सूरतगढ़:प्रियंका बेलाण के कार्यक्रम:उपस्थिति बेहद कम:महिलाएं पांच सात
* करणीदानसिंह राजपूत *
श्रीगंगानगर लोकसभा सीट की भाजपा प्रत्याशी प्रियंका बेलाण ने टिकट मिलने के बाद नाम के साथ मेघवाल लिखना शुरू कर दिया ताकि राजनैतिक व वोटों का लाभ मिले लेकिन सूरतगढ़ में कार्यकर्मों में कितने मेघवाल नेताओं की कार्यकर्ताओं की उपस्थिति थी? वैसे सभी नेताओं कार्यकर्ताओं पदाधिकारियों व जनता की गिनती कर ली जाए तो वह आगे के कार्यकर्मों में मार्गदर्शन और सीख का काम करेगी। यह कमी क्यों रही? इसमें प्रियंका बेलाण को मालुम नहीं लेकिन सूरतगढ़ भाजपा कासनिया टीम को तो मालुम होगा। नगरमंडल अध्यक्ष सुरेश मिश्रा महामंत्री लालचंद शर्मा को मालुम होगा क्योंकि उनका क्षेत्र और उनका बुलावा था। अपने संपर्को को संभालें कि लोग सौ से ज्यादा क्यों नहीं आए? भाजपा के ही कार्यकर्ता नहीं आए।
चुनाव कार्यालय का शुभारंभ पूर्व विधायक रामप्रताप कासनिया और जिलाध्यक्ष शरणपालसिंह ने किया आरती की। किसी बड़े मेघवाल राजनैतिक नेता या समाजसेवी को भी इस अवसर पर शामिल किया जाना अच्छा रहता।
सूरतगढ़ में चुनाव कार्यालय शुभारंभ पर एक अप्रैल को बुलावे के बावजूद नेताओं कार्यकर्ताओं की उपस्थिति सौ की संख्या तक रहना और उसमें भी महिलाओं की संख्या दस तक भी नहीं होना कोई अच्छी स्थिति नहीं थी।महिला पदाधिकारी आईं लेकिन कितनी महिलाएं साथ लाईं? भाजपा के पार्षद ही सारे नहीं आए। हर नेता अकेला। एक एक नेता पांच दस भी साथ नहीं ला पाता तो वह नेता कहलाने का हकदार कैसे हो सकता है। विधानसभा चुनाव में भी ऐसी ही हालत रही थी।
दो अप्रैल के कार्यक्रम हुए उनमें भी गिनती के वही चेहरे नारे लगाते हुए थे जो हर भाजपा कार्यक्रम में धरना प्रदर्शन में होते हैं। एक प्रकार से इनके घेरे में कार्यक्रम हुए। इन्होंने घेरा बना लिया ताकि हर फोटो हर विडिओ में ये दिखाई दें। सबसे अधिक काम करने वाले सबसे अधिक पार्टी के वफादार।
सूरतगढ़ सीट खोखली अकड़ में 50 हजार से अधिक वोटों से खो दी और रामप्रताप कासनिया धड़ाम से धरती पर आ गिरे। इसके बाद कासनिया टीम और मंडल मोर्चों को सुधार कर विनम्र होना था लेकिन नहीं हो पाए। इसकी वजह से नगरपालिका में भाजपा अध्यक्ष होते हुए भी काम नहीं हुए। भाजपा का नगर मंडल और सूरतगढ़ के ही जिलाध्यक्ष शरणपालसिंह तथा रामप्रताप कासनिया,संदीप कासनिया टीम का जो व्यवहार रहा काम नहीं हुए जिसके कारण लोग बहुत अधिक नाराज हैं। लोकसभा चुनाव में भी यह नाराजगी असर डालेगी। इस टीम के घेरे से निकलना बहुत मुश्किल है क्योंकि ये घेरा बनाने में सिद्धहस्त हैं लेकिन अन्य को साथ मिलाकर साथ लेकर चलना समझदारी हो सकती है। एक सूरतगढ़ ही नहीं जहां विधानसभा क्षेत्रों में विधानसभा चुनाव में हार हुई है वहां पराजित नेताओं को लोग देखना नहीं चाहते इसलिए हर स्थान पर अन्य लोग साथ रखना जरूरी है। असावधानी खतरे भरी रहेगी और जो पहले हारे हुए हैं उनको आगे कुछ हानि नहीं होगी।०0०