रविवार, 24 मई 2020

पुलिस अनुसंधान में कितने कैसे होते हैं अधिकारियों के दबाव-विष्णुदत्त बिश्नोई की दबाव से आत्महत्या।


* करणीदानसिंह राजपूत *


+अभी तक और जो सुसाइड नोटों से पहली नजर में आता है कि अपराधों के इन्वेन्स्टिगेशन अनुसंधान में विष्णु दत्त पर दबाव रहे।
1-अपराधों के अनुसंधान पर निर्देशन डिप्टी( उप अधीक्षक पुलिस) का चलता है। डिप्टी के पास ही समीक्षा होती है और अदालत में पेश करने की चार्ज शीट भी डिप्टी ही मंजूरी देता है।
सारे इन्वेन्स्टिगेशन पर डिप्टी का पूरा नियंत्रण रहता है। डिप्टी के दिशा निर्देश को ही मानते हुए अनुसंधान अधिकारी को चलना होता है। वह डिप्टी के निर्देश जो की मौखिक ही होते हैं,के विपरीत चल नहीं सकता। यह दबाव होता है।
2-पेंडिंग व कई प्रकार के और अनुसंधान पर एसपी का निर्देश चलता है। एसपी के यहां क्राइम मीटिंग (समीक्षा) होती है,कमसे कम माह में एक समीक्षा बैठक तो होती ही है। एसपी का निर्देश आदेश पालन करते हुए अनुसंधान करना होता है। एसपी के निर्देश के विपरीत अनुसंधान अधिकारी जा नहीं सकता। यह दबाव रहता है।
3-डिप्टी और एसपी दोनों को हर केस का मालूम होता है।
4- सत्ता, पैसा,राजनीति आदि के शक्तिशाली ऊंचे पदों पर संपर्क करते हैं और वहां से दबाव अनुसंधान अधिकारी पर डलवाते हैं।
5- सरकार,प्रतिपक्ष, पुलिस का कांस्टेबल से लेकर महानिदेशक तक, वकीलगण,और न्यायप्रक्रिया के हर संबंधित लोग इस प्रकार के दबाव को जानते हैं।कोई भी अनजान अनभिज्ञ नहीं है। कोई अनुशासन के दबाव में नहीं बोलता तो कोई अपने रोजगार के नाम पर नहीं बोलते।
6-विष्णु दत्त के विभिन्न अनुसंधान जो हो गए और जो थाने में पेंडिंग हैं पर भी डिप्टी और एसपी दोनों को मालूम होगा कि कौनसे मामलों में थानाधिकारी पर इतना क्रूर दबाव था? नहीं मालूम वाली स्थिति हो ही नहीं सकती।
7- जांच में दबाव का खुलासा हो सकेगा। यह उम्मीद की जा सकती है।
लेकिन क्या राजस्थान का पुलिस विभाग बिना दबाव के सही जांच कर पाएगा? सही जांच के लिए हाल के अधिकारियों को वहां से हटाना भी संभव है ताकि वे जांच को प्रभावित नहीं कर सकें।
8-न्यायिक जांच और सीबीआई जांच में भी क्या अंतर है यह जानना चाहिए। दोनों ही जांचे सरकार ही करवाती है। केन्द्र सरकार इस मामले को सीधे ही सीबीआई को नहीं सौंपती। राज्य सरकार केन्द्र सरकार से सीबीआई जांच की मांग करती है। सीबीआई जांच में संबंधित अपराधियों को गिरफ्तार करने का अधिकार होता है। संपूर्ण जांच के बाद गिरफ्तारी या पहले भी हो सकती है तथा गिरफ्तारी के बाद आगे का अनुसंधान चलता है।
न्यायिक जांच पूर्ण होने पर राज्य सरकार को सौंपी जाती है। सरकार उस पर निर्णय करती है या नहीं भी करती। सरकार चाहे तो जांच रिपोर्ट सार्वजनिक भी नहीं की जाती। कार्यवाही करना तो दूर की कौड़ी होती है।
अनेक सालों में मामलों में जो होता रहा है।उसी की जो जानकारी मुझे है,उसी को यहां लिखा है। कहीं मामूली अंतर हो सकता है।
मैं चाहता हूं कि पुलिस,वकील, राजनीतिक लोग,सभी पढें।
राजगढ़ अपराध और राजनीति का 50 सालों से भी अधिक समय से गढ रहा है।
विष्णुदत्त बिश्नोई पर दबाव रहे और डीएसपी एसपी को मालूम नहीं हो,यह बात जंचती नहीं है। अनेक मामलों में पुलिस महानिदेशक, गृहमंत्री तक का दबाव रहता है। इन दबावों से अपराधियों को बचाने के लिए मुकदमों का रूप ही बदलवा दिया जाता है। अनुसंधान अधिकारी कितने दबाव में कितने तनाव में यह करने को मजबूर होता है? विष्णुदत्त बिश्नोई की आत्महत्या से बड़ा कोई प्रमाण नहीं हो सकता।
अभी गृहमंत्रालय मुख्यमंत्री आशोक गहलोत के पास ही है। मुख्यमंत्री को बिना विलंब के यह जांच सीबीआई से करवाने का निर्णय ले लेना चाहिए।
दि. 24 मई 2020.+

* करणीदानसिंह राजपूत,

पत्रकार,

सूरतगढ़

9414381356.

*******

यह ब्लॉग खोजें