सोमवार, 28 मार्च 2016

सूरतगढ़ सुपर थर्मल पावर स्टेशन 1 हजार करोड़ रू. के महाघाटे में:


सरकार इसे बार बार बंद कर प्राईवेट कंपनियों से बिजली खरीद रही है:
इंटक ने प्रदेश की बिजली कंपनियों का निजीकरण का विरोध किया:
स्पेशल रिपोर्ट- करणीदानसिंंह राजपूत

 
राजस्थान सरकार की गलत नीतियों के कारण बिजली कम्पनियां घाटे में जा रही है। दो वर्ष पूर्व तक मुनाफा कमाने वाला सूरतगढ़ थर्मल प्लांट वर्तमान में हजारों करोड़ के घाटे में चल रहा है। इसी कड़ी में वर्ष 1999 -2000 से वित्तीय वर्ष 2013-14 तक उच्च उत्पादन सहित राष्ट्रपति सहित अन्य राष्ट्रीय पुरुष्कार जीत चुका सूरतगढ़ सुपर थर्मल पावर स्टेशन भी विगत दो वर्षो में करीब एक हजार करोड़ रूपये के घाटे में है। 


राजस्थान सरकार पर आरोप है कि वह राज्य की पांचों विद्युत कंपनियों को निजी कंपनियों के हवाले करने की योजनाओं में लगी है।
राजस्थान इंटक के प्रदेशाध्यक्ष  जगदीश राज श्रीमाली एवम् प्रांतीय विद्युत मण्डल मजदूर फेडरेशन (इंटक) के प्रदेश अध्यक्ष रमेश व्यास के निर्देशानुसार सोमवार को राजस्थान की पांचो विद्युत कम्पनियो में निजीकरण के विरोध के तहत 28 मार्च  को सूरतगढ़ विद्युत उत्पादन मजदूर यूनियन (इंटक) के अध्यक्ष श्याम सुंदर शर्मा के नेतृत्व में प्रतिनिधि मण्डल ने मुख्य अभियन्ता जम्भ कुमार जैन के मार्फत मुख्य मंत्री व् ऊर्जा मंत्री को ज्ञापन प्रेषित किया।

ज्ञापन में लिखा गया है की प्रदेश सरकार की गलत नीतियों के कारण बिजली कम्पनियां घाटे में जा रही है। दो वर्ष पूर्व तक मुनाफा कमाने वाला सूरतगढ़ थर्मल प्लांट वर्तमान में हजारो करोड़ के घाटे में चल रहा है। इसी कड़ी में वर्ष 1999 -2000 से वित्तीय वर्ष 2013-14 तक उच्च उत्पादन सहित राष्टपति सहित अन्य राष्ट्रिय पुरुष्कार जीत चुके सूरतगढ़ थर्मल भी विगत दो वर्षो में करीब एक हजार करोड़ रूपये के घाटे में है। जिसका मुख्य कारण निजी क्षेत्र से कई गुना महंगी बिजली की खरीद सहित प्रदेश की थर्मल परियोजनाओं को लोड डिस्पैच सेंटर द्वारा बार बार बन्द करवाना है। ज्ञापन में लिखा गया है की कभी सुरतगढ़ थर्मल की 250-250 मेगावाट की सभी छह इकाईयों से विद्युत उत्पादन होता था लेकिन विगत दो वर्षो में मात्र एक या दो इकाइयो से ही बिजली उत्पादन किया जा रहा है। जिससे सूरतगढ़ थर्मल का विद्युत उत्पादन प्रतिशत मात्र 31.68 ही रह गया है। इसके आलावा बार बार इकाईयों को बन्द करने एवम् पुन: चालू करने में प्रति इकाई 50 से 60 लाख रूपये का फ्यूल आयल जलता है वहीं उपकरणों को भी नुकसान ज्यादा पहुंचता है। इसके आलावा कोयले की गुणवत्ता घटिया होने से भी बिजली महंगी पड़ रही है। जिसका मुख्य कारण कोयला खदानों में निजी कम्पनियो की भागीदारी है।

 ज्ञापन में लिखा गया है कि बिना जरूरत के ही आयातित विदेशी कोयले की खरीद भी घाटे के मुख्य कारणों में है। उन्होंने लिखा है की सूरतगढ़ थर्मल में बनने वाली बिजली की लागत वर्तमान में 4 रूपये 70 पैसे प्रति यूनिट आ रही है जबकि इसे प्रसारण निगम को 4 रूपये 08 पैसे में बेचा जा रहा है। ऐसे में सूरतगढ़ थर्मल को प्रति यूनिट 60 पैसे का नुकसान हो रहा है जो रोजाना करोड़ों रूपये में हो जाता है।

ज्ञापन देने वाले प्रतिनिधि मण्डल में महामंत्री बलीराम मेघवाल,कार्यकारी अध्यक्ष कंवरजीत सिंह, महावीर सांचौरिया, संयुक्त महामन्त्री नरेंद्र सिंह सिसोदिया,अजय सिडाना, वासुदेव शर्मा,सुरेन्द्र सिला, साहबराम, देवेन्द्र सिंह,दिनेश चावला, बृज लाल गोयल, अमरजीत सोलंकी, दीपक नागपाल आदि शामिल थे।

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