शनिवार, 25 जून 2022

भारत सरकार द्वारा आपातकाल लोकतंत्र सेनानियों को न सम्मान न श्रद्धांजलि.

 

* करणीदानसिंह राजपूत *


आपातकाल 1975 - 77 के लोकतंत्र सेनानियों के प्रति भारत सरकार की ओर से न सम्मान है और न श्रद्धांजलि है। 

 यह बहुत ही पीड़ा जनक स्थिति आपातकाल से भी ज्यादा दुखदाई व मानसिक पीड़ा पहुंचाने वाली है जो लोकतंत्र सेनानी भोगते हुए दिवंगत हो रहे हैं। 

भारत सरकार की ओर से किसी एक लोकतंत्र सेनानी को श्रद्धांजलि भी अर्पित नहीं की गई। लोकतंत्र सेनानी  आपातकाल में सब कुछ छोड़ कर अचानक अपने घरों से निकल पड़े थे।देश सेवा का जज्बा था।संविधान की रक्षा की लोकतंत्र को बचाया और उन्हें पुनः कायम किया।


 प्रत्येक लोकतंत्र सेनानी और उनके परिवार जन पूजनीय है लेकिन भारत सरकार की नजरों में ऐसे पूजनीय लोगों के लिए सम्मान के लिए दो शब्द तक नहीं है।

भारत सरकार हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गृहमंत्री अमित शाह अनेक लोगों को सम्मानित करते हैं और अनेक लोगों के दिवंगत होने पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, मगर आपातकाल के लोकतंत्र सेनानियों के परिवार के यहां जाकर शोक व्यक्त करने के लिए समय नहीं,श्रद्धांजलि देने के लिए शब्द नहीं।

* इससे भी बड़ी बात यह है कि लोकतंत्र सेनानियों ने हजारों पत्र दिए उनका उत्तर नहीं दिया गया। लोकतंत्र सेनानियों ने मिलने का समय मांगा तो मिलने का समय भी नहीं दिया गया। क्या इसे स्वच्छ लोकतंत्र कहा जा सकता है? 

हम प्रधानमंत्री गृहमंत्री को बड़ा मानकर उनका आदर सत्कार करते रहे हैं और करते रहेंगे। प्रधानमंत्री की आपातकाल संबंधी फिल्म आएगी तो उसे भी देखने से इंकार नहीं करेंगे। हम जो बीत गया उसकी फिल्म देखेंगे लेकिन लोकतंत्र सेनानी जो आज 70 वर्षों से ऊपर 95 वर्ष तक की वृद्धावस्था में विभिन्न बीमारियों आर्थिक परेशानियों से जूझते हुए मर मर कर जी रहे हैं उनके सच की फिल्म जो लगातार रोजाना दिन रात बन रही है। उसका फिल्मांकन नहीं देखना चाहते। ऐसी हजारों फिल्में संपूर्ण भारत में बन रही हैं। प्रधानमंत्री गृहमंत्री किससी भी दिन किसी भी समय ये सच्ची फिल्में देख सकते हैं। 


यह कैसा देश है जिसको सब की चिंता है लेकिन प्रधानमंत्री के पास समय नहीं है गृह मंत्री के पास समय नहीं है कि वे सच्ची फिल्में देख सकें। असल में वे सच्च देखना नहीं चाहते। इसे किस प्रकार से सहन किया जा सकता है, लेकिन आज भी लोकतंत्र सेनानी हर परेशानी और दुखद स्थिति में बहुत कुछ सहन कर रहे हैं। लोकतंत्र में जिन लोगों ने मंत्री सांसद विधायक मुख्यमंत्री बन कर संपूर्ण सुख भोगे और भोग रहे हैं, उन्होंने ने भी कभी अपने आसपास लोकतंत्र सेनानियों को उनके परिवारों को देखने संभालने की कोशिश नहीं की। राजनीतिक दल भी लोकतंत्र सेनानियों को सम्मान करना तो दूर रहा,बात तक नहीं करते। यह कैसा देश बन गया है जहां सत्ता प्राप्त करने के बाद नेता अपने और अपने परिवार के लिए जीने लगता है।


** एक प्रकार से लोकतंत्र सेनानियों की आवाज को अनसुनी करके दबाया जा रहा है। यह स्थिति आपातकाल से भी ज्यादा भयानक और दुखदाई है।

 अनेक लोकतंत्र सेनानी इसे गलत बता देंगे लेकिन यह अकाट्य सच है।

* सोशल मीडिया पर विभिन्न प्रतिक्रियाओं में लिखा जा रहा है कि भारत सरकार लाखों रोहिंग्या मुसलमानों को सब कुछ दे रही है। रोहिंग्या मुसलमान जो देश के लिए कांटे समझे जा रहे हैं। उन्हें सब कुछ सुविधा दी जा रही है। वे  सपरिवार रहते जनसंख्या भी बढा रहे हैं।

लाखों रोहिंग्या मुसलमानों के लिए सब कुछ लेकिन कुछ हजार लोकतंत्र सेनानियों के लिए अपने ही देश में कुछ नहीं।

भारत सरकार न सम्मान देना चाहती है न श्रद्धांजलि देना चाहती है।

अनेक संघ के कार्यकर्ता जो लोकतंत्र सेनानी ग्रुप में जुड़े हुए हैं वह  कहते रहते हैं कि क्या हम सम्मान के लिए पेंशन के लिए देश सेवा के लिए गए थे? 

*  लेकिन यह भी सच है कि जो देश सेवा करते हैं उनकी सेवा और सम्मान करने का दायित्व भारत सरकार का बनता है।  प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का दायित्व बनता है। इसे किसी भी प्रकार के शब्दों में उलझा कर छोड़ा नहीं जा सकता। भारत सरकार प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से बनती है इसलिए इनका पहला दायित्व है कि लोकतंत्र सेनानियों का संपूर्ण राष्ट्र में एक जैसा सम्मान करें।

भारत सरकार संपूर्ण राष्ट्र में एक समान नीति से लोकतंत्र सेनानियों को सम्मान प्रदान करे व जो लोकतंत्र सेनानी दिवंगत हो चुके हैं, उनके परिजनों के लिए भी दायित्व निभाए। आपातकाल की बरसी पर कांंग्रेस को कोसना राजनीति है और राजनीतिक लाभ लेना होता है जो प्रधानमंत्री लेते रहे हैं।

प्रधानमंत्री भारतीय संविधान को नमन करते हैं लेकिन उसको मानते नहीं। लोकसभा की पेड़ियों पर शीश नवाते हुए नमन करते हैं मगर लोक सभा के दायित्व को मानते नहीं। भारतीय संविधान और लोकसभा लोकतंत्र के मंदिर सभी लोगों के सुखद जीवन और विकास का संदेश देते हैं जिनमें आपातकाल लोकतंत्र सेनानी भी हैं।

प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को आपातकाल की बरसी पर लोकतंत्र सेनानियों के सम्मान की ऐतिहासिक घोषणा कर देनी चाहिए। यह भी बता देना चाहिए कि स्वतंत्रता सेनानियों की तरह ही यह सम्मान माना जाएगा व अधिकार रखेगा।


इतने वर्षों तक यह कार्य नहीं हुआ उसके लिए लोकतंत्र सेनानियों से ही नहीं संपूर्ण राष्ट्र से क्षमा भी मांगी जानी चाहिए।०0०

दि.25 जून 2022.




करणीदानसिंह राजपूत,

उम्र 77 वर्ष.

पत्रकार 

( आपातकाल जेलबंदी)

सूरतगढ़ ( राजस्थान)

94143 81356.

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करणीदानसिंह राजपूत.


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