सीवरेज के पानी में कौन-कौन नहाए:सूरतगढ़ में तूफान मचा है
* लोक दिखाऊ हंगामा करेंगे करते रहेंगे, मगर एसीबी में मुकदमा नहीं करेंगे।*
करणी दान सिंह राजपूत
सूरतगढ़।
सीवरेज निर्माण की कमियां घोटालों से पूरा शहर परेशान है और इसी बीच भ्रष्टाचार के आरोपों की शिकायत से रोका गया भुगतान 1 करोड़ 48 लाख दे दिए जाने का मामला गरमाया हुआ है। सीवरेज के घोटाले रुक रुक कर आते हैं और तूफान मचता है। इसकी सही जांच कराने के लिए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में कोई नेता मुकदमा नहीं करवाता।
सीवरेज के पानी में नहा कर कौन-कौन पवित्र हो गए यही चर्चा गर्म है।
भुगतान की प्रणाली पर भी प्रश्न चिन्ह लगे हुए हैं। नगरपालिका के भुगतान होते रहे हैं मगर इस भुगतान की प्रक्रिया खुद बोल रही है कि गड़बड़ तो है। रोकी गई रकम के भुगतान में नगरपालिका के अध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा अधिशासी अधिकारी विजयप्रतापसिंह पर आरोप लग रहे हैं वहीं छह शिकायत करने वालों में से तीन जनों पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
सीवरेज निर्माण में घोटालों के चलते 60 करोड़ की रकम पालिका अध्यक्ष काजल छाबड़ा के समय निर्माण कं को दे दी गई। उसी बड़े भुगतान आदेश स्वीकृति में से यह रकम रोकी गई थी। यह रकम शिकायत पर रोकी गई थी।
* शिकायत करने वाले विनोद कुमार पाटनी मदन ओझा और लक्ष्मण शर्मा नगर पालिका के पूर्व उपाध्यक्ष रह चुके हैं।
शिकायत में इन्होंने अपना पूर्व पद नाम भी लिखा। शिकायत में यह भी लिखा कि इस घोटाले की जांच हो दोषियों का मालूम हो ताकि शहर में एक अच्छा संदेश जाए। अब मार्च 2022 में भुगतान करवा दिया गया। अच्छा संदेश की ईच्छा करने वालों ने ही भुगतान कर देने की सिफारिश अधिशासी अधिकारी से की।
शिकायत कर्ताओं ने विनोद पाटनी मदन ओझा और लक्ष्मण शर्मा ने नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी को लिखित में दिया कि वे जांच से संतुष्ट है और भुगतान करने की सिफारिश भी कर दी कि भुगतान कर दिया जाए। बस यही कमाल है।आज तक कभी ऐसे पत्र लिख कर के नहीं दिए गए आखिर इस पत्र को देने की आवश्यकता भी क्या थी?इस पत्र की कार्यवाही जो लिखित है बड़ी आश्चर्यजनक और सवालों के घेरे में है। हर बिंदु पर लिखा हुआ है कि जांच से संतुष्ट हैं।
* जब शिकायत की गई थी तब विस्तृत शिकायत थी और हर बिंदु स्पष्ट थे।
* पत्र में लिखा गया कि शिकायत अनजाने में कर दी गई। यह पंक्ति लिखना भी सवाल उठाता है।
यह सिफारिश पत्र लिखने वाले मदन ओझा लक्ष्मण शर्मा और विनोद पाटनी तीन जने हैं। कोई मान सकता है कि शिकायत अनजाने में कर दी गई थी? इस सिफारिश पत्र और इसकी भाषा शैली से प्रमाणित होता है कि इस भुगतान को कराने मे ये तीनों ईच्छा रखते थे।
शिकायतकर्ता तो 6 जने थे तीन जनों ने ही यह पत्र लिखा और बाकी 3 जनों को तो इस पत्र लिखने की भनक भी नहीं लगने दी। सब गुपचुप हुआ।
तीन अन्य शिकायत कर्ता पार्षद सावित्री स्वामी समाजसेवी किशनलाल स्वामी और समाजसेवी विमल राजपूत की संतुष्टि की जरुरत क्यों नहीं समझी गई? यही सबसे बड़ा सवाल है। पत्र भुगतान का लिखना ही सवालों के घेरे में है।
यह शिकायत अखबारों में छपवाई गई तो अब पत्र अखबारों से जनता के सामने क्यों नहीं रखा? मदन ओझा लक्ष्मण शर्मा और विनोद पटनी सवालों के घेरे में है और तीनों को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी कि यह पत्र क्यों लिखा और तीन जनों को टाला क्यों?
* नगरपालिका प्रशासन द्वारा छह जनों की शिकायत पर केवल तीन जनों का ही सिफारिश पत्र लेना और रोकी हुई रकम का भुगतान करना सवाल उठाता है।
* अधिशाषी अधिकारी विजयप्रतापसिंह ने पत्रकारों को कहा कि भुगतान की सारी प्रक्रिया सही रूप में की गई है।जो चाहे जांच करवालें।
इस चुनौती पूर्ण जवाब के बाद जांच की माग कर रहे नकलें मांग रहे सभी लोगों के लिए एक ही काम रहा है। वे मुकदमा करवाएं। यदि मुकदमा नहीं करवाते हैं तो थोथा चना बाजे घना कहलाएंगे।०0०