रविवार, 16 नवंबर 2025

प्रेस दिवस मतलब सूखा दिवस * करणीदानसिंह राजपूत *

 



राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर सुबह से लगातार पत्रकारों को बधाइयां मिल रही हैं।

शुभकामनाएं मिल रही है और यह सभी अब सोशल मीडिया पर मिल रही है। प्रेसवाले को यानि पत्रकार वाले को कुछ नहीं मिलता और भेजने वाले को कोई खर्च नहीं करना पड़ता। एक प्रकार से यह "सूखा दिवस" ही होता है।  इसमें किसी भी पत्रकार को कुछ नहीं मिल पाता। 

बधाइयां देते शुभकामनाएं लेते जरा सोचिए। समाचार संकलन पर,समाचार पत्र छापने पर समाचार प्रसारण पर, कार्यालय चलाने पर,वाहन चलाने पर,कुछ भी खर्च नहीं होता इसीलिए तो  कोई भी संगठन हो कोई भी व्यक्ति हो जिसके समाचार साल भर छपते हैं साल भर प्रसारित होते हैं, वह व्यक्ति और संगठन प्रेस दिवस पर  ₹1 खर्च नहीं करता। कोई खर्च करना भी नहीं चाहता क्योंकि जब उसका सारा काम सब कुछ अखबारी लाइन के लोग एकदम मुफ्त में करने को तैयार होते हैं, मुफ्त में करते हैं,पत्रकार वार्ता में अपने खर्चे पर जाते हैं अपने खर्चे पर लौटते हैं तो सोचिए कि कोई भी व्यक्ति कोई भी संस्था पत्रकार पर पैसा क्यों खर्च करना चाहेगी?  प्रेस को सारे साल इस्तेमाल करने वाले लोग प्रेस दिवस पर कारण में बता चुका हूं कि जब सारा काम प्रेस वाले मुफ्त में करते हैं तो फिर कोई मूर्ख होगा जो उन पर खर्च करेगा।

 हां,एक सवाल जरूर उठता है कि पत्रकार के पेट होता है या नहीं, परिवार होता है या नहीं? पत्रकार से यही कहना चाहिए कि भाई इस लाइन में आए हो तो छड़े मलंग रहो,न शादी करनी है न बच्चे पैदा करने हैं। क्योंकि परिवार चलाने के लिए पैसे की आवश्यकता है और वह हम लोग संस्थाएं तुम्हें देंगे नहीं तो अच्छा है कि छड़े मलंग रहो।

* आश्चर्यजनक बात यह है कि जो लोग व संस्थाएं  पत्रकारों को बधाइयां और शुभकामनाएं देते हैं,वे आवश्यकता पड़ने पर पत्रकार का साथ नहीं देते। सभी चाहते हैं कि पत्रकार भ्रष्टाचार के खिलाफ लिखे, पत्रकार व्यवस्था के खिलाफ लिखे, पत्रकार शासन प्रशासन के खिलाफ लिखे, अधिकारियों के खिलाफ लिखे,नेताओं के खिलाफ लिखे, पत्रकार सच लिखे और उस पर कोई मुकदमा हो जाए न्यायालय में कोई केस दर्ज करा दे या अन्य कोई झूठे मुकदमे में फंसा दे तब एक भी संस्था एक भी व्यक्ति पत्रकार के साथ खड़ा नहीं होता।

 उस समय अनेक की राय होती है कि चलो एक तो फंसा। उसको बचाने की कोई कोशिश नहीं होती। फंस जाने पर खुशी मनाने वालों की संख्या बहुत होती है। यह सोचने वाली स्थिति है की पत्रकार ने किसी का कुछ खाया नहीं, लिखा तो सच था। किसी भ्रष्ट व्यक्ति के समाचार पचे नहीं और उसने मुकदमा ठोक दिया तो पत्रकार का साथ दिया जाना चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं। सब कुछ उल्टा होता है। इसमें भ्रष्ट लोगों का साथ वे लोग भी देते हैं जो पत्रकारिता लाइन में केवल कुछ कमाने के लिए घुसे होते हैं। उनको सच और झूठ से कोई मतलब नहीं होता। 

इस प्रकार की स्थिति में प्रेस दिवस मनाते रहें। चाहे अपने आप को गौरवशाली महसूस करते रहें लेकिन यहां एक बात और कहना चाहता हूं की सोशल मीडिया पर जो बधाइयां और शुभकामनाएं मिलती है वे भी सीमित संख्या में ही मिलती हैं। वे भी

 सैकड़ो की संख्या में नहीं होती। कुछ लोग अपना एक प्रचार बधाई शुभकामना का बनाते हैं और सोशल मीडिया पर लगा कर खुश हो जाते हैं। बस यही है प्रेस दिवस।०0०









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