गुरुवार, 19 अक्तूबर 2023

डूंगरराम गेदर का अभिनंदन बनेगा शक्ति प्रदर्शन! कांग्रेस की टिकट पर छप जाएगा नाम!

 


* यह चुनौती भरा लेख 6 मार्च 2022 को लिखा गया था।  आपके सामने नयी परिस्थितियों में पुन: प्रस्तुत है।)


 सन 2023 के चुनाव में जनता चाहती है बदलाव में कांग्रेसी नया चेहरा*


* सूरतगढ़ की पुरानी धानमंडी के शक्तिप्रदर्शन से बन जाती है टिकट की ताकत! ऐसी है मान्यता!*

* करणीदानसिंह राजपूत *

राजनैतिक शक्ति का शानदार प्रदर्शन स्थल पुरानी धान मंडी में 7 मार्च 2022 को अनूठा दिन होगा जब डूंगर राम गेदर का शानदार अभिनंदन होगा। यह अभिनंदन होगा और इसी अभिनंदन से डूंगर की ताकत प्रदर्शित होती जयपुर पहुंचेगी। डूंगरराम गेदर को प्रदेश में माटी एवं शिल्पकला बोर्ड के उपाध्यक्ष बनाये जाने पर यह अभिनंदन समारोह होगा।
सूरतगढ़ की पुरानी धानमंडी में धान तो  दिखाई नहीं देता मगर राजनैतिक ताकत यहीं से सामने आती है और जब सिर से सिर ही मिले दिखाई पड़ते हैं तो मनचाही टिकट पर नाम छप जाता है। पीछे झांक कर देखें तो यही इतिहास खुलता है।
डूंगर राम गेदर अब कांग्रेस की मजबूत ताकत बने हुए हैं और सूरतगढ़ का अभिनंदन जयपुर तक ध्वज फहराएगा। ऐसी हवा सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र में चल रही है। यह अभिनंदन और यह राजनैतिक शक्ति प्रदर्शन ही 2023 के चुनाव की टिकट पक्की करेगा। याद आए तो ठीक नहीं तो हम कराते हैं 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले का एक शक्ति प्रदर्शन। भाजपा के रामप्रताप कासनिया का शक्ति प्रदर्शन हुआ और भाजपा की टिकट उसी दिन पक्की हो गई। कासनिया के शक्ति प्रदर्शन की हवा और चर्चा जयपुर पहुंची जिसकी काट नहीं हो सकी। रामप्रताप कासनिया को टिकट और फिर जनता का साथ मिला जिससे वे विधायक चुने गए। तब से यह पक्की बात लोगों के दिमाग में घुस गई कि सूरतगढ़ की पुरानी धानमंडी का अभिनंदन शक्ति प्रदर्शन टिकट की लहर चलाता है।
डूंगर गेदर का अभिनंदन जिस तरह से होने वाला है वह शक्ति प्रदर्शन ही होगा। सूरतगढ़ का हर गांव यहां अपनी पहुंच दिखाएगा।ऐसी चर्चा चल रही है। क्या होने वाला शक्ति प्रदर्शन डूंगर की चुनावी टिकट पक्की करेगा? पुरानी धान मंडी का इतिहास तो यही कहता है कि डूंगर राम गेदर की टिकट पक्की होगी और कोई रुकावट नहीं आएगी। कोई रुकावट डालेगा तो वह विरोध छलनी छलनी होकर बिखर जाएगा।
कांग्रेस की टिकट पर मील परिवार के अलावा कोई हो नहीं सकता। यह लोगों को कहते सुनते रहते हैं। लोगों को यही लगता है कि उनके पास पैसे की ताकत है। यह सच्च भी है। हम उसी मील और उनके पिछले राजनैतिक इतिहास पर नजर डाल लेते हैं।
सन 2003 का चुनाव। विधानसभा की पीलीबंगा सीट । उस समय सूरतगढ़ तहसील का लगभग पौना हिस्सा पीलीबंगा विधानसभा में होता था। विशेष कर टिब्बा क्षेत्र। भाजपा के नेता रामप्रताप कासनिया ही टिकट के हकदार थे मगर भाजपा की टिकट गंगाजल मील ले आए। कैसे ले आए किस पावर से ले आए? भाजपा के शक्तिशाली नेता प्रमोद महाजन ने मील के पक्ष में पीलीबंगा में चुनावी सभा भी की। रामप्रताप कासनिया ने अपना हक मरते देखा तो चुनौती देकर सामने आ खडे़ हुए। निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में। भाजपा की टिकट थी हाईकमान के दिग्गजों का साथ था लेकिन जीत साथ में नहीं थी। गंगाजल मील की पहली हार हुई। अनेक लोग जो मील साहब को नेता मानते हैं उनको इस हार का मालुम ही नहीं होगा।
सन 2008 में परिसीमन हुआ और पीलीबंगा अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। सूरतगढ़ सामान्य सीट बनी और छोटी हो गई। पहले अन्तर्राष्ट्रीय सीमा को छूती थी। सूरतगढ़ तहसील का जो हिस्सा पीलीबंगा विधानसभा में था वह सूरतगढ़ विधानसभा में शामिल हो गया।
पीलीबंगा के चुनावी योद्धा सूरतगढ़ सीट पर युद्ध करने आ गए।
पीलीबंगा में हारे हुए गंगाजल मील ने 2008 के चुनाव से पहले भाजपा की वसुंधरा राजे को निशाना बनाते हुए भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए भाजपा छोड़दी। यह घोषणा पत्रकारों के सामने हुई।  मील को पराजय के बाद भाजपा की मिश्री कड़वी लगी और भाजपा में भ्रष्टाचार भी दिखाई देने लगा।
सन 2008 में गंगाजल मील साहब ने कांग्रेस का दामन थामा और  कांग्रेस की टिकट भी मिल गई। रामप्रताप कासनिया को भाजपा की टिकट मिली। राजेंद्र भादू निर्दलीय लड़े।
2008 का चुनाव गंगाजल मील साहब ने सभी शक्तियां लगा कर जीता। कासनिया और भादू पराजित हुए। भादू ