मंगलवार, 23 मई 2017

धर्मशालाओं को छूट दरों और मुफ्त दी गई जमीनें लोकायुक्त जांच के घेरे में


= करणीदानसिंह राजपूत =

20-4-2014.
अप डेट 1-8-2016.
अप डेट 23-5-2017.

राजस्थान सरकार के नगरीय विकास विभाग नगरपालिका नगरपरिषद व नगर विकास न्यास जैसी संस्थाएं सामाजिक व धार्मिक संगठनों को प्रचलित दरों से बहुत कम दरों पर और मुफ्त में जमीनें देती रही हैं। इन जमीनों का उपयोग अनुबंध के आधर पर किए जाने के बजाय व्यावसायिक या अन्य प्रकार से किए जाने की शिकायतें भी होती रही है। इनका अन्य प्रकार से इस्मेमाल प्रभावशाली लोग करते हैं जिनका राजनैतिक दलों से या उनके नेताओं से संबंध या संपर्क होता है। 


संस्थाएं जब जमीन लेती हैं तब पहले से ही यह तय हो जाता है कि उसका व्यावसायिक उपयोग किया लसएगा। इसके लिए जगह मुख्स सड़कों के किनारे वाली तय की जाती है या मुख्य स्थानों पर तय की जाती है। उन कीमती जमीनों के ही प्रस्ताव तैयार किए जाते हैं। बोर्ड और निगमों की बैठकों में प्रस्ताव पारित कर सरकार को भिजवा दिए जाते हैं। बली लोगों के अनुसार निर्माण होते हैं। संगठन में संस्थाओं में चाहे हजारों लोग सदस्य हों लेकिन जमीनों का लाभ चंद गिने चुने लोग ही उठाते हैं। ऐसे बली लोगों के विरूद्ध मोर्चा कौन खोले?
प्रभावशाली और बली लोगों से टकराना मामूली नहीं होता। पहले तो इनके विस्द्ध शिकायत करने को कोई तैयार ही नहीं होता। कोई तैयार होता है तो उसे दबाया जाता है और धिकारा जाता है कि वह समाज के विरूद्ध कार्य कर रहा है। जो प्रभावशाली होते हैं उनके साथ लाभ उठाने वाले भी जुड़े हुए होते हैं जो शिकायतकर्ता के विरूद्ध जहर उगलने लगते हैं और प्रताडि़त करते हैं। अनेक लोग अखबारों तक समाचार छपवा कर विरोध में एक दो शिकायतें कर चुप हो कर बैठ जाते हैं। अखबार वाले भी चुप हो जाते हैं।
लेकिन अनेक लोग ऐसे भी होते हैं जो चुप नहीं होते तथा जंग को तैयार रहते हैं। ऐसे लोगों को कुछ काल के बाद में सफलता भी जरूर मिलती है।
यह लेख जिस समाचार पर लिखा जा रहा है। वह राजस्थान के अखबारों में 14 अप्रेल 2014 को छपा है। लोकायुक्त ने उदयपुर के मामले में यह कदम उठाया है कि राज्य में पिछले 10 सालों में सामाजिक व चैरिटेबल संस्थाओं आदि को कम कीमत पर अथवा मुफ्त में जमीनें दी हैं उसका पूरा ब्यौरा 20 मई तक लोकायुक्त सचिवालय को भिजवाएं। अभी तो यह आदेश केवल उदयपुर के लिए ही हुआ है तथा माना जा रहा है कि अन्य स्थानों के लिए जल्दी ही जारी होगा। इसके अलावा उत्साही लोग लोकायुक्त को शिकायतें कर अपने शहरों के मामले पेश कर सकते हैं।
वैसे यह कोई नया निर्णय नहीं है। पहले भी इस प्रकार के मामले लोकायुक्त को पेश किए जाने पर कोई रोक नहीं थी। हां, इतना जरूर है कि कहीं की भी शिकायत किए जाने के बाद ही जांच शुरू हो सकती थी।
पूरे प्रदेश की ऐसी जमीनों की जांच जल्दी हो पाना संभव नहीं होगा। जो जमीनें गलत दी हुई अथवा गलत इस्तेमाल में पाई जाएंगी उनको भी सुन कर ही कोई निर्णय हो सकेगा।
लेकिन लोकायुक्त सचिवालय का यह कदम सराहे जाने योग्य है और माना जाना चाहिए कि इसका परिणाम अच्छा ही निकलेगा।

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