रविवार, 25 जून 2017

इंदिरा गांधी के राज के अत्याचार भरे सच : 37 साल पहले लगाया था आपातकाल

राजस्थान में भाजपा के राज में वसुंधरा के मुख्यमंत्री काल में 17 सितम्बर 2008 को असाधारण आदेश राजपत्र में प्रकाशित किया गया। इस आदेश पर कार्य शुरू हो गया। आपातकाल के पीडि़तों की ओर से प्रमाणपत्र आदि दे दिए गए, मगर पेंशन लागू होने से पहले ही चुनाव की आचार संहिता लागू हो गई और सरकार कुछ कर नहीं पाई। इसके बाद में कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार बनी जिसने इस योजना को लागू करने से मना कर दिया।

सामयिक टिप्पणी: तीखे तेवर

31-10-2011.

अपडेट 25-6-2017.

इंदिरा गांधी के राज के अत्याचार भरे सच : 42 साल पहले लगाया था आपातकाल

आपातकाल की पीड़ाओं में  हजारों परिवार खत्म हो गए और जो बाकी हैं वे पीड़ाएं भोग रहे हैं

राजस्थान में 2008 में पेंशन लागू करने की योजना बनाई गई, मगर  चुनाव घोषणा की आचार संहिता लागू होने से अटकी और बाद में आई कांग्रेस सरकार  ने  लागू नहीं की

- करणीदानसिंह  राजपूत

इंदिरा गांधी की हत्या के दिवस पर संपूर्ण देश में अखबारों में विज्ञापनों के माध्यम से केन्द्र व राज्य सरकारों की ओर से सरकारी स्तर पर परंपरागत श्रद्धांजलि अर्पित की गई है। उनके अनुगामी जिसमें केवल कांग्रेस है या उसके संगठन के सत्ताधारियों,पदाधिकारियों के द्वारा भी श्रद्धाजलि देने के कार्यक्रम 31 अक्टूबर को यत्र तत्र चलेंगे जिनके समाचार भी परंपरागत अखबारों में अगले दिन छपे हुए मिलेंगे।       

इंदिरा गांधी के राज में सब कुछ वह नहीं हुआ जो सराहा जाए। सन 1975 में 25 जून को आपातकाल लागू कर संपूर्ण देश को जेल बना दिया गया था उसकी आलोचना संपूर्ण संसार में हुई थी। बहुत दर्दनाक हालात में लोग गुजरे। हजारों लोग तबाह हो गए। अनेक लोग मौत के शिकार हुए अनेक के कारोबार ठप हुए तथा बाद में पनप ही नहीं सके।

    देश के कई लेखकों ने अपने लेखों में लिखा है कि आपातकाल के घावों को समय ने मरहम लगाई है। लेकिन यह सच नहीं है। केवल शब्दों में लिख देने मात्र से मरहम नहीं लग पाती। उन लेखकों को मालूम नहीं कि अनेक परिवार वे पीड़ाएं अभी भी भोग रहे हैं। जिनके रोजगार बंद हो गए, कारोबार उजड़ गए वापस पनपे ही नहीं,उनके मरहम कैसे लग गया? आपातकाल लागू करने की तिथि को संैतीस साल हो चुके हैं। आपातकाल को भोगने वाले लोग करीब सतर प्रतिशत तो अब इस संसार में नहीं है, जो हैं वे सब 50 साल से उपर की आयु में यानि कि वृद्धावस्था में है। जो जीवित हैं वे वृद्धावस्था में भयानक अभावों व कष्टों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं और जो संसार से विदा हो चुके हैं उनके परिवार कष्टों भरा जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

यह मान भी लें कि उनको तीन साल बाद बदलाव के बाद आने वाली सरकारें लाभ दे भी दें तो उस बदलाव तक अनेक लोग और कालकल्वित हो चुके होंगे। इस पीड़ा को कोई समझ नहीं पा रहा है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है जिसने यह योजना लागू करने से मनाही करदी। हालांकि आपातकाल की पीड़ाएं और जेलों के कष्ट भोगने वाले हजारों लोग कांग्रेस में भी है, जो किसी न किसी रूप में उस समय पुलिस व सिविल प्रशासन की मनमानियों का शिकार हुए। बिना किसी अपराध के केवल अधिकारियों के साथ किसी कारण से अनबन थी तो उनको भी जलों में ठूंस दिया गया था। उस समय तो कोई सुनने वाला ही नहीं था। शांति भंग जैसे साधारण मामले बना कर भी लोगों को जेल पहुंचा दिया गया। इस प्रकार के मामले तो प्रशासनिक अदालतें ही सुनती है और उस समय प्रशासन तो बौना हो चुका था।

    राजस्थान में आपातकाल में सन 1975-77 में मीसा,डीआईआर और भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता  की धाराओं 107-151 के तहत बंदी और नजरबंद किए गए राजनैतिक कार्यकर्ताओं व सत्याग्रहियों के लिए लोकतंत्र रक्षा मंच कार्य कर रहा है। इस मंच का गठन राजनैतिक बंदियों की ओर से जनतांत्रिक अधिकारों के लिए किया गया है। मंच के अध्यक्ष कौशल किशोर जैन की ओर से राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर बैंच में एक याचिका केस नं 7176-2010 प्रस्तुत की हुई है जिसके पैरवीकार प्रसिद्ध वकील भरत व्यास हैं।

आपातकाल के 35 वर्ष पूर्ण होने पर आजादी की तीसरी लड़ाई का दर्जा देते हुए जयपुर में एक सम्मेलन भी आयोजित किया गया था। इसके बाद भी एक कार्यक्रम हुआ। मंच के महा सचिव फरीदुल्लाह कोटा राजस्थान निरंतर कार्यरत हैं।

 सामयिक लेख के लिखने का एक ही कारण है कि इंदिरागांधी को आयरन लेडी का संबोधन देते हुए जो श्रद्धांजलि दी जा रही है, महान बताया जा रहा है। वहां पर उनके द्वारा लादे गए आपातकाल के कलंक को भी याद रखा जाए जिसमें आजाद भारत में लोगों की आजादी छीनी गई और इसको कभी भुलाया नहीं जा सकता और आने वाली कोई भी सरकार इतिहास के इन पृष्ठों को चाहकर भी हटा नहीं सकती।

- स्वतंत्र पत्रकार,

सूरतगढ़।

मोबा.  94143 81356
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