रविवार, 25 दिसंबर 2022

मील की चुनौती:हमारे अतिक्रमण हैं तो बताओ और तुड़वाओ।भूमफिया संग नये नेता फंस रहे.

 


* करणीदानसिंह राजपूत *


सूरतगढ़ नगर पालिका के अतिक्रमण ध्वस्त करने के अभियान से भूमाफिया और सहयोगी वार्ड प्रतिनिधि की नींद हराम हो रही है वहीं अतिक्रमणकारियों का साथ देने की चक्कर में नए मूर्खानंद नेता अपना नाम और अपनी गर्दन फंसा रहे हैं।

 नए नेताओं को लग रहा है कि अतिक्रमणकारियों का साथ देने उपखंड कार्यालय के बाहर भीतर जोर शोर से हंगामा करने से उनके वोट बढ़ रहे हैं जो आगामी विधानसभा चुनाव 2023 में उनको विजय श्री दिला देंगे।

* नगर पालिका प्रशासन पर आरोप लगाया जा रहा है कि रंजिश से अतिक्रमण को तोड़ा जा रहा है। जब यह साबित हो रहा है कि अतिक्रमण है तो नगरपालिका को तोड़ने का अधिकार है। किसी अतिक्रमणकारी का नंबर पहले आया और किसी का अब आगे आ सकता है।

 जिनके अतिक्रमण टूटे जिनके पक्ष में नए नेता उपखंड कार्यालय पर पहुंचे उनका नाम लोग भू माफिया के रूप में लेते हैं। एक मलबा खरीदा और उसमें लाभ कमाया और फिर मलबा बेचा। इस तरह से जिनके अतिक्रमण टूटे और नये नेताओं का समर्थन हुआ उनके पास अनेक कब्जे और होने के भी चर्चाएं हैं।

* नए नेता जिनको वोटों की आशा है वे कम से कम यह तो पता कर ही सकते हैं कि क्या संबंधित व्यक्ति उस मकान में रहता था या उसका  और किसी स्थान पर बसेरा है। कुछ भी देखा भाला नहीं और अतिक्रमणकारी के साथ नारे लगाते पहुंच गए। ऐसे नए नेताओं को क्या कहा जाए जो बिना सोचे समझे अपना भविष्य खुद बिगाड़ने में लगे हैं।

* नये नेता उत्तेजित होकर भाषण भी देते हैं कि सरकार से टक्कर ले लेंगे नगरपालिका प्रशासन से टक्कर ले लेंगे। अतिक्रमणकारी को बचाने के चक्कर में रास्ते रोकने सरकारी कार्य में बाधा डालने,कर्मचारियों से मारपीट जैसे आरोप के किसी मुकदमे में फंस गए जो नाकाबिले जमानत हो, तब चुनाव के नामांकन में भी संकट आ सकता है। ऐसी धाराएं भी है जिनमें फंसने के बाद में जेल जाने के बाद में नामांकन निरस्त हो जाता है।

** समझदार नेता कभी भी अतिक्रमणकारी के साथ नहीं देखा जाता इसलिए यह जो शोर मचाने वाले हैं इनको मूर्खानंद कहना सही लगता है। इसे जानबूझकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना कहते हैं। यहां एक स्थिति स्पष्ट मुकदमा स्वयं को लड़ना होता है। 

विधानसभा क्षेत्र सूरतगढ़ के अंदर लाखों वोटर हैं वहां पर चंद  अतिक्रमणियों के वोटों पर अपनी जीत संभावित मानना खुद को चुनाव से पहले मार लेना है। सोचे समझे कोई मौत को गले नहीं लगाता। कोई दलदल में भी फंसना नहीं चाहता। वहां पर यह नए नेता फंस रहे हैं। 

* कुछ लोग तो कहीं भी धरना प्रदर्शन हो वहां पर अपनी उपस्थिति के लिए घंटे 2 घंटे बैठ जाते हैं क्योंकि उनके घर पर कोई काम नहीं है। दुकानों पर व्यवस्था है या बच्चे बैठते हैं।पिता को काउंटर पर या गले पर बैठने की जिम्मेदारी नहीं है। वे उपखंड कार्यालय पर सामने मौजूद रहते हैं।ये टाईम पास नेता हरेक धरने प्रदर्शन में उपस्थित हो जाते हैं। समाचार पत्रों में अगर 1 साल के 100  फोटो छपे हुए होतो 70- 80 फोटो में ऐसे नेताओं के चेहरे नजर आते हैं। 

** जहां पर असल में काम करने की आवश्यकता है।  जहां असल में जरूरत है।जहां असल में सैकड़ों लोग और उससे भी अधिक लोग पीड़ित हैं। सार्वजनिक कार्य है,असल में वहां पर चुनाव लड़ने के ईच्छुक नेताओं को पहुंचना चाहिए और उसमें कोई हर्ज भी नहीं है। वहां पर तो एक कर्तव्य माना जा सकता है लेकिन भूमाफिया को बचाने के चक्कर में यदि कोई नेता पहुंचता है तो वह उसका कर्तव्य नहीं है। ऐसे आरोपी अपराधी चुनाव में कोई काम नहीं आते और चुनाव जीत जाते हैं तो प्रतिदिन संकट पैदा करेंगे। उनके काम नहीं होंगे तो बदनाम करेंगे।

*  नगर पालिका प्रशासन द्वारा पिछले दिनों सड़कों के पास,उच्च मार्ग के पास,व्यावसायिक क्षेत्र के पास कुछ बेशकीमती अतिक्रमण तोड़े गए जिनमें नगर पालिका बोर्ड के कुछ पार्षदों के नाम चर्चाओं में हैं। जनता में खुले रूप से आरोप लग रहे हैं कि फलां फलां पार्षद के ये अतिक्रमण थे।  अभी आने वाले दिनों में ऐसे अतिक्रमण और भी टूटने की पक्की उम्मीद की जाती है। नगरपालिका के पार्षद शहर को विकसित करने के लिए आए थे या फिर अतिक्रमण करके अपनी जेबें भरने आए थे?

