बुधवार, 2 अगस्त 2023

घग्घर की मौत की दलदल 1982 में गुरूशरण छाबड़ा करणीदानसिंह बीरबलसैनी की यात्रा.

 



* करणीदानसिंह राजपूत *

घग्घर की मौत की दलदल में पूर्व विधायक गुरूशरण छाबड़ा,बीरबलसिंह सैनी और मैं करणीदानसिंह राजपूत 1982 में घग्घर में बहे डूबे बारेकां और रंगमहल की दुर्दशा को लोगों की पीड़ा को देखने गए और लौटे तब हम सच्च में मौत के मुंह में चल रहे थे। हर पल किसी गहराई में गड्ढे में दलदल में समा जाने का खतरा और बचाने वाला कोई भी नहीं। दूर दूर तक दलदल और पानी। 

पूर्व विधायक गुरूशरण छाबड़ा के पास कुछ नहीं था। बीरबलसिंह सैनी के हाथ में लाठी और मेरे पास एक बॉक्स कैमरा था। गुरूशरण छाबड़ा 1977 में सूरतगढ़ से विधायक बने थे और उस समय विधानसभा  5 साल की अवधि पूरी नहीं कर पाई थी। पत्रकारिता राजनीति और लोगों के बीच पहुंचने का बड़ा जोश जुनून होता था। 

मै अब यह लिख रहा हूं। 2 अगस्त 2023 को 78 वां वर्ष चल रहा है और  दलदली यात्रा के समय करीब 36 साल का,छाबड़ा जी करीब 33 साल के और बीरबलसिंह सैनी अभी 71 के उस समय करीब 30 साल के थे। सूरतगढ़ सैनी गार्डन मैरिज स्थान के संस्थापक मालिक हैं। 

सूरतगढ़ के समीप घग्घर डिप्रेशन जिनको लोकभाषा में घग्गर झीलें ( कृत्रिम) पानी से भरी जाती। बहाव क्षेत्र में भी खतरा होता था। इसलिए पानी झीलों में डाला जाता। एक झील से दूसरी झील में पानी टिब्बा काट खर डाला जाता है जिसे कट कहते हैं।  

18 सितंबर 1982 को कट नं 5 पर एक अस्थायी रेग्युलेटर रेत के भरे बोरों से बनाया गया। जहां से थोड़ी नियंत्रित मात्रा में पानी निकालना था। यहां गड़बड़ हो गयी या लापरवाही में कर दी गई। उक्त रेग्युलेटर

19 सितंबर 1982 को टूट गया और बह गया।

पानी का तेज बहाव कुछ भी नहीं छोड़ता। वही हुआ। 

बारेकां और रंगमहल डूब गये थे। खेतों में दो तीन फुट और अधिक रेत मिट्टी आने से मौत बुलाती दलदल बन गई थी। तीन मौतें हो गई थी। बारेकां का बंधा तोड़ता पानी गाँव में घुस गया। चालीस पचास घर टूट गये। लोग जान बचाकर भागे। सामान दब गया। रंगमहल में भी करीब पचास घर नष्ट हो गये। पशु पानी में बह गये मर गये गांवों में घरों में और ढाणियों में खूंटों से बंधे दुधारू  डूब जाने से मर गये। 

सूरतगढ़ बीकानेर में राजस्थान पत्रिका का जोधपुर संस्करण आता था। 25 सितंबर 1982 को बहुत बड़े कटाव के फोटो के साथ यह समाचार छपा था। * सूरतगढ़ के प्रसिद्ध वर्मा स्टुडियो के मालिक गोपीराम वर्मा जी ने यह फोटो उपलब्ध कराया था।  वर्मा स्टुडियो वर्तमान में रेलवे रोड पर महाराणा प्रताप चौक और भगतसिंह चौक के लगभग बीच में है।*

इस अंक की फोटोकॉपी यहां दी गई है।

* अस्थायी रेग्युलर बनाया गया और पानी सीमित मात्रा में निकालना शुरू हुआ था तब मुझे बीकानेर जाना पड़ा। मैं घग्गर बाढ नियंत्रण विभाग के अधिकारियों से पूछकर गया कि बीकानेर जाना चाहता हूं,जाऊं या नहीं जाऊं? अधिकारियों ने कहा सीमित मात्रा को थोड़ा थोड़ा बढाएंगे, आप दो दिन बीकानेर हो आओ। पूछा इसलिए कि मैं घग्घर की हर पल हर दिन की जानकारी रखता और पत्रिका में छपवाता था। 

