शहीद उधमसिंह जयंती पर समारोह होगा. 26 दिसंबर: जलियांवाला हत्याकांड का बदला लिया. डायर को मारा.
* करणीदानसिंह राजपूत *
शिरोमणि शहीद उधम सिंह मंच सूरतगढ़ द्वारा दिनांक 26 दिसंबर 2022 को 11 बजे शहीद उधम सिंह का जन्म दिवस हर्ष उल्लास से मनाया जाएगा।
मंच अध्यक्ष गुरचरण सिंह ने बताया कि क्षेत्र के समस्त जनप्रतिनिधियों व आम नागरिकों को इस कार्यक्रम में अधिक से अधिक संख्या में भाग लेने का आव्हान मंच द्वारा किया गया है।
* शहीद उधम सिंह चौक उपकारागृह के सामने सूरतगढ़ पर पहुंचकर शहीद उधम सिंह को पुष्पांजलि अर्पित करें।
उधम सिंह: भारत का वो 'शेर', जिसकी 6 गोलियों ने लिया जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला
1919 में रॉलेट एक्ट के तहत कांग्रेस के सत्य पाल और सैफुद्दीन किचलू को अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार करने के बाद पंजाब के अमृतसर में हजारों की तादाद में लोग जलियांवाला बाग में जमा हुए थे। उन लोगों का उद्देश्य रॉलेट एक्ट का
शांति से विरोध प्रदर्शन करना था।
अंग्रेजों के जनरल रेजिनाल्ड डायर ने अपनी फौज के साथ उन लोगों को गोलियों मार गिराया। उसका साथ उस समय पंजाब के गवर्नर रहे मिचेल ओ डायर ने दिया था। उस नरसंहार को जलियांवाला बाग हत्याकांड का नाम दिया गया। उधम सिंह 1919 में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार के साक्षी थे। इस नरसंहार को देखने के बाद उधम सिंह ने स्वतंत्रता की लड़ाई में कूदने और रेजिनाल्ड डायर और मिचेल ओ डायर से बदला लेने की प्रतिज्ञा की।
कौन थे उधम सिंह?
सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। उनके पिता सरदार तेहाल सिंह जम्मू उपल्ली गांव में रेलवे चौकीदार थे। उधम सिंह का असली नाम शेर सिंह था। उनका एक भाई भी था, जिसका नाम मुख्ता सिंह था। सात साल की उम्र में उधम अनाथ हो गए थे। पहले उनकी मां चल बसीं और फिर उसके 6 साल बाद पिता ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। मां-बाप के मरने के बाद उधम और उनके भाई को अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में भेज दिया गया था।
अनाथालय में लोगों ने दोनों भाइयों को नया नाम दिया। शेर सिंह बन गए उधम सिंह और मुख्ता सिंह बन गए साधु सिंह। सरदार उधम सिंह ने भारतीय समाज की एकता के लिए अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था, जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है। साल 1917 में उधम के भाई साधु की भी मौत हो गई। 1918 में उधम ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। साल 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया। उधम सिंह, शहीद भगत सिंह को अपना गुरु मानते थे।
अनाथालय से निकलने के बाद उसी साल जालियांवाला बाग का नरसंहार देखा। डायर के इस करतूत पर बौखलाए उधम सिंह पर अब खून के बदले खून सवार हो चुका था और वह आक्रोश में धधक रहे थे। कहते हैं कि उधम सिंह ने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर जनरल डायर और तत्कालीन पंजाब के गर्वनर माइकल ओ ड्वायर को सबक सिखाने की शपथ ली कि जब तक इस नरसंहार के असली गुनहगार को मौत की नींद नहीं सुला दूंगा, तब तक चैन से नहीं बैठूंगा। डायर को मौत की नींद सुलाना उनका मुख्य लक्ष्य बन गया।
देश के इस नरसंहार का बदला लेने के लिए क्रांतिकारी उधमसिंह ने विदेश की तरफ रुख किया। साल 1920 में वे अफ्रीका पहुंचे। वर्ष 1921 में नैरोबी के रास्ते संयुक्त राज्य अमेरिका जाने की कोशिश की लेकिन वीजा न मिलने के कारण ऐसा हो नहीं पाया और उन्हें स्वदेश लौटना पड़ा। उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार कोशिश करते रहे और आखिरकार 1924 में वे अमेरिका पहुंचने में कामयाब हो गए। वह यहां पहुंचकर अमेरिका में सक्रिय गदर पार्टी में शामिल हो गए और फिर क्रांतिकारियों से मजबूत सम्पर्क मजबूत बनाते चले गए। उन्होंने फ्रांस, इटली, जर्मनी, रूस आदि कई देशों की यात्राएं करके क्रांतिकारियों को जोड़ा। साल 1927 में वह वापस भारत लौटे। भारत लौटकर उन्होंने भगत सिंह से मुलाकात की और इसके कुछ महीने बाद ही वे ़अवैध हथियारों और प्रतिबन्धित क्रांतिकारी साहित्य के साथ पुलिस के हत्थे चढ़ गए। उन्ह 5 साल की सजा हो गई।
इसी दौरान 1927 में जेनरल डायर की मौत ब्रेन हेमरेज से हो गई और अब उधम सिंह की निगाह माइकल फ्रेंसिस ओ ड्वायर पर थी। साल 1931 में उधम सिंह जेल से रिहा हुए। पुलिस की कड़ी निगाहें उनपर थीं और उन्हें हर दिन हाजिरी देने के नाम पर काफी प्रताड़ित भी किया जाता था।
सजा पूरी होने के बाद वे अमृतसर पहुंच गए और अपना नाम बदलकर मोहमद सिंह आजाद रख लिया। साल 1933 में पुलिस को झांसा देकर वह कश्मीर पहुंच गए और 1934 में वे इंग्लैंड पहुंचने में कामयाब हो गए।
इंग्लैंड में उधम सिंह ने किराए पर एक घर लिया और जनरल डायर को मारने की तैयारियां करने लगे।
उधम सिंह के लंदन पहुंचने से पहले जनरल रेजिनाल्ड डायर की ब्रेन हैमरेज के कारण मौत हो गई। ऐसे में उधम सिंह ने जान को मारने पर लगाया और उसे पूरा भी किया।
* 13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हॉल में बैठक थी। वहां मिचेल ओ डायर भी भाषण कर्ताओं में से एक था। उधम सिंह वहां समय पर पहुंच गए।
उधम ने अपनी पिस्तौल को एक मोटी किताब में छुपाया हुआ था। पुस्तक के पन्ने काट कर उसमें पिस्तौल रखा था। मौका लगने पर उन्होंने निशाना लगाया। मिचेल ओ डायर को 6 गोलियां लगी जिससे उसकी तुरंत मौत हो गई।
उधम सिंह वहीं पकड़े गए। इसके बाद उनके ऊपर मुकदमा चला और कोर्ट में उनकी पेशी भी हुई।
4 जून 1940 को उधम सिंह को मिचेल ओ डायर की हत्या का दोषी ठहराया गया। 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। इस तरह उधम सिंह भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में अमर हो गए. 1974 में ब्रिटेन ने उनके अवशेष भारत को सौंप दिए। अंग्रेजों को उनके घर में घुसकर मारने का जो काम सरदार उधम सिंह ने किया था, उसकी हर जगह प्रशंसा हुई। वे अमर हो गए।०0०