* नगर पालिका के चेयरमैन और वाइस चेयरमैन को भी इस अभियान में आगे रहना चाहिए क्योंकि वे भी प्रभावित होते हैं। ऐसी स्थिति में बोर्ड के प्रत्येक पार्षद का कर्तव्य बनता है कि वह अतिक्रमण करने वाले सीमित संख्या के पार्षदों का साथ नहीं दें। नगरपालिका में चैयरमैन ओमप्रकाश कालवा,वाईसचैयरमैन सलीम कुरैशी सहित 45 पार्षद हैं,सभी जनता के बीच में स्पष्ट करें कि उनका कोई अतिक्रमण नहीं है और वे किसी भी अतिक्रमणकारी का साथ नहीं देंगे, नगरपालिका की संपत्ति का सरंक्षण करेंगे बचाव करेंगे और विकास करेंगे। 

नगर पालिका में 45 पार्षद हैं और केवल पांच सात  पार्षदों ने ही भ्रष्टाचारों के विरुद्ध संघर्ष का बीड़ा उठा रखा है। वे चाहते हैं कि नगर पालिका में भ्रष्टाचार ने हो नगर पालिका में भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन हो तो बाकी पार्षद इसमें साथी क्यों नहीं है? उनकी आवाज शामिल क्यों नहीं होती।


नगर पालिका बोर्ड के 3 साल पूरे हो चुके हैं इन तीन सालों में केवल चार पांच पार्षदों की आवाज गूंजती रही है तो बाकी चुप क्यों है? 

*  नगर पालिका सूरतगढ़ के पास में जमीन है।  उसमें केवल चारदीवारी करके और लाखों करोड़ों की जमीन को सड़कों के किनारे अतिक्रमण करना और उसको आगे से आगे बेचना धंधा बन गया है और ऐसे धंधे वालों को बेशर्मी से साथ देना अनुचित है। नगरपालिका प्रशासन को अभी सख्त रवैया के हिसाब से निरंतर अभियान चलाना ही चाहिए। चाहे अतिक्रमणकारियों का साथ देने वाले उपखंड कार्यालय पर प्रदर्शन धरना करते रहें। 

* कितने पार्षद गुप्त रूप से ठेकेदार बने हुए हैं और सारे दिन पालिका में चैयरमैन कक्ष में मौजूद रहते हैं। कितने महिला पार्षदों के परिवार जन हर समय पालिका में उपस्थित रहते हैं? इस स्थिति कर भी गौर किया जाना चाहिए।


**पहले बड़े जोर शोर से और चर्चाओं में आरोप लगते रहे कि मील परिवार सड़कों के किनारे अतिक्रमण करवा रहा है जमीन हड़प रहा है। मील परिवार ने आगे बढ़कर कहा कि हमारे नाम से कहीं अतिक्रमण है तो वह तुड़वा दिया जाए। जहां भी हमारे नाम से कोई अतिक्रमण हो रहा है वह तुड़वा दिया जाए। इस बाबत पत्रकारों को नेशनल हाईवे पर बुला कर बताया गया। उसके बाद में एक पत्रकार वार्ता में पूर्व विधायक गंगाजल मील और पंचायत समिति डायरेक्टर हेतराम मील ने स्पष्ट कहा कि मील परिवार का कोई कब्जा है अतिक्रमण है तो बताएं और तुड़वाई। 

इतनी स्पष्ट चुनौती से मील परिवार अतिक्रमण की कार्रवाई अभियान से क्लीन चिट हो रहे हैं।ना कहीं गंगाजल मील का नाम आ रहा है ना कहीं हनुमान मील का नाम आ रहा है लेकिन नगरपालिका के जनप्रतिनिधियों के नाम चर्चाओं में गर्म है। 

*अतिक्रमणकारियों के अतिक्रमण तोड़ने पर नगर पालिका प्रशासन को किसी भी पार्षद की ओर से सहयोग की बधाई नहीं दी गई। एक भी पार्षद ने यह घोषणा नहीं की कि यह कार्य बहुत अच्छा हो रहा है। 

नगर पालिका की जमीन पर और भी कहीं कब्जे हैं तो उनको ध्वस्त किया जाना चाहिए। किसी भी पार्षद ने आगे बढ़कर अतिक्रमण का स्थान और अतिक्रमण बताकर हटाने की अपील भी नहीं की है।

* पार्षद एक वार्ड से एकबार ही चुना जाता है, बार-बार नहीं चुना जा सकता। पार्षद को  भविष्य का भी पता है लेकिन फिर भी चुप रहना अपने कर्तव्य से दूर भागना है।

* अभी अतिक्रमण के आरोपों से मील क्लीन चिट हो रहे हैं वहीं नये नाम उजागर हो रहे हैं और कुछ नये नेता अपनी गर्दन आरोपों में फंसा रहे हैं। नये नेताओं को चुनाव लड़ना है तो खुद को भूमाफिया लोगों और बेवजह के मुकदमों से बचाकर रखना चाहिए।०0०

25 दिसंबर 2022.

करणीदानसिंह राजपूत,

स्वतंत्र पत्रकार.

( राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत)

सूरतगढ़ (राजस्थान)






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