विधायक गेदर से अधिक चर्चित ओमप्रकाश कालवा और विवेकानंद स्कूल.
* करणीदानसिंह राजपूत *
सूरतगढ 27अगस्त 2024.
सूरतगढ नगरपालिका बोर्ड की 28 अगस्त को होने वाली बैठक की गर्मागर्म चर्चाएं शहर में फैलाई जाने की कोशिश हो रही है जिसमें कीमती जमीनें शिक्षा व सामाजिक संस्थाओं को रियायती कीमत पर दी जाने के पांच प्रस्ताव हैं। संस्थाओं को रियायती दरों पर जमीनें देने के नियम सरकार द्वारा 50-60 साल पहले के बनाए हुए हैं। नगरपालिका बोर्ड की 28 अगस्त 2024 की बैठक में ये सभी प्रस्ताव हैं।
👍 आरोप लगाया जा रहा है कि नगरपालिका अध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा विवेकानंद पब्लिक स्कूल को कीमती जमीन देना चाहते हैं लेकिन सच्च को कांग्रेस के विधायक डुंगरराम गेदर और ब्लॉक अध्यक्ष परसराम भाटिया झूठ बोल कर छुपा रहे हैं।
* विवेकानंद पब्लिक स्कूल को जमीन दिए जाने का प्रस्ताव कालवा का नहीं है। यह प्रस्ताव 30 से अधिक पार्षदों की मांग पर रखा गया है,जिनमें भाजपा के अलावा अन्य दलों कांग्रेस के व निर्दलीय पार्षद भी हैं। नगरपालिका सभा बैठक के नियम अनुसार अध्यक्ष और अधिशासी अधिकारी पार्षदों की मांग को टाल नहीं सकते। अध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा और अधिशासी अधिकारी पूजा शर्मा ने यह प्रस्ताव पार्षदों की मांग पर शामिल किया जो कानूनी वैधानिक रूप में पूर्ण रूप से सही है तथा इतने अधिक पार्षद जमीन देना चाहते हैं तो यह प्रस्ताव पारित भी होगा। नगरपालिका में अध्यक्ष सहित कुल 45 सदस्य हैं। 30 पार्षदों की मांग पर रखा गया विवेकानंद स्कूल को जमीन देने का यह प्रस्ताव ( जमीन की कीमत 1997 में ही जमा करवाई हुई है) और अन्य संस्थाओं को रियायती कीमत पर जमीनें दिए जाने के सभी प्रस्ताव पारित होने की संभावना है।
इस समय सूरतगढ में हर क्षेत्र की जमीनें कीमती हैं और संस्थाओं को आवंटन शहरी जमीनों में ही सामाजिकता और चहुंमुखी विकास के लिए जरूरी है।
👍 विवेकानंद संस्था जाखड़ावाली की है। जाखड़ावाली पहले सूरतगढ तहसील का ही गांव था जो हनुमानगढ़ जिला बनने के बाद उसका हिस्सा बन गया। विवेकानंद पब्लिक स्कूल जाखड़ावाली को करीब 25 -30 साल पहले यहां भूमि का आवंटन कीमतन नगरपालिका क्षेत्र में मंडी समिति के एरिया में हुआ था। जमीन की कीमत जमा करवाली गई लेकिन संस्थान को जमीन दी गई उस पर अतिक्रमण थे। संस्था ने अतिक्रमण का हवाला देते हुए अन्य स्थान पर देने की मांग रखी। दुबारा जमीन दी गई वहां ईंट भट्ठों के गहरे गड्ढे थे जिनमें पानी भरा रहता था। वहां कंटीली झाड़ियों से घिरे पानी भरे गड्ढों में कोई भी जमीन लेने को तैयार नहीं होता था। विवेकानंद संस्था को वह घटिया जमीन दी गई। जिसे अब कीमती माना जा रहा है। सच्चाई यह है कि
सूरतगढ में जमीनों की कीमतें हर क्षेत्र में दिन दूनी रात चौगुनी के हिसाब से बढती रही। उस गड्ढों की जमीन के रेट बढने लगे और आज उसकी चर्चा हो रही है। संस्था ने करीब 9000 वर्ग मीटर जमीन की कीमत भरी हुई है। उसकी कीमत भी बढती रही। विवेकानंद संस्था को जमीन बिना किसी पेचीदगी वाली दे दी जाती तो सन् 2000 के लगभग शहर में निर्माण होता और अब 2024 तक संस्था बहुत विकसित हो जाती जिसका लाभ 25 सालों में शहर के विद्यार्थियों को मिलता। भवन निर्मित संस्था की कीमत 200 करोड़ से अधिक हो जाती। लगभग 10 हजार विद्यार्थियों को अब तक लाभ मिल जाता।
* शहर की कुछ सामाजिक संस्थाओं गुरूद्वारा श्रीगुरु सिंघ सभा,राजस्थान मेघवाल समाज, ब्राह्मण धर्मशाला, सिंधु फाऊंडेशन ( नायक समाज) को रियायती कीमतों पर जमीनें देने के प्रस्ताव पारित कर राज्य सरकार को भेजे जाएंगे।
* नगरपालिका में प्रतिपक्ष नेता परसराम भाटिया और विधायक डुंगरराम गेदर एक संस्था विवेकानंद के विरोध पर हैं लेकिन बैठक में विरोध करने के लिए पार्षदों में भी कोई मान नहीं रहा है। भाटिया के और डुंगरराम गेदर के कहने में कांग्रेस के भी सभी पार्षद नहीं है।
* नगरपालिका के आगामी चुनाव में उतरने के ईच्छुक सभी पार्टियों के पार्षद आगे की सोच रहे हैं। अभी डुंगरराम गेदर और ब्लॉक अध्यक्ष परसराम भाटिया के पास पार्षदों को सहयोग देने के लिए कुछ भी नहीं है लेकिन अध्यक्ष कालवा के पास पावर है। जिस पार्टी की प्रदेश में सरकार हो तो उसी पार्टी का नगरपालिका बोर्ड हो तो लाभ होता है, यह सोच आम जनता की होती है। नगरपालिका बोर्ड भाजपा का बनाना लाभदायक रहेगा तो उसमें अभी पदासीन अध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा ही वार्डों में पार्षदों को सहयोग करने की पावर रखते हैं। आगामी नगरपालिका चुनाव तो अब सिर पर आ चुके हैं सो पार्षद अपना हित देख रहे हैं कि फिर से कैसे चुनाव जीत जाएं। यह एक बिंदु शक्तिशाली है इसलिए गेदर और भाटिया के कहने में पार्षद नहीं हैं और ऐसी स्थिति में सभी प्रस्ताव पारित होने की संभावना है। देखतें हैं कि 28 अगस्त को किसका डंका बजेगा और आगे क्या गुल ( पुष्प) खिलेंगे?
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