गुरुवार, 21 नवंबर 2013

राजा की इक तरफा हवा नहीं डूंगर गेधर से टक्कर है

भाजपा के राजा की और बसपा के डूंगर गेधर की टक्कर बतलाई जा रही है तो इक तरफा हवा कैसे हुई?
पिता चौधरी बीरबल भादू और ताऊ चौधरी मनफूलसिंह भादू के वक्त भी कभी नहीं थी इक तरफा हवा

पिछले चुनाव में गंगाजल मील साहेब की हवा बहाने वाले बतलाएं कि उनकी स्थिति कौनसे पायदान पर है?
 

------    खास टिप्पणी-----करणीदानसिंह राजपूत

सूरतगढ़ का विधान सभा चुनाव 2013.
बड़ा मजेदार। हर आदमी औरत में समझदारी घुस गई। समझो अक्लदाढ़ आ गई। पिछले चुनाव में मील साहेब की हवा बनाने वाले लोगों में और मीडिया के भी कुछ लोगों में इस बार राजा की फूंक का असर हो गया। दिन रात मील मील बोलने वाले और रात को मील साहेब का सपना लेने वालों ने एकदम  यू टर्न ले लिया। ये यू टर्न मीडिया की अखबार की भाषा है। सीधे सादे शब्दों में कहें कि पलटा मार गए। सडक़ पर कोई वाहन कार जीप ट्रक पलटा तार जाए तो नुकसान हो जाता है। इस पलटा मारने में नुकसान तो होने वाले का होता है। पलटा मारने वालों को लाभ ही लाभ हो जाता है। फूटे भाग उसके जो छूट गया। अब वे ही लोग राजा की हवा बनाने में लगे हैं।
दिन रात मील साहेब के यहां रोटी मोडऩे वाले अब कहते हैं- राजा की इक तरफा हवा है।
अब इन चाटुकारों को इतनी भी अक्ल नहीं है कि यह इक तरफा हवा वाली बात माने जाने वाली नहीं है।
राजा के पिता चौघरी बीरबल और ताया चौधरी मनफूलसिंह भादू के वक्त भी कभी इकतरफा हवा नहीं बही थी। उस वक्त तो केवल भादू ही भादू थे। तब भी इक तरफा नहीं बही। चालीस सालों तक नहीं बही और उनके किसी भी चुनाव में इक तरफा हवा नहीं बही। अभी पुराने लोग जिंदा हैं।  वो बतला सकते हैं और रिकार्ड से मालूम हो सकता है कि ताया मनफूलसिंह तो चुनाव में जरूर जीतते हारते रहे,लेकिन बीरबल भादू सीधे जनता के चुनाव में कभी भी जीत नहीं पाए थे। जनता ने उनको कभी नहीं जिताया। वे जीते केवल सरपंचों के बल पर। जब ग्राम पंचायतों के चुनाव हो जाते तब उन जीते हुए सरपंचों के बहुमत से प्रधान चुने जाते रहे। जहां तक इस टिप्पणीकार को याद है वे जब जब सीधे चुनाव में खड़े हुए तब तब जनता ने उनको पटखनी दी।
यह बात इसलिए बतानी जरूरी हुई है कि भादू के परिवार में जब भी किसी ने चुनाव लड़ा,चाहे कांग्रेस से चाहे निर्दली,कभी भी इक तरफा  हवा नहीं चली। जब इलाके में उनके अलावा कांग्रेस में कोई बड़ा नेता नहीं होता था तब भी इक तरफा हवा नहीं बही।
इस बार भी इक तरफा हवा नहीं है। इक तरफा हवा का मतलब होता है कि सामने जो कोई भी है,उसके पल्ले में कुछ भी नहीं है,या जो उसके पास है वो इतना कम है कि उसकी गिनती नहीं हो सकती।
इन अक्लवान लोगों का ही कथन आगे होता है कि-भाजपा और बसपा की टक्कर है। राजा और डूंगर की टक्कर है। मील के गीत गाने वालों के मुंह से और ना जाने कहां कहां से यह ना मानने वाली बात आ रही है कि राजा की इक तरफा हवा है। जब इक तरफा हवा है तो बसपा से टक्कर कैसे है?
सोचने समझने वाली बात यह है कि पिछले चुनाव में बसपा चौथे क्रम पर थी और अब वह टक्कर में बताई जा रही है। बसपा ने कितनी प्रोग्रेस कर ली है। यह सोचने समझ लेने वाली बात है। और उसकी यह प्रोग्रेस अभी भी दिन रात चल रही है। सूरतगढ़ शहर में और ग्रामों चकों में भी तथा अब हर जाति वर्ग में भी। राजा की जो इक तरफा हवा की बात करते हैं वे ना जाने राजा से कौनसा बैर निकाल रहे हैं। अच्छा होगा कि राजा को असलियत में चुनाव लडऩे दिया जाए।
इक तरफा हवा बतलाने वालों से यह तो पूछा ही जाना चाहिए कि जब राजा की टक्कर डूंगर से बतलाई जा रही है तब इस हालत में कांग्रेस के विधायक गंगाजल मील साहेब की स्थिति किस पायदान पर है?

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