रविवार, 4 जुलाई 2021

नगर पालिका बैठक में भाजपा पार्षदों के व्यवहार पर पूरा शहर चकित है। क्या है संभावित कारण?

 



* भाजपा भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में शिकायत नहीं करती है तो वह आरोप के भाषण कर नाटक कर रही है। *


* करणीदानसिंह राजपूत *


सूरतगढ़ नगर पालिका की 2 जुलाई की बैठक में विधायक रामप्रताप कासनिया ने जब बैठक का बहिष्कार किया उस समय भाजपा के कुछ पार्षद बैठक में से उठे नहीं और यह व्यवहार शहर में चर्चा बन गया। विधायक नगर पालिका मैं सदस्य के रूप मान्य है लेकिन असल में नगर पालिका में पार्षदों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। 

पार्षद अपनी अहमियत साधारण शब्दों में कीमत शब्द से समझाया जा सकता है पार्षद अपनी कितनी कीमत अहमियत मानते हैं?

नगर पालिका सूरतगढ़ का पिछले कई सालों का इतिहास देखा जाए तो आश्चर्य होता है पार्षद पहले खूब शोर करते हैं हल्ला मचाते हैं। नगर पालिका के अध्यक्ष पर भ्रष्टाचार और नियम विरुद्ध कार्य करने के आरोप लगाते हैं।इसके साथ ही सर्वसम्मति से हर साल एक सौ करोड़ रू. से अधिक का बजट पारित हो जाता है और हर बैठक में सारे प्रस्ताव पारित हो जाते हैं। 

प्रस्तावों पर कभी मत भिन्नता होने पर मत विभाजन होना चाहिए। कौन किस प्रस्ताव के पक्ष में है कौन प्रस्ताव के विरोध में है और कौन बीच में है न इधर ना उधर। 

करीब 10 सालों से अगर देखा जाए तो एक दो प्रस्ताव निरस्त हुए या रोके गए हैं जिनकी संख्या लगभग शून्य सी है। 

जब हर प्रस्ताव पारित ही किया जाना है तो फिर शोर-शराबे का नाटक क्यों होता है?


 नगर पालिका बोर्ड की बैठक की अध्यक्षता नगर पालिका अध्यक्ष करते हैं जब जब शोर-शराबा हुआ तब एक ही आरोप लगाया जाता है कि बोलने नहीं दिया गया।

 नगर पालिका की बैठक शोर-शराबे से खत्म नहीं हो इसलिए हर नागरिक चाहता है कि शांति से अपनी अपनी बात सभी पक्ष विपक्ष के पार्षद करें और महिला सदस्यों को भी बोलने का मौका दिया जाए। 

जिनको पक्ष में बोलना है वे पक्ष में बोलें और जिनको विरोध में बोलना है वे अपनी बात का उल्लेख करें। 

जब कोई भी पार्षद उत्तेजित होकर के बोलने लगता है तो उस उत्तेजना में प्रस्ताव के तथ्य तो लुप्त हो जाते हैं और शोर-शराबा शुरू हो जाता है,जो तथ्य सामने आने चाहिए वह सामने नहीं आ पाते। 

नगर पालिका सूरतगढ़ की 2 जुलाई की बैठक में यही हुआ शोर-शराबे की भेंट में सभी प्रस्ताव पारित हो गए। 

विधायक रामप्रताप कासनिया द्वारा बहिष्कार हुआ। उनके साथ भारतीय जनता पार्टी के कितने पार्षद बाहर गए और कितने सभाकक्ष में बैठे रहे,क्यों बैठे रहे? 

यह महत्वपूर्ण है। असल में निर्वाचन के बाद राजनीतिक दल अपने पार्षदों पर नियंत्रण नहीं रखते। उनसे मेलजोल नहीं रखते,स्वच्छंद छोड़ देते हैं। स्वछंद छोड़े हुए पार्षद फिर अपनी मनमर्जी का रवैया अपनाते हैं। अपनी व्यक्तिगत मित्रता को निभाते हैं। वे अपनी लाभ हानि सोचकर निर्णय करते हैं। 

होना तो यह चाहिए कि नगर पालिका की जब भी बैठक हो उससे पहले पार्टियों की बैठकें हो जिनमें हर प्रस्ताव पर चर्चा हो। 

नगरपालिका की  बैठक के अंदर क्या करना है? जब इस प्रकार के नीतिगत कोई बैठक नहीं हो समझाइश नहीं हो तब अकेले पार्षदों को कोसना, उनके व्यवहार को गलत बताना, अनुचित रहेगा। 

भारतीय जनता पार्टी के पार्षद विधायक के बहिष्कार के बावजूद बैठक में उपस्थित रहे। इस पर आगे के लिए मनन किया जाना चाहिए।

 

केवल नगर पालिका बैठक से पहले ही पार्टी पार्षदों की बैठक क्यों हो, समय समय पर बैठकें होनी चाहिए। 

नगर मंडल की एक बैठक हर माह होनी चाहिए। ऐसी बैठकें अगर हो और उसमें पार्षद भी उपस्थित हो तो सभा आदि में एक निश्चित तरीके से व्यवहार किया जा सकता है। आजकल भारतीय जनता पार्टी में लेसन देने का पाठ पढ़ाने का कोई कार्य संपादित नहीं होता। जब किसी को शिक्षा ही नहीं दी जाए तब उससे हर समय नीतिगत व्यवहार की आशा ही क्यों की जा सकती है। 

विधायक ने बहिष्कार किया उस समय सभी को बाहर आना चाहिए था यह आशा की जाती है लेकिन उस अचानक घोषणा पर कुछ पार्षद तो तत्काल निर्णय लेने जितने सतर्क ही नहीं होते। क्या करना है की सोच में बैठे रह जाते हैं।

विधायक के बहिष्कार करते ही या तो विधायक ही कहते कि बाहर चलो या फिर कोई भाजपा पार्षद ही सभी को उठने के लिए कहता। उसके बाद कोई नहीं उठे और बैठा रहे तो दोषी। 

यदि नगरपालिका में भ्रष्टाचार हो रहा हो तो बैठक में उठाना ही चाहिए। लेकिन बैठक निश्चित नहीं हो तो बैठक के बाहर भी जनता में मीडिया में मामले रखे जा सकते हैं। यदि प्रमाण हो तो फिर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में भी दिए जा सकते हैं। नगरपालिका बैठक में तो केवल चर्चा तक ही सीमित होते हैं। अब सबसे बड़ा प्रश्न है कि विश्व में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का ढिंढोरा पीट कर सर्वोच्च साबित करने वाली पार्टी के द्वारा भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में शिकायत करने से पीछे क्यों रहा जाता है? कोई कार्यकर्ता कोई पार्षद ब्यूरो में शिकायत करे। यदि कोई पार्षद नागरिक शिकायत नहीं कर रहा हो तो नगरमंडल अध्यक्ष का प्रथम कर्तव्य है कि वह शिकायत करे। आखिर वह किस लिए अध्यक्ष पद पर है?अब जो प्रश्न पार्षदों पर हो रहे हैं वे नगर मंडल अध्यक्ष पर होने चाहिए। 

भ्रष्टाचार शब्द को नाटक के रूप में नहीं खेला जा रहा है तब भाजपा नगर अध्यक्ष को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में बिना देर किए शिकायत देनी चाहिए। ०0०









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