20 जुलाई 1980 से शुरू हुआ सफर 20 जुलाई 2017 तक के 37 सालों में बेमिसाल रहा। वैवाहिक बंधन शब्द इस सफर के लिए जंचता नहीं। यह तो संग संग चलने का एक अनूठा संकल्प था जो संघर्षों में कठिनाईयों में सुख और दु:ख में निरंतर कुछ न कुछ उपलब्धियों के साथ आगे बढ़ रहा है। समय अच्छा बुरा दोनों ही प्रकार का आता रहा लेकिन उस पर कुछ कहने के बजाय सीख के रूप में ग्रहण करते हुए आनन्द के साथ कदम दर कदम चलते रहे।
इस साथ चलने की कल्पना नहीं की जा सकती मगर कर्म को महान मान कर चलने का मार्ग तय कर आगे बढते रहे।
मेरी माँ हीरा और पिता रतन ने हीरा रतन के रूप में जो शिक्षा दी थी वह अतुल्रीय थी। उस पर मैं चल रहा था।
विवाह के बाद जब विनीता का संग भी शुरू हुआ तब माँ और पिता ने माना कि विनीता बहुत समझदार है।
मैं माँ को बहुत समझदार मानता था कि उनकी हर बात में सहजता के साथ परिवार उत्थान झलकता था।
पत्नी विनीता ने अपने तोमर परिवार की सीख के साथ यहां आने के बाद बैंस परिवार की सीख को भी आत्मसात कर लिया। मां को लगने लगा कि विनीता भी बहुत समझदार है। कुशलता भरा हर कदम होता है।
लोग आजकल कहने लगे हैं' कन्या बचाओ' लेकिन हमारे बैंस परिवार में तो कन्या सदा सर्वदा पूजनीय रही।अपने घर का नाम पुत्री के नाम पर हो तो इससे बड़ा प्रेरणादायी और कुछ नहीं हो सकता।
विनीता को अपने घर की चाह थी। कुछ साल पहले अपने घर का निर्माण हुआ।
यह अपना घर पुत्री विजयश्री के नाम पर विजयश्री करणी भवन किया गया। सूर्याेदय नगरी में भवन के प्रवेश पर यही नाम विजयश्री करणी भवन लिखा हुआ दिल को हर्षाता है। प्रथम संतान पुत्री ही थी जो अब संसार में नहीं है। वह दिव्य संदेश देकर अनन्त में विलीन हो गयी। मगर उसकी तस्वीर उस पूजा स्थान पर है जहां सभी सुबह शाम पूजा अर्चना करते हैं। इसे भावना कह सकते हैं जो पूरे परिवार में समाई है।
बड़ा पुत्र योगेन्द्र प्रतापसिंह तो नमन करता है सुबह शाम। विजयश्री ने अपनी तीन साल की आयु में योगेन्द्र का नाम रखा था बंटी। आज भी घर पर यही नाम चल रहा है। मेरे व विनीता के इस बेमिसाल सफर में योगेन्द्र प्रतापसिंह का विवाह रीतिका भाटी से 3 दिसम्बर 2014 में हुआ। बहु रूप में आई रीतिका बेटी के रूप में आनन्दित है।
छोटा पुत्र रविप्रतापसिंह सोफ्टवेयर इंजीनियर है। उसका विवाह सोफ्टवेयर इंजीनियर साक्षी अरोड़ा संग हुआ है। पुत्रों के विवाह के बाद मेरे और विनीता के संग संग उठ रहे कदमों को और अनूठी कल्पनाएं और शक्ति मिली है।
पत्रकारिता और लेखन ईश्वरीय देन है जो सन 1966 से जारी है। यह कर्म करते 52 वर्ष हो गए हैं।
समय बलवान होता है। समय की महानता को सभी ने स्वीकार किया है,मगर सब कुछ ईश्वर के हाथ में है।
उसी ईश्वर को परम ब्रह्म को नमन।