बीस सितंबर को सुबह करीब दस बजे कोटगेट के भीतरी तरफ भवानी शंकर (भवानी भाई) के कार्यालय के पास था। वे पत्रिका के बीकानेर से  ब्यूरो चीफ थे। वहां पर सूरतगढ़ निवासी एक व्यक्ति ने कहा'आप यहां घूम रहे हो सूरतगढ़ में तो कट ने 5 बह गया। वास्तव में बहुत चिंता हुई।  मैं सूरतगढ़ लौटा और गुरूशरण छाबड़ा बीरबलसिंह सैनी तीनों निकल पड़े वीभत्स हालात जानने। रंगमहल गांव से आगे दूर तक पानी दलदल ही दिखाई पड़ रहा था। बारेकां जाना था और कोई साथ रास्ता दिखाने साथ चलने को तैयार नहीं था। मौत की दलदल में जाना खतरे से खाली नहीं था। रंगमहल से बारेकां की ओर हम तीनों चल पड़े। पांव घुटनों तक दलदल में धंसते। एक पांव निकाल कर आगे रखते। वह दलदल में धंस जाता तब दूसरा पांव निकाल कर आगे दलदल में रखते। हर समय किसी गहराई में गड्ढे में धंस जाने का खतरा। अंदर गये तो ऊपर दलदल फैलते एक दो मिनट। उस समय के हालात का अनुमान लगाएं कि हम तीनों अपने जोश में जुनून में किन हालातों मे आगे बढ रहे थे। बीरबलसिंह सैनी जरूर लाठी दलदल में डाल कर चल रहा था। बातें भी करते रहे और देखते भी रहे। कभी कभी कोई पक्षी ऊपर से निकल जाता। 

* कुछ घंटे चलने के बाल बारेकां दिखाई देने लगा। लगा कि आधा किलोमीटर दूरी पर है। जल्दी ही पहुंच जाएंगे। 

* मैंने जल्दबाजी की। पांव निकाल कर आगे रखना फिर दूसरा निकालना। भूल कर बैठा। जल्दी से पीछे वाला एक पांव निकला नहीं आगे का दूसरा दलदल में ही था। मैं गिरा और कैमरा कंधे से छिटक कर दूर पानी में जा गिरा। कैमरा चलाकर देखा। शटर खराब हो गया। नहीं चल पाया। पत्रकार शिवकुमार गर्ग का कैमरा था जो बाल में दिल्ली से ठीक करवाया और लौटाया। शिवकुमार वर्तमान में जयपुर में समाचार पत्र संपादन प्रकाशन कर रहे हैं।

* बारेकां पहुंचे। जन सहयोग से संस्थाएं कंबल,वस्त्र, खाने की सामग्री बांट रही थी। सूरतगढ़ पीलीबंगा की संस्थाएं सहयोग में लगी थी। सूरतगढ़ से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक पहुंचे हुए दबा हुआ सामान निकालने में लगे हुए थे। बारेकां के काफी लोग ऊंचे टिब्बे पर आकर बैठ गये। आज उसे नयी बारेकां कहते हैं।

यह सब देखा। फोटो नहीं खींच पाने का मलाल रहा। एक पत्रकार की इस पीड़ा का अनुमान लगाएं।  बारेकां से वापस दलदल में से लौटना। सूरतगढ़ फार्म रंगमहल ब्लॉक में से लौटने का सोचने लगे। मालुम हुआ की कीकर बबूल के सूलों जैसे कांटे। दोनों पैरों में चुभ गये तो पानी में डूबकर हर हालत में मौत। वहां पानी तीन से चार फुट तक भरा हुआ। 

आखिर जिस तरह से बारेकां गये वैसे ही लौटे।

लौटते वक्त रंगमहल की ढाब ( तालाब) की गहराई में चले जाते। पानी में मालुम नहीं पड़ा कि आगे तालाब में घुस रहे हैं। एक आवाज सुनाई पड़ी। आगे ढाब है। पीछे जाकर दूर से आओ। कहावत है डूबते को तिनके का सहारा।

आवाज कानों में पड़ते ही पास में ऊगे घास के तिनके को पकड़ लिया। 

आवाज गंगाजल नायक की थी। उनके बताए अनुसार दूर पीछ हटकर गांव में घुसे। रंगमहल गांव में गंगाजल नायक के यहां चारपाईयों पर बैठ कर चाय पी और सूरतगढ़ लौटे। 

बहाव में मृत के परिवार को कृषि भूमि देने की घोषणा हुई जिसकी कार्यवाही बड़ी परेशानियों के बाद पूरी हुई।०0०

2 अगस्त 2023.

करणीदानसिंह राजपूत,

पत्रकार,

( राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत)

सूरतगढ़ ( राजस्थान)

94143 81356.



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