सूरतगढ़:नगरपालिका में कांग्रेसी बोर्ड बनाना मुश्किल क्यों हैं? गेदर टीम निष्क्रिय.
* करणीदानसिंह राजपूत *
सूरतगढ़ 26 मार्च 2025.
विधायक डुंगरराम गेदर और उनकी टोली कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष परसराम भाटिया, शहर कांग्रेस अध्यक्ष जे.पी.गहलोत गरीबों के घरों पर जेसीबी चलती है तो कहीं भी साथ खड़े नजर नहीं आते और प्रभावशाली पैसे वालों के बड़े एवं पक्के सड़कों के लाखों रू.के अतिक्रमणों पर प्रशासन की कार्वाई नहीं होने पर चुप हैं।
* शहर कांग्रेस की शहर के प्रति कुछ तो जिम्मेदारी बनती होगी लेकिन शहर कांग्रेस अध्यक्ष जे.पी.गहलोत किसी भी मुद्दे पर एक पत्र तक लिखे नजर नहीं आते।
* विधायक डुंगरराम गेदर ही सूरतगढ़ में अभी संपूर्ण कांग्रेस है। अभी 23 मार्च 2025 को विधायक और ब्लॉक अध्यक्ष की पत्रकार वार्ता थी जिसमें शहर कांग्रेस अध्यक्ष जे.पी.गहलोत व टीम के अन्य कार्यकर्ता भी मौजूद थे। विवेकानंद स्कूल को जमीन दिए जाने के मामले में विधायक डुंगरराम गेदर ने कहा कि आगे
" नगरपालिका में हमारा कांग्रेस का बोर्ड बनेगा तब हम स्कूल को जमीन देने का प्रस्ताव कैंसिल करवा देंगे।' आखिर यह पक्का विश्वास किस आधार पर है? कांग्रेस के द्वारा तो केवल कागजी कार्रवाई और कभी 20-25 संख्या में धरना प्रदर्शन हुआ है। शहर की सफाई सड़कें स्ट्रीट लाईट, गंदे पानी की निकासी नाले नालियों की सफाई आदि पर शहर कांग्रेस आखिर चुप क्यों है? कांग्रेस के पास शहर कांग्रेस के अध्यक्ष के लिए भी कोई दमदार नेता नहीं है तो नगरपालिका चुनाव में जीत किस आधार पर पक्की होगी? केवल भाषण देने और घोषणाएं करने से तो कुछ नहीं होगा? कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं से सभी 45 वार्डों की रिपोर्ट ले,नगरपालिका कार्यालय की रिपोर्ट ले और उसका अध्ययन करे जिससे पूरा रिपोर्ट कार्ड निकलेगा। अभी कांग्रेस की ऐसी हालत नहीं है कि वह नगरपालिका चुनाव में बहुमत ले ले। कुल 45 वार्डों में बोर्ड बनाने के लिए 23 पार्षद तो जीतने ही चाहिए।
* सन् 2009 में सीधे जनता से अध्यक्ष का चुनाव था जिसमें विधायक गंगाजल मील के प्रभाव से कांग्रेस के बनवारी लाल जीते।
* सन् 2019 में कांग्रेस को 45 वार्डों में 22 पर जीत मिल पाई। मील का प्रभाव था फिर भी एक पार्षद की कमी रह गई। मील ने अपने प्रभाव से अन्य के सहयोग से कांग्रेस का बोर्ड बनाया जिसमें ओमप्रकाश कालवा अध्यक्ष बने जिनको 30 वोट मिल गये। कालवा बाद में भाजपा में चले गये। फिर मील का सूरतगढ़ का राजनीतिक कुनबा गंगाजल मील,प्रधान हजारी मील,पंचायत समिति डायरेक्टर हेतराम मील और हनुमान मील सभी भाजपा में चले गये। बनवारीलाल भी भाजपा में चले गये। * जहां तक उदाहरण है डुंगरराम गेदर की जीत का तो उसमें तो स्पष्ट हो चुका है कि उस समय के विधायक रामप्रताप कासनिया से नाराजगी के वोट मिलने से जीत हुई। अब हालात एक दम उलट हैं। डुंगरराम गेदर को जिताने वाले दुखी हैं टूट रहे हैं और उधर कासनिया को हराने वाले जिनमें भाजपा के लोग भी हैं, वे भी परेशान हैं। डुंगरराम गेदर से काम नहीं हो रहा यह मानते हुए पछतावा करते कासनिया के पास ही दुखड़ा बखान कर सहयोग लेते हैं। जब ये राजनैतिक हालात हैं और कांग्रेस के पदाधिकारियों का कहीं भी जनता से लागलगाव नहीं है, नगरपालिका से संबंधित कोई काम नहीं करवाया तो फिर वोट कहां से आएंगे? मील जैसा कोई नेता नहीं है जो अपने प्रभाव से जीत तक पहुंचा दे और कांग्रेस का बोर्ड बनवा दे। शहर में चुपचाप खुद घूम लें पूछ लें तो हालात मालुम पड़ेंगे कि 10 पार्षद तक भी जीत तक पहुंचना मुश्किल है। अभी कालवा ( भाजपा) को सस्पेंड कराए जाने के बाद परसराम भाटिया को अध्यक्ष बनाया गया जो 120 दिन अध्यक्ष रहे। परसराम भाटिया के इस अल्प काल में ही खूब भ्रष्टाचार हुआ। बड़े प्रभाशाली लोगों को गैरकानूनी नियम विरुद्ध भूखंडों के पट्टे दिए गये यहां तक कि भाजपा के भी कई नेताओं और उनकी पत्नियों को,उनके परिवारों को पट्टे दे दिए लेकिन जिनको छत जरूरी थी वे रोते रह गये।