शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022

प्रो.केदार का पत्र जेलर के हाथ नहीं लगा। गुरूशरण छाबड़ा व करणीदानसिंह की योजना.

 

* करणीदानसिंह राजपूत *


अपनी सत्ता बचाने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देशभर में लगाए आपातकाल ( 1975-77) का विरोध सूरतगढ़ में पहले दिन ही हो गया। गुरुशरण छाबड़ा के नेतृत्व में रेलवे स्टेशन के आगे आम सभा की गई जिसमें सरकार के द्वारा लगाए गए आपातकाल का जबरदस्त विरोध किया गया था। सूरतगढ़ से अगले ही दिन 27 जून 1975 को गिरफ्तारियां हुई। एडवोकेट सरदार हरचंद सिंह सिद्धु को 27 जून 1975 को उनके निवास से पकड़ा गया। सूरतगढ़ में प्रदर्शन करके गिरफ्तारियां दी गई। सूरतगढ़ में आपातकाल के विरोध का जबरदस्त माहौल था जो चंद संघर्षशील लोगों की ओर से था। आम लोगों को सरकार ने बहुत भयभीत कर दिया था। अत्याचार भी बहुत हुए थे।

गुरुशरण छाबड़ा और मैं करणी दान सिंह राजपूत श्रीगंगानगर जेल में बंद थे तब बाहर निकलकर साइक्लोस्टाइल गुप्त अखबार निकालने की योजना भी बनी, हालांकि यह योजना सफल नहीं हो पाई क्योंकि फोटोस्टेट का काल नहीं था। उस समय साइक्लोस्टाइल मशीनों से काम होता था। स्टैंसिल काटे जाते थे जो हिंदी में संभव नहीं थे। केंद्र सरकार के एक सरकारी कार्यालय में मालचंद जैन पटावरी के द्वारा व्यवस्था करली गई मगर वहां अंग्रेजी टाइप थी। वह योजना सिरे नहीं चढ सकी। 

* हम श्री गंगानगर जेल में बंद थे उस समय राजस्थान के नेता प्रोफ़ेसर केदारनाथ (श्री गंगानगर)खातीपुरा जेल में बंद थे। यह स्पेशल जेल घोषित की गई थी। प्रोफेसर केदार का पत्र सूरतगढ़ में मेरे पते पर पहुंचा। पोस्टकार्ड था जिसमें पूछा गया था कि श्रीगंगानगर में कितनी गिरफ्तारियां हुई है। जयपुर के एक पते पर सूचना भिजवानी थी।

 केदार जी को मालुम नहीं था कि मुझे भी गिरफ्तार कर लिया गया है। सूरतगढ़ से यह पत्र उपन्यास के बीच में रखकर श्रीगंगानगर जेल में भेजा गया। जिस दिन कुछ सामान मुझे मिला उसी दिन जेलर की सख्त जांच हुई। कुछ अखबार थे वह जेलर ने रख लिए। उपन्यास को भी पन्ने पलट करके देखा गया लेकिन पोस्टकार्ड अंदर छिपा हुआ था इसलिए बच गया। 

प्रोफेसर केदार को मैंने यह सूचना भिजवाई। जेल में से जो सिख कैदी तारीख पेशी पर बाहर जाते उनके साथ पत्र भेजे जाते। वे डाक डिब्बे में डलवा देते। उनकी पगड़ी में पत्र छिपा कर बाहर भेजे जाते थे। प्रो.केदारनाथ जी को मैंने जयपुरसूचना भिजवा दी। उनका एक पता दिया हुआ था उस पते पर मेरा पत्र पहुंच गया था।

( प्रो.केदारनाथ शर्मा 1977 में विधायक चुने गए और राजस्थान के गृहमंत्री बने। गुरूशरण छाबड़ा सूरतगढ़ से 1977 में विधायक चुने गए।)

 सूरतगढ़ में जब हाथ से लिखे हुए पर्चे खास खास जगह पर पहुंचाए जाते थे तब उसमें आरएसएस का बड़ा सहयोग था। 

स्वयंसेवक कौन यह पर्चे कहां पहुंचा रहा है इसका किसी को पता नहीं था। मेरी हस्तलिपि साफ सुंदर होने के कारण मेरी ड्यूटी थी एक साथ चार पांच कार्बन प्रतियां निकालना। किसी को मालुम न हो सके इसलिए कागज और कार्बन पेपर भी अन्य व्यक्ति लाता। कार्बन पेपर भी एक साथ नहीं खरीदे जाते। एक एक मंगवाया जाता था। बहुत गुप्त कार्य था इसलिए किसी को आपातकाल के बाद में भी पता नहीं लगा कि किसने इसमें साथ दिया था। 

गुरूशरण छाबड़ा जब जेल से बाहर आए तो सड़कों के ऊपर  सामान्य रूप से कार्यकर्ताओं तक पत्र पहुंचा देते से। यह कार्य निर्भीक रूप से किया जाता रहा। 



आपातकाल में तो समाचार पत्र भारत जन जब्त हो गया था लेकिन जब आपातकाल खत्म हुआ तब आपातकाल के बारे में समाचार छपे।

 उसी का यह अंक 8 नवंबर 1977 मैं आप सबके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं। भारत जन का प्रकाशन संपादन मेरे स्वामित्व में हुआ था जो 1973 से 1979 तक चला था। ०0०

30 दिसंबर 2022.

करणीदानसिंह राजपूत,

उम्र 77 वर्ष पार.

स्वतंत्र पत्रकार 

( आपातकाल जेलबंदी)

सूरतगढ़ ( राजस्थान )

94143 81356.

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