भारत में जहां सरकार से डरने वाले पत्रकार हैं वहीं डराने वाले पत्रकार भी हैं।
* करणीदानसिंह राजपूत *
भारत में बहुत कम पत्रकार हैं जो अपनी हिम्मत से स्वतंत्र समाचार रिपोर्ट लेख आदि सरकार की गलत नीतियों कार्यों पर लिख पाते हैं। उनको प्रकाशित प्रसारित करने वालों की संख्या तो और कम है।
सरकारी विज्ञापन रोक लेने का भय बहुत अधिक बना दिया गया है। ऐसे निर्देश लिखित में नहीं होते। फोन से या फिर मिलकर ईशारा कर दिया जाता है। विज्ञापन बिल भुगतान भी रोकना देरी से करना एक समझाइस होती है।
* अखबार और चैनल वाले मालिक इस विषय पर बात नहीं करते कोई पूछ ले तो सही हालात बताने तक से दूर रहते हैं कि कहीं उनका नाम उद्धरित न हो जाए। कुछ मुंह खोलते हैं तो पहले और अंत में कह देते हैं कि उनका नाम न आए। यह तो मित्रता से घरेलू तौर पर बताया है।किसी पंगे में नहीं पड़ना चाहते। आज अखबार छापना बहुत मुश्किल है। प्राईवेट कंपनियों के विज्ञापन भी नहीं मिल पाते।
* सरकार,सत्ता धारी नेताओं,बड़े अधिकारियों, पुलिस आदि के विरुद्ध कोई समाचार छापना तो आग के कुए में कूदना होता है। पत्रकार टालते हैं लेकिन कुछ आग के कुए में कूदते भी हैं। भारत में भी हैं जो खोज कर छापते हैं। रिस्क है लेकिन देखी जाएगी जब कुछ होगा।
* चैनलों अखबारों पर सरकार समर्थकों पूंजीपतियों का एकाधिकार हुआ है तो अनेक जांबाज पत्रकारों ने अपने यू ट्युब चैनल चला लिए। यह मजबूरी में हुआ काम लोकप्रियता प्राप्त कर गया। लोग एल ई डी पर चैनल कम देखते हैं और सोशल मीडिया ज्यादा। हालांकि सोशल मीडिया को भी भयभीत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई लेकिन लोगों का भय निकल गया। अखबारों की दुर्दशा मालिकों ने की। जी हजूरी समाचारों के कारण लोगों का मोह भंग हो गया। दो दो तीन तीन दिन अखबार पढे बिना ही काम चल जाता है। जिस घर में अखबार बंद हुआ वहां दुबारा शुरू नहीं होता।पत्रकारों को वेतन आयोग के हिसाब से वेतन देने के लिए रुकावटें मालिक ही डालते हैं। अब ठेकेदार कं पत्रकार उपलब्ध कराती है। ठेकेदार कं भी अखबार के मालिक ने ही खड़ी की। इसे स्वतंत्रता तो नहीं कह सकते। तीन माह का वेतन देकर अचानक निकालना भी स्वतंत्रता पर कुठाराघात है।
*अनेक पत्रकारों की सरकार दुश्मन,तो कहीं मालिक दुश्मन।
** जनसंपर्क विभाग अखबारों को संरक्षण और विकास के लिए होता है मगर वह सरकार के निर्देश पर अखबारों का दुश्मन। कोई भी शिकायत कर दे तो जांच पर जांच,दोष बिना ही विज्ञापन पर रोक। अधिस्वीकरण,विज्ञापन आदि की समितियां दर्शनीय। उनकी मीटिंग ही नहीं होती। पत्रकार परेशान। पत्र,पत्रावलियां महीनों तक बिना कार्यवाही के पड़े रहते हैं।
क्या इसे प्रेस की स्वतंत्रता कह सकते हैं? दिवस चाहे मना लें।
चापलूस तलवाचाट हैं वे निर्भिक पत्रकारों को अखबार चैनलों को खराब करते हैं। भारत में सच्च लिखना बड़ा कठिन है लेकिन अनेक हिम्मत से डटे हिमालयी सरकार से भी टकराते हैं। मैं कह सकता हूं कि जहां सरकारी धमकियों से डरने वाले पत्रकार हैं वहीं सरकार को डराने वाले पत्रकार भी हैं।
अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस प्रत्येक वर्ष 3 मई को मनाया जाता है। वर्ष 1991 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के 'जन सूचना विभाग' ने मिलकर इसे मनाने का निर्णय किया था।'संयुक्त राष्ट्र महासभा' ने भी '3 मई'
को 'अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस' की घोषणा की थी।
* भारत में भी यह दिवस मनाया जा रहा है। जो स्वरूप है उसका वर्णन कर दिया है।०0०
3 मई 2024.
करणीदानसिंह राजपूत,
पत्रकारिता 60 वर्ष,
सूरतगढ़ ( राजस्थान)
94143 81356.
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