लगाए जाएं लेकिन सवालों के घेरे में अन्य राजनीतिक दल भी हैं जिन्होंने पंजाब को नशा मुक्त करने के लिए एक भी कदम नहीं उठाया। कभी एक पल भी काम करने की कोशिश नहीं की।
कांग्रेस पार्टी ने और आम आदमी पार्टी ने कभी भी कहीं नशा मुक्ति का शिविर लगाया हो लोगों को प्रेरित किया हो तो वे मेरे सवालों का जवाब दे सकते हैं,अन्यथा वे भी सवालों के घेरे में हैं।
वोट देना और अपनी मर्जी की सरकार चुनना हर व्यक्ति का अपना अपना नजरिया है। मैं उस नजरिए से किसी को भी प्रभावित करने की कोशिश नहीं कर रहा।
मेरे लेख से पंजाब के लोग प्रभावित हो पाएंगे या नहीं लेकिन यह सवाल है और उसका उत्तर कांग्रेस पार्टी आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता इनके अलावा वे लोग जो साधु-संतों के डेरों में जाते हैं अनुयाई हैं वे जवाब दे सकते हैं। इतने साधु-संतों के होते हुए पंजाब में युवा लोगों में नशा कैसे बढ़ता रहा?
- करणीदान सिंह राजपूत-
पंजाब हिंदुस्तान का अन्न उत्पादन में सर्वाधिक महत्व रखने वाला छोटा सा प्रांत जहां पिछले कुछ सालों से युवाओं में नशे की प्रवृति बढ़ती ही जा रही है।करोड़ों रुपए की ड्रग्स पकड़ी जाती है और जो नहीं पकड़ी जाती वह भी न जाने कितने करोड़ की होती होगी। पंजाब में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति का सारा दोष भारतीय जनता पार्टी और अकाली दल के गठबंधन से बनी सरकार पर थोपा जाता रहा है। इस पर फिल्में भी बनी, भाषण हुए, प्रदर्शन हुए।
एक बहुत बड़ा सवाल पैदा होता है कि क्या सारा दोष भाजपा अकाली दल की सरकार का रहा है?
पंजाब में बड़े नामी अंतर्राष्ट्रीय साधु-संतों के विशाल डेरों से लेकर छोटे डेरों की संख्या करीब 9000 बताई गई है। यह संख्या अपने आप में बहुत बड़ी है। ये बड़े बड़े साधु संत इनके अनुयाई कहते रहे हैं कि वे नशे के विरुद्ध हैं। इनका दावा रहा है कि नशा करने वाले को प्रेरित करके नशा छुड़वाते रहे हैं। इन लोगों ने निश्चित रूप से नशा छुड़वाया भी होगा।
इसके अलावा जो राजनीतिक दल कांग्रेस आम आदमी पार्टी मुख्य रूप से नशा बढ़ाने का आरोप भाजपा अकाली गठबंधन सरकार पर लगाती रही हैं। उनसे एक सवाल है कि इन पार्टियों के पदाधिकारी कार्यकर्ता और संगठन नशे की बढ़ोतरी रोकने के लिए क्या करते रहे? कब कब इन्होंने कदम उठाए? इन लोगों ने कितने शिविर लगाए ?
इन लोगों ने कितने लोगों का नशा छुड़वाने में मदद की ?जब आरोप लगाते हैं तो यह भी बताना चाहिए कि उन्होंने नशा छुड़वाने का कितना प्रयास किया?
यह भी बताएं कि सत्ताधारी पार्टी भाजपा और अकाली गठबंधन की सरकार ने उनके नशा मुक्ति कार्य में बाधाएं खड़ी की। कम से कम यह साबित तो करना चाहिए।
जब 9000 साधु संतों के डेरे हैं।कांग्रेस औरआम आदमी पार्टियों क् संगठन है।
तब अकेली सरकार पर आरोप लगाना कितना उचित होगा।
इन राजनीतिक दलों को चुप बैठे रहने की क्या आवश्यकता रही? वे भी तो काम कर सकते थे।
भारतीय जनता पार्टी और अकाली दल का गठबंधन किन किन कारणों से आज जनता से विमुख बताया जा रहा है। उसके ऊपर चाहे जितने आरोप लगाए जाएं लेकिन सवालों के घेरे में अन्य राजनीतिक दल भी हैं जिन्होंने पंजाब को नशा मुक्त करने के लिए एक भी कदम नहीं उठाया। कभी एक पल भी काम करने की कोशिश नहीं की।
कांग्रेस पार्टी ने और आम आदमी पार्टी ने कभी भी कहीं नशा मुक्ति का शिविर लगाया हो लोगों को प्रेरित किया हो तो वे मेरे सवालों का जवाब दे सकते हैं,अन्यथा वे भी सवालों के घेरे में हैं।
वोट देना और अपनी मर्जी की सरकार चुनना हर व्यक्ति का अपना अपना नजरिया है। मैं उस नजरिए से किसी को भी प्रभावित करने की कोशिश नहीं कर रहा।
मेरे लेख से पंजाब के लोग प्रभावित हो पाएंगे या नहीं लेकिन यह सवाल है और उसका उत्तर कांग्रेस पार्टी आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता इनके अलावा वे लोग जो साधु-संतों के डेरों में जाते हैं अनुयाई हैं वे जवाब दे सकते हैं। इतने साधु-संतों के होते हुए पंजाब में युवा लोगों में नशा कैसे बढ़ता रहा?