* करणीदानसिंह राजपूत *
वीआईपी जनसभा में मुख्य अतिथि का भाषण होते वक्त 5 से 7 सौ लोग लंगर छकने में मस्त थे। एक हजार भी हो सकते हैं। लंगर पंडाल में शोर ज
बरदस्त कि भाषण की आवाज ही नहीं सुन सके। यदि आवाज सनाई पड़ती तो मानते कि चलो भाषण तो सुना।
* लंगर खाया और मस्त हो गायन सुना। राजनीतिक भाषण नहीं सुने।
** ऐसे भी होते हैं शहर में चलो लंगर तो खा आते हैं। भाषण सुनना ही नहीं।
👍 लंगर लगाना और उसमें चाट पकोड़े, पनीर पकोड़े, कचोरी समोसा। लंगर लगाना है तो दाल रोटी। बस। लाखों खर्च करने का फैशन जैसा होने लगा है। अपना झंडा ऊंचा रहे। झंडा तो सच्च में ऊंचा रहा मगर उन्होंने भाषण नहीं सुना। फिर ऐसी भीड़ से जब लाभ नहीं मिला तो यह लंगर रखा क्योंं? सभाओं में जाने आने वाले घर से भूखे नहीं चलते।
* असल में सभा के भाषण सुनाने हैं तो इस चोंचलेबाजी को मत करो।
* चाय पानी की व्यवस्था बहुत है। ०0०
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