मंगलवार, 18 जुलाई 2017

विधायक राजेंद्र भादू व पूर्व विधायक गंगाजल मील की कुश्ती बंद:


कासनिया की स्कूली जमीन प्रकरण को हाई कोर्ट में ले जाने वाला मील भादू की कोठी कटलों पर चुप्प:
मील के प्रकरणों पर भादू का मौन: 
भाजपा कार्यकर्ता कासनिया के पास भरोसा देख रहे हैं। 

विशेष रपट- करणीदानसिंह राजपूत

गंगाजल मील ने रामप्रताप कासनिया की स्कूली जमीन का मामला राजस्थान उच्च न्यायालय में पेश किया लेकिन भादू परिवार के कटलों कोठियों के तथ्य खुल जाने के बाद उस पर मौन है और कोई भी कार्यवाही नहीं करने जैसी चर्चाएं आम हैं। रामप्रताप कासनिया परिवार द्वारा संचालित स्कूल जाखड़ावाली में सेम में आ गया। मंडी समिति ने उसके लिए स्थानान्तरण में सूरतगढ़ कस्बे में अपने मंडी क्षेत्र में भूखंड आवंटित करने का निर्णय किया। उस स्थान पर अतिक्रमण होने की वजह से फिर बदलाव चाहा गया। नई धान मंडी व आवासन मंडल कॉलोनी के बीच की कीमती जमीन चिन्हित की गई और नगरपालिका द्वारा कार्यवाही की जाने वाली थी। उस समय स्कूल के 2 लाख रूपयों के बदले में जो जमीन दी जाने वाली थी,उसकी कीमत करीब 2 करोड़ रूपए के लगभग मानी जा रहा थी।
नगरपालिका में इस भूमि को देने का प्रस्ताव पारित नहीं हो सका। इसके बाद गंगाजल मील ने 1 साल बाद प्रेस वार्ता बुलाई जिसमें कासनिया परिवार पर भूमि लेने के आरोप लगाए। कागजात भी बांटे। पत्रकारों के प्रश्र उठाए जाने पर मील ने कहा कि राजस्थान उच्च न्यायालय में प्रकरण पेश किया जाएगा। मील ने बाद में बताया कि प्रकरण राजस्थान उच्च न्यायालय में पेश कर दिया गया है।
अब मील आरोपों और सवालों के घेरे में इसलिए है कि स्कूल की जमीन जो उस समय लगभग 2 करोड़ की मानी जा रही

थी उसके लिए तो विरोध किया लेकिन भादू परिवार के कोठी कटले जो कई कई करोड़ रूपयों के हैं तथा उनके अनेक तथ्य सामने आ जाने के बाद भी मील कोई कार्यवाही क्यों नहीं कर रहे हैं?
राजेन्द्र भादू जिस कोठी में निवास कर रहे हैं वह सड़क पर बनी होने का आरोप है और ऐसा दिखाई भी देता है। इसके अलावा प्रधानजी बीरबल की कोठी में आसपास की सड़कें शामिल किए जाने के आरोप व नक्से तक छप चुके हैं। मनफूलसिंह भादू के परिवार वाले सिनेमा व आवास का मामला भी आरोपों में घिरा है। इसके भी अनेक प्रमाण सामनें आ चुके हैं।
कासनिया परिवार की स्कूली जमीन के प्रकरण पर बोलने वाले मील साहेब अब कोमा में चले जाने जैसी चुप्पी साध गए हैं।
एक ही वर्ग के दो दिग्गज राजनेताओं में कुछ तो है। न तुम बोलो न मैं बोलूं। इसके पीछे कुछ और भी पक रहा है।
पीलीबंगा में गंगाजल मील कासनिया और भादू में चुनावी घमासान होता है। एक ही वर्ग के तीनों में से कोई एक तो जीतना ही था। कासनिया जीत गए। इसके बाद सूरतगढ़ में घमासान हुआ। मील साहेब जीते विधायक बने। वर्ग की जीत कायम रहनी ही थी। इसके बाद फिर चुनाव हुए और राजेन्द्र भादू विधायक बने। यही वर्ग मुख्य रूप में खड़ा था सो एक तो जीतना ही था। यहां इस वर्ग की आलोचना करना विषय नहीं है। यह वर्ग राजनीति में सूझबूझ से सदा बने रहने के लिए अपने ही वर्ग को पक्ष विपक्ष में रखता रहा है। कोई भी जीते। लोगों को अन्य वर्गों को लगता है कि ये लड़ रहे हैं झगड़ रहे हैं। लेकिन जो सच्च है वो भी सामने है कि मील भादू दोनों चुप्प हैं।
भालू कालू  में सामने आए प्रकरणों पर कोई कार्यवाही नहीं हो और आगे और भी प्रकरण हों तो भी कोई कार्यवाही न हो। यह राजनैतिक खेल बड़ी चतुराई से चल रहा है। मील व भादू दो प्रतिद्वंदी नजर नहीं आ रहे हैं। दोनों एक जोड़ी के रूप में नजर आ रहे हैं। अपनी अपनी संपत्तियों और जमीनों की सुरक्षा का ध्येय साफ झलक रहा है।

