सूरतगढ़:डुंगर गेदर पहली पसंद:डुंगर की सुनामी एकदम शांत बदलाव करती.
* करणीदानसिंह राजपूत *
दीपावली की रामरमी के बाद बाजारों में डुंगरराम गेदर का नाम ही कामगारों मिस्त्रियों मजदूरों नौकरों में चर्चा होने से गेदर की स्थिति और मजबूती की ओर बढी है। लोग कांग्रेस और हाथ के पंंजे की चर्चा नहीं कर रहे। डुंगर या गेदर इन दो शब्दों से चर्चा हो रही है। इस बार तो डुंगर है। इस बार दुकानदारों के मुंह से कामगारों तक नाम पहुचने के बजाय कामगारों के मुंह से निकल कर गद्दी तक पहुंच रहा है।
सूरतगढ़ बाजार और शहर को भाजपा प्रभावी माना जाता रहा है लेकिन दीपावली के बाद भाजपा उम्मीदवार के नाम से बाजार बोलने की आशा पूरी नहीं हो पाई। दीपावली से पहले कहा जा रहा था कि रामरमी के बाद सभी फ्री होंगे और बाजार से नाम उठेगा जिससे शहर की हालत का पता चलेगा कि लोगों का रुझान किस उम्मीदवार की तरफ है। राजनीतिक लोग नेता कार्यकर्ता उम्मीदवार चाहे अनजान बने रहें या ऐसा व्यवहार दिखाएं लेकिन असल में तो रुझान का मालुम हो चुका है। लोगों की पहली पसंद डुंगरराम गेदर बन चुके हैं और यह चुनाव की सुनामी है। एकदम शांत बदलाव करती हुई सुनामी।
सूरतगढ़ सीट पर भाजपा की तीसरी बार जीत की पक्की संभावना को डुंगरराम गेदर के नाम ने हिला कर रख दिया है। भाजपा के उम्मीदवार रामप्रताप कासनिया हैं जो लगातार दूसरी बार उम्मीदवार हैं। 2018 में कासनिया जीते थे मगर इस बार कांग्रेस ने हनुमान मील को फिर से उम्मीदवार बनाने के बजाय लोगों की नये चेहरे की मांग को पूरा कर बदलाव किया है। बदलाव और नये चेहरे की मांग तो भाजपा में भी थी और सक्रिय नये चेहरे भी थे मगर उनकी सुनी ही नहीं गई। पुराने चेहरे बहत्तर वर्षीय रामप्रताप कासनिया को ही टिकट दे दी गई जिनको जनता पसंद नहीं करने का बार बार कहती रही और सोशल मीडिया पर यह आम विचार पहले नंबर पर छाए रहे। नये चेहरे जयपुर दिल्ली के नेताओं के चक्कर लगाते रहे। हर नये चेहरे के इन चक्करों और पार्टी के यात्रा कार्यकर्मों में लाखों रूपये लग गये। पुराने चेहरे का नाम आया तो टिकटार्थियों में तो निराशा छाई लेकिन आम जनता में भी नाराजगी छाई।
पार्टी के नाम पर कार्यकर्ताओं को जैसे तैसे जोड़ने की कोशिश हुई है लेकिन अभी तक जनता का मानस वोटों में बदलने जैसा नहीं बना सके। बीत रहा हर दिन डुंगरराम गेदर को और आगे बढा रहा है वहीं भाजपा उम्मीदवार को स्पीड नहीं दे रहा। बेमन से धक्का लगाने से गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही। अनेक भाजपा कार्यकर्ता अभी असहयोग की नीति अपनाए हुए हैं। टिकट तो एक कारण है ही लेकिन गंगाजल मील का सहयोग लेना भी कासनिया को भारी पड़ रहा है। भाजपा कांग्रेस के अपने अपने दावे हैं लेकिन अभी डुंगर गेदर की सुनामी ही असर डाल रही है.
👍भाजपा टिकट पुराने चेहरे कासनिया को जनता की तरफ से ना चल रही थी । कासनिया ने 2018 में अपना अंतिम चुनाव कहते हुए सार्वजनिक सभा में वोट स्पोर्ट और जिताने की अपील की थी। भाजपा के पूर्व विधायक राजेन्द्रसिंह भादू और पूर्व विधायक अशोक नागपाल ने सहयोग किया, कार्यकर्ता भी लगे,और कासनिया जी जीत भी गये।
** इस बार कासनिया जी जनभावनाओं को ठुकराते हुए कार्यकर्ताओं को मांग,टिकटार्थियों की अनसुनी करते हुए कासनिया जी को टिकट देने से भी शक्ति नहीं मिल पाई। टिकट नगरमंडल सुरेश मिश्रा, देहातमंडल,जिलाध्यक्ष शरणपालसिंह मान और राजेंद्र सिंह राठौड़ के जिस तरीके से मिली उससे अन्य में जोश ठंडा हो गया। तीसरी बार भाजपा की टिकट निकालने के लिए कासनिया को ताकतवर नहीं माना जा रहा।
*भाजपा के नाराज टिकटार्थी राजेंद्र भादू ने भाजपा नेताओं के इस निर्णय को चुनौती दे दी और बागी बन कर कासनिया की राह में गहरा गड्ढा खोद दिया जो भरा जाना मुश्किल है। राजेंद्र भादू को टिब्बा क्षेत्र जैतसर क्षेत्र, शहर की कच्ची कुछ पक्की बस्तियों,में जो समर्थन मिल रहा है उससे कासनिया को चोट पहुंच रही है। भादू अपने सोचे समझे अभियान पर कमजोर नहीं है। इस अभियान का बड़ा मकसद कासनिया को विधानसभा में जाने से रोकना है और यह प्रमाणित करना है कि भाजपा ने इसबार जनभावनाओं के विपरीत उम्मीदवार घोषित कर जीत रही बाजी को पलटवा दिया। कासनिया को टिकट के लिए तरीका अपनाने वालों ने ही भादू से नामांकन वापस लेने का आग्रह किया जो एक प्रकार से असलियत से दूर लग रहा था। नामांकन वापसी के निर्धारित अंतिम समय से चार घंटे पहले यह आग्रह हुआ। भादू का अभियान है सो आग्रह की और पार्टी से निकालने के नोटिस की परवाह नहीं की।
* कासनिया की बड़ी गलती रही मील का समर्थन लेना। इसमें मील का चुनाव परिणाम के बाद क्या होगा? सबसे बड़ी चोट मील के उन कार्यकर्ताओं समर्थकों को लगेगी कि 3 नवंबर के बाद वे कहां जाएंगे। ये कांग्रेस उम्मीदवार डुंगरराम गेदर को हराने के लिए अस्थायी रूप से कासनिया के साथ आए। जब मील का ही मालुम नहीं हो कि क्या होगा तब कार्यकर्ताओं का तो सोचा ही नहीं जा सकता। डुंगर को हराने के निर्णय में अपना ही डेरा उजाड़ना ?
डुंगरराम गेदर की सुनामी 'इस बार गेदर' का ढोल बजा तब भूकम्प ही आएगा। जो नेता नहीं है केवल साधारण नागरिक हैं यह गेदर के पक्ष की आवाज और निर्णय उनका है। भाजपा को जितना जोर लगाना था वह लगा लिया लेकिन डुंगर को रोक नहीं पा रहे। ०0०
17 नवंबर 2023.
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17 नवंबर 2023.
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