बिहार चुनाव:हार के डर से महिला खातों मे रू.भाजपा को डर.

* करणीदानसिंह राजपूत *
देश के महाराजा को भी हार का डर लगा और 1करोड़ 40 लाख महिलाओं के हरेक बैंक खाते में 10 हजार रू.डाल कर डर को खत्म करने का बड़ा प्रयोग किया गया है। देश के विधानसभा चुनावों के इतिहास में बांटी गई यह बहुत बड़ी रकम है। इतनी बड़ी रकम बांट कर क्या यह पक्का माना जा सकता है कि इससे हार जीत में बदली जा सकती है? यह तो निश्चित ही माना जा सकता है कि बदलाव होने का डर तो रहा है और हार का डर नहीं होता तो यह रकम बांटी नहीं जाती।
बिहार चुनाव पर जब चर्चा होती है तो यही कहा जाता है कि इस बार बदलाव हो सकता है। यह बदलाव शब्द लोगों की जुबान पर आ रहा है तो इसको मामूली तो नहीं समझा जा सकता। जनता का मूड बदलाव का है तो क्या 10 हजार रू.वोटर का दिमाग बदल सकते हैं? आखिर यह रकम किसी की हैसियत बदलने के लिए तो बड़ी रकम नहीं है। एक साल यानि 12 महीने के लिए तो हर माह 833 रू.बनते हैं। लाखों लोगों पर हरेक पर 8-10 हजार रू.तो कर्जा होना मामूली है और लोग कर्जा चुका कर खाली के खाली हो गये होंगे। यह तो लोग जानते ही हैं कि चुनाव से पहले यह रू. बांटने का मतलब क्या है,चाहे कागजी योजना कुछ भी बनाई गई हो।
👌 केंद्र में मोदी राज,बिहार में नितिश राज। केंद्र और बिहार में एनडीए राज। इसे कह सकते हैं भारतीय जनता पार्टी का राज। विकास और नौकरियां दी हुई होती तो हार का डर नहीं होता और रू. नहीं बांटे जाते।
👌 दिल्ली में आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार चुनाव से पहले बिजली आदि में छूट दे तो भाजपा को बुरा लगे,लेकिन मोदी रू. बांटे तो भाजपा को सुहाए। सवाल यह भी है कि छूट के बाद क्या आम आदमी पार्टी सरकार लौटी। दिल्ली में आप को बदल डाला और वहां भाजपा सिरमौर सरकार बन गई। यदि बिहार में जनता का मन बदलाव का हो चुका है तो फिर भाजपा सिरमौर सरकार का आना मुश्किल होगा। अगर ऐसा हो गया तो केंद्र की एनडीए सरकार भी खतरे में आएगी। यह खतरा भाजपा पर होगा यानि कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राज पर होगा।
👌 चुनाव से पहले दस हजार रू. खातों में डालने वालों ने रेल में वरिष्ठ यात्रियों को दी जाने वाली रियायत लागू नहीं की जो कोरोना काल से लागू है। बिहारी हो या अन्य गरीब जो साठ साल से ऊपर होकर भी घर से दूर कहीं कामधंधा कर रोटी का जुगाड़ करता है, वह अपने घर और घर से काम वाले शहर तक रियायती यात्रा भी नहीं कर सकता,चाहे रेलें खाली सीट ही चलें। गरीब को जब यह समझ में आएगा तब कोई रू. बांट कर वोट को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेगा। कोरोना समय में कामधंधे बंद होने पर लोगों का अपने घर पहुंचना बहुत मुश्किल हुआ था।
👌 देश की ही नहीं संसार की सबसे बड़ी पार्टी कहलाने वाली पार्टी भाजपा प्रजातंत्र और संविधान बार बार बखान करती है लेकिन लेकिन अपनी पार्टी के संविधान का ही पालन नहीं करती और अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष नया नहीं चुन पाई है। बार बार जे.पी.नड्डा का कार्यकाल बढाती रही है। भाजपा से और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से यह प्रश्न तो किया जा सकता है कि अपनी ही पार्टी में यह एकतंत्र जैसा राज क्यों है? यह प्रश्न कैसे पूछा जाए? प्रेसकान्फ्रेंस में पूछा जा सकता है लेकिन संसार में ये एक मात्र प्रधानमंत्री हैं जो प्रेसकान्फ्रेंस आयोजित नहीं करते। शिलान्यास और उद्घाटन भी अन्य मंत्री नहीं, प्रधानमंत्री करे और विदेश यात्राएं भी अकेले ही करें। सवाल तो अनेक हैं और ये सभी सवाल बिहार की जनता को बहुत कम समय में कैसे समझाए जाए और कौन समझाए। यहां ये सभी प्रश्न अकेले बिहार के लिए नहीं अन्य राज्यों के गरीबों के लिए भी महत्व रखते हैं।
मतदाता सूची का परीक्षण सारे देश में परेशानी पैदा कर रहा है। नये फोटो का मतलब हर परिवार पर सैंकड़ों रू. का बोझ डाल दिया गया। गरीब को अन्न योजना में भी अब तो अनेक बाधाएं खड़ी कर दी जिस कारण लोग उससे भी वंचित हुए। लोग बिहार के चुनाव को बड़ा महत्वपूर्ण मानते हैं कि बदलाव संभव हो सकता है। अखबार तो डरे हुए डराए हुए हैं सो यह शब्द छापने से डरते हैं फिर भी अनेक आशाएं हैं। भाजपा को फिर से सरकार बनाने का विश्वास है। इस बार प्रमुख रूप से त्रिकोणीय टक्कर होगी। सभी की नजरें मतदाताओं पर है कि परेशानियों में होता हुआ भी वह राज पलटता है या वापस एनडीए को भाजपा राज को कायम रखता है?
करणीदानसिंह राजपूत,
62 वर्ष से पत्रकारिता. उम्र 80 वर्ष.
मो. 94143 81356.
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