 राजेन्द्र भादू ने मील की संपत्तियों निर्माणों आदि पर कोई कार्यवाही शुरू नहीं करवाई है और मील ने राजेन्द्र भादू की संपत्ति व कोठी कटलों जमीनों पर कोई शिकायत या प्रकरण कहीं दर्ज नहीं करवाया है। दोनों की ओर से पहले नूरा कुश्ती चलने के जो संकेत थे अब वे भी खत्म हो गए हैं। नूरा कुश्ती भी बंद हो गई है। अब दिखावटी लड़ाई भी नहीं करेंगे।
यह गौर करने वाले तथ्य हैं कि मील और कांग्रेस के पदाधिकारी व कार्यकर्ता भादू व भाजपा के मामले में समझौता जैसी प्रणाली से चल रहे हैं। पूर्व विधायक गंगाजल मील,पूर्व जिला प्रमुख पृथ्वीराज मील, शहर  ब्लॉक अध्यक्ष,राजियासर ब्लॉक अध्यक्ष, युवा कांग्रेस विधानसभा क्षेत्र गगनदीप आदि किसी ने भी विधायक राजेन्द्रसिंह भादू के निवास और भादू परिवार के कटलों के प्रकरण सामने आने के बाद कोई मामली विरोध तक दर्ज नहीं करवाया कहीं बयान तक नहीं दिया। 

सत्ता पक्ष भाजपा के विरूद्ध कार्यवाही हो सकने वाले प्रमाण सामग्री मिलने के बावजूद कोई कार्यवाही नहीं,भाजपा के पक्ष में मौन रहते भाजपा के विधायक के विरूद्ध चुप रहते क्या कांग्रेस हवाई बातों से उभर पाएगी? 

कांग्रेसी नेताओं पदाधिकारियों की शक्ति पर भरोसा ही नहीं होगा तब लोग वोट कांग्रेसी प्रत्याशी को क्यों देंगे? कांग्रेसी
 टिकट वाले क्या कह कर वोट मांगेंगे? नेता  ही आवाज नहीं उठाऐंगे तब आम जनता सत्ताधारी पार्टी भाजपा प्रत्याशी का विरोध कर बैर क्यों मोल लेगी? 
 कांग्रेस को यह तो दिल दिमाग से निकाल ही देना होगा कि सूरतगढ़ में कांग्रेस की जीत संभव हो पाएगी।
अभी तो किसी भी वार्ड से कांग्रेस की आवाज ही निकलनी शुरू नहीं हुई है। भादू और मील की चुप्पी का एक असर जरूर सामने आ रहा है। भाजपा के अनेक लोग मील से नारा
ज थे। मील काल पालिका क्षेत्र में पीड़ाएं झेलने वालों को जबसे मालूम हुआ कि भादू तो मील के विरूद्ध कोई कदम ही नहीं उठा रहा और उठाना चाहता भी नहीं। तब लोगों ने कासनिया की कोठी का रास्ता पकड़ लिया । भाजपा के पुराने नए कार्यकर्ताओं को  वहां देखा जा रहा है। भादू के खास खास लोग तक यह मानने लगे हैं और स्वीकारने लगे हैं कि कार्यकर्ता कासनिया के पास भरोसा देख रहे हैं। 
कांग्रेसी लोग भी मान रहे हैं कि कासनिया के पास लोगों का आना जाना बढ़ा है और निरंतर बढ़ रहा है। बात अकेले शहर की नहीं ग्रामीण लोग भी कहने लगे हैं कि भादू काम ही नहीं करता। भादू ने विधायक सेवा केन्द्र खोला जहां भीड़ छोड़, पांच दस कार्यकर्ता ही बड़ी मुश्किल से सारे दिन में पहुंचते हैं। हां कहीं चुनाव में जीत हो जाए तो पटाखे फोडऩे के लिए फोटो खिंचवाने के लिए कार्यकर्ता जरूर पहंच जाते हैं। 
लोगों को कासनिया की ताकत का अहसास होने के कारण भी लोग भादू के बजाय कासनिया को अहमियत दे रहे हैं। 
प्रथम 26-10-2014.
अपडेट  18-7-2017.

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