गांधी नेहरू इंदिरा हमारे पित्तर (पितृ) नहीं,जो सारे काम छोड़ हर समय याद किया जाए.
* करणीदानसिंह राजपूत *
आपातकाल लोकतंत्र सेनानियों,
गांधी नेहरू इंदिरा हमारे पित्तर (पितृ) नहीं हैं जो दिन रात इन्हें याद रखे जाएं। कुछ लोग अपने सारे काम छोड़ कर हर समय उनको याद करते हैं। इतना अपने मरे मां बाप को याद नहीं करते। जीते हुए मां बाप से बात करने के लिए समय नहीं होता। यह कड़वा सच्च है।
अपने पूर्वजों को याद करना उनकी याद में कुछ लिखना गलत नहीं है और बुरा भी नहीं है, लेकिन कुछ लोगों के मन में बहुत बस गए हैं गांधी नेहरू और इंदिरा। इन तीनों पर सुबह से शाम तक लिखा जाता रहा है। ये हमारे पितृ नहीं है। कुछ लोगों के हो सकते हैं।
राजनीति में यदा-कदा गांधी नेहरू पर
लिखा जा सकता है लेकिन हर समय हर दिन लिखने का क्या मतलब है?
इन्हें याद करना। इन पर लिखकर हर समय सोशल मीडिया पर डालना अच्छा नहीं कहा जा सकता।
इन पर लिखने से परिवार का कोई विकास होता हो या पहले हो चुका हो तो आगे लिखें लेकिन ऐसा कुछ भी कहीं भी नहीं हुआ।
अपना समय निकालकर पहले लिखना फिर ग्रुप में भेजना समय की बर्बादी के सिवाय कुछ नहीं है।
* लोकतंत्र सेनानियों के लिए बनाये गए ग्रुपों में गांधी नेहरू इंदिरा को पढाने दिखाने से कोई लाभ नहीं। सेनानी थक गए।
* यदि किन्हीं को गांधी नेहरू इंदिरा के बारे में कुछ लिखे बिना रोटी हजम नहीं होती हो रात को नींद न आती हो तो सोशल मीडिया के अन्य ग्रुपों में लगा कर अपने स्वास्थ्य को सुधारते रहें। जिन राजनेताओं के लिए ऐसा करते हैं उन्होंने तो लोकतंत्र सेनानियों के एक पत्र का उत्तर तक नहीं दिया है।
👍 इससे तो अच्छा है कि आपातकाल1975-77 के लोकतंत्र सेनानियों पर लिखें। उनके लिए सरकार को पत्र लिखें। इनके लिए जनप्रतिनिधियों से मिलें और आवाज उठाने का कहें। खुद आवाज उठाएं। ये कार्य निश्चित रूप से अच्छे कहे जा सकते हैं। गांधी नेहरू इंदिरा पर लिखने से कटाक्ष करने से बुरा बताने से लोकतंत्र सेनानियों को न सम्मान मिलेगा न सम्मान सुविधाएं मिल सकती है।
* इतना समय लगाना ही है तो लोकतंत्र सेनानियों को सम्मान सुविधाएं मिले उसके लिए पत्र लिखें और भारत सरकार को भेजें। भेजते रहें।०0०
17 दिसंबर 2022.
करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार (आपातकाल में जेलबंदी) सूरतगढ़ (राजस्थान)
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