परसराम भाटिया पर लग रहे आरोपों पर विधायक गेदर चुप हैं।
ऐसी स्थिति में ऐसी कौनसी जादुई तरीका है जिससे कांग्रेस का बोर्ड बना लेंगे? भाजपा के लोगों ने जो शहर में ही नहीं रहते फर्जी रिकॉर्ड तैयार किया और कांग्रेस के परसराम भाटिया ने उनको पट्टे दे दिए जो आए दिन अखबारों में छपते हैं। परसराम भाटिया द्वारा भाजपाइयों को फर्जी रिकॉर्ड पर पट्टे दिए जाने के पीछे राज क्या है? क्या भाटिया ने सूखे ही हस्ताक्षर कर दिए? भाजपा नेता चंद्र जनवेजा की पुत्रवधू को बिना किसी कीमत के नगरपालिका का पंप हाऊस भी दे दिया। भाजपा के नेता राजाराम धारणिया पत्नी सहित मानकसर में रहते हैं जिनको सूरतगढ़ में पट्टा दे दिया। परसराम के अध्यक्षता काल के भ्रष्टाचार लगातार यहां के एक साप्ताहिक ' ब्लास्ट की आवाज' में छप रहे हैं। एक खसरे की भूमि पर जहां ओमप्रकाश कालवा ने हस्ताक्षर नहीं किए और मील से दुश्मनी लेकर भाजपा में चले गये,उसी फाईल पर परसराम भाटिया ने हस्ताक्षर कर दिए। अभी तो एक एक कर भ्रष्टाचार के भेद खुल रहे हैं। जब भ्रष्टाचार का आरोपी कांग्रेस में ब्लॉक अध्यक्ष पद पर है, मुकदमें भी दायर हैं और हर मामले पर गरीब जनता से दूरी है तो नगरपालिका में कांग्रेस का बोर्ड कैसे बनेगा? कांग्रेस के पास ऐसे कार्यकर्ता नहीं जिनको ब्लॉक अध्यक्ष और शहर कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जा सके जो आने वाले नगरपालिका चुनाव तक जनता से जुड़ सकने जैसे कार्य कर सकें। ऐसा लगता है कि विधायक डुंगरराम गेदर के हाथ पावरलैस हैं। कांग्रेस को मजबूत बनाने के लिए स्वेच्छा से परसराम भाटिया और जे.पी.गहलोत इस्तीफा देकर पद छोड़ने वाले नहीं हैं। ये तथा और भी कारण है जिनसे नगरपालिका में काग्रेस का बोर्ड बनना मुश्किल लगता है। नगरपालिका चुनाव आने तक डुंगरराम गेदर कांग्रेस को मजबूत बनाने के लिए कौनसे प्रभावी कदम पार्टी में उठाएंगे? नगरपालिका में कांग्रेस की हार होती है, कांग्रेस का बोर्ड नहीं बना तो सीधी जिम्मेदारी डुंगरराम गेदर पर होगी और 2028 के विधानसभा चुनाव में गेदर की टिकट पर अनेक संकट होंगे। यह माना जाता रहा है कि गेदर हर कदम चुपचाप ही उठाते हैं सो नगरपालिका चुनाव से पहले अप्रैल माह से ही कुछ जनता को नजर आने लगे।
अपनी पार्टी में और दूर गये दूर होते जा रहे गरीबों को अपने साथ लाने के लिए डुंगरराम गेदर क्या कदम उठाते हैं? 👌 एक बड़ा सवाल जनमानस में चल रहा है कि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता बलराम वर्मा की सलाह ली जाए। एक और सवाल कांग्रेस में आए पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह भादु की चुप्पी भी है आलसी सा रवैया दिख रहा है।
* जनता में यह धारणा बन रही है कि विधायक में पहले जैसी बात नहीं है। यह धारणा कैसे टूट पाएगी?
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करणीदानसिंह राजपूत,
पत्रकार ( राजस्थान सरकार से अधिकृत मान्यता प्राप्त. लाईफटाईम।)
सूरतगढ़ ( राजस्थान )
94143 81356
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