रविवार, 19 नवंबर 2023

भाजपा के कासनिया को कांग्रेस के मील कितने वोट दिला सकेंगे? वोट हैं क्या?




* करणीदानसिंह राजपूत *

सूरतगढ़ में भाजपा के उम्मीदवार रामप्रताप कासनिया का जनविरोध होते हुए साथ में जुटे कांग्रेसी पूर्व विधायक गंगाजल मील कितने वोट दिला देंगे कि कासनिया की जीत हो जाए?

 यह सवाल इसलिए खड़ा हुआ है कि गंगाजल मील का भी जनविरोध है और उनके पास कितने वोट हैं? अब कांग्रेस की टिकट नहीं मिलने पर खाली हाथ मील के पास कितने वोट हैं जो कासनिया को दिला सकते है?

👍 जनता में मील का विरोध होने के कारण दो बार हार हो गई। 

गंगाजल मील 2008 से 2013 तक विधायक रहने के बावजूद 2013 के चुनाव में राजेन्द्र भादू से बुरी तरह से हारे और वोटरों ने तीसरे क्रम पर धकेल दिया। जनता के बढ़ते विरोध के कारण  मील परिवार के हनुमान मील को 2018 में हार मिली। गंगाजल मील के बाद हनुमान मील की हार यह दूसरी हार थी। टिकट न मिलना तीसरी हार। 

 इस दूसरी हार के बाद जनता का विरोध और अधिक बढ गया और इस कारण से इस बार 2023 में हनुमान मील को कोशिशों के बावजूद कांग्रेस की टिकट नहीं मिली। कांग्रेस ने बहुत बड़ा बदलाव किया और टिकट मूल ओबीसी के नये चेहरे डूंगर राम गेदर ( कुम्हार) को दे दिया। 

* डुंगरराम गेदर कांग्रेस के लिए मजबूत उम्मीदवार और जनता में जनसेवक के रूप में छाया हुआ चेहरा रहा है। कांग्रेस सरकार ने गेदर को शिल्प एवं माटी कला बोर्ड का अध्यक्ष बनाया और राज्यमंत्री का दर्जा दिया। इससे डुंगरराम गेदर की पावर बढी।

** डुंगरराम गेदर को टिकट दिए जाने से मील नाराज हुए। डुंगर को हराने की तड़प ने एकदम गलत फैसला करवाया। कांग्रेसी मील ने भाजपा के कासनिया को समर्थन दे दिया। कमाल की बात यह हुई कि कासनिया ने भी समर्थन ले लिया। भाजपा के लोग और समर्थक तथा मील से नाराज लोग देखते रहे।

👍 महत्वपूर्ण सवालों में कासनिया और मील दोनों घिरे हैं।

* जनता कासनिया को नहीं चाहती। 2018 में कासनिया ने जितने वोट लिए उससे निश्चित है कि नाराजगी से वोट कम हुए होंगे। वोट कम दो चार नहीं हजारों में होते हैं। अब कासनिया को इस हालत में मील कितने वोट दिलाएं कि कासनिया जीत सके और डुंगर की हार होने पर मील खुशी के ढोल बजा सके?

👍 जन विरोध के कारण दो बार हारे मील का विरोध हार के बाद 2018 से 2023 तक और बढा और बढता ही गया। ऐसी कमजोर हालात में मील के पास कहने में कितने वोट बचे? मील के पास हजारों वोटों की शक्ति बची होती तो वे राजेंद्र भादू की तरह चुनाव लड़ते। अपनी ताकत कांग्रेसी नेताओं को दिखाते। मील के कहने में वोटों की ताकत होती तो डुंगर को धराशायी करते। दो बार हारे और अब टिकट खोये मील के पास वोट नहीं है। कासनिया और भाजपा के समझदार लोग जीत के लिए उन वोटों की आश लगाए हुए हैं जो असल में हैं नहीं। कांग्रेस पार्टी से जुड़े लोग और  वोटर डुंगर गेदर के साथ खड़े हैं।हर गली कूचे गांव वार्ड में डुंगर बहुत मजबूत हालात में मौजूद है और उसी के नाम के चर्चे हो रहे हैं।



👍 डुंगर गेदर और कासनिया की टक्कर में भाजपा के बागी निर्दली राजेंद्र भादू के आगे बढ रहे संपर्क ने तिकोनी टक्कर की हलचल मचा रखी है।०0०

19 नवंबर 2023.

करणीदानसिंह राजपूत,

पत्रकार,

सूरतगढ़। 

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