सोमवार, 28 अगस्त 2023

चुनाव के इच्छुक नेताओं को आपराधिक मुकदमों से बचना चाहिए

 




 * करणीदानसिंह राजपूत *


चुनाव आयोग के नियम निर्देशिका के अनुसार राजनीति और सरकार को स्वच्छ रखने के लिए चुनाव लड़ने के लिए नियम बनाए गए हैं।

जिनमें आपराधिक मुकदमों  से संबंधित नियम भी है। चुनाव प्रपत्र में घोषणा करनी पड़ती है कि किन-किन मुकदमा में फंसे हुए हैं या बरी हो चुके हैं। मुकदमे चल रहे हैं।

* इससे मतदाता की मानसिकता पर असर पड़ता है के संबंधित व्यक्ति को चुने या नहीं चुने? मुकदमों से व्यक्ति पॉपुलर तो हो सकता है लेकिन जो भी मुकदमा होता है वह राजनीतिक दल नहीं लड़ते, साथी लोग नहीं लड़ते,उकसाने वाले लोग नहीं लड़ते, आंदोलन के आयोजन भी नहीं लड़ते। मुकदमा संबंधित व्यक्ति को खुद को लड़ना पड़ता है और यह लड़ाई बहुत लंबी चलती है, धीमी चलती है, वर्षों तक संबंधित व्यक्ति को ही भाग दौड़ करनी पड़ती है।जिसमें समय और पैसा भी लगता है। 

* हर मुकदमे में बचाव हो जाए।  बरी हो जाए ऐसा भी संभव नहीं होता। सजा भी हो सकती है। जुर्माना भी हो सकता है।इसलिए नेताओं को कार्य कर्ताओं को जब भी कोई आंदोलन हो संघर्ष हो उनमें चाहे जितना जोश हो उत्तेजना हो फिर भी आवेश में आकर ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जो बाद में दुखदाई हो। जिसमें आपराधिक मुकदमा दर्ज हो जाए इस प्रकार के मामलों में आंदोलन में जनता का सहयोग जरुर करें लेकिन अपने ऊपर मुकदमा बनवाने जैसा कार्य न करें। अनेक बार उत्तेजना में ऐसी घटनाएं हो जाती है जो बाद में बहुत दुखदाई होती है। सैकड़ो की भीड़, हजारों की भीड़ हो उसमें अपने आप को नेता सिद्ध करने के लिए प्रसिद्ध करने के लिए अकेला व्यक्ति या दो-तीन व्यक्ति ऐसा कार्य कर लेते हैं जो भारतीय दंड संहिता के या अन्य कानून में अपराधिक कार्य  होता है।


 आपराधिक मुकदमे जरूर नहीं है कि वे प्रसिद्धि ही दिलाए उनमें सजा भी मिल सकती है।

👍 चुनाव के मौके पर आंदोलन संघर्ष सत्ताधारी पार्टी के विरुद्ध बहुत होते हैं। ऐसे मौकों  पर उत्तेजना में मुकदमे भी बन जाते हैं। कानून को हाथ में भी ले लिया जाता है। मारपीट भी कर दी जाती है। किसी की हत्या या हत्या जैसी कोशिश भी हो जाती है। सरकारी संपत्ति का नुकसान भी हो जाता है। 

* हो सकता है व्यक्ति करना नहीं चाहे लेकिन उत्तेजना में हो जाता है। उत्तेजना में किए हुए अपराध में सजा में कोई छूट नहीं होती। सजा जुर्माना अदालत देती है करती है तो वह भोगना ही पड़ता है। 

👍 यहां विशेष बात ध्यान देने योग्य है कि संघर्षों में आंदोलन में चुनाव के मौके पर जो बड़े नेता हैं विधायक हैं पूर्व विधायक है सांसद हैं या पूर्व सांसद हैं वे सभी व्यक्ति बहुत ध्यान रखते हैं। वे कहीं भी मारपीट करने में सरकारी संपत्ति नष्ट करने में आगे नहीं आते।

 अब यहां सोचने की बात है कि जब वे बड़ी सावधानी रखते हैं, आगे नहीं आते तब सामान्य कार्यकर्ता को साधारण नेता को उत्तेजना में आकर आपराधिक कार्य करना उचित है या अनुचित है, यह सोचना चाहिए? 

👍बड़े नेता साधारण प्रदर्शन धरने आदि में रहते हैं।  कागजी कार्रवाई में रहते हैं लेकिन आपराधिक गतिविधियों में नहीं रहते। इस बात को सोचना और समझना चाहिए।

कोई समाज  संगठन या आयोजनकर्ता  कभी भी किसी को कहीं भी मारपीट करने के सरकारी संपत्ति नष्ट करने की इजाजत नहीं देता,न कहता है न बोलता है न लिख कर देता है। अपराध करने वाले व्यक्ति की स्वयं की जिम्मेदारी होती है।

* शुरुआत में जब मुकदमा दर्ज होता है पुलिस गिरफ्तार करती है उस समय तो संगी साथी नेता साथ देने के लिए हमेशा साथ रहने के लिए नारे लगाते हैं लेकिन दो-चार दिन बाद ही हर व्यक्ति दूर हटता जाता है। हर एक व्यक्ति के कार्य निकलने लगते हैं और व्यस्त बताने लगते हैं. जिस पर मुकदमा होता है वह अकेला लड़ता है। अकेले ही पैसा खर्च करता है। ना कोई सगी होता है ना कोई साथी होता है न राजनीतिक पार्टी उसका साथ देती है। ०0०

28 अगस्त 2023.

करणीदानसिंह राजपूत,

पत्रकार,

(राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत)

सूरतगढ ( राजस्थान )

94143 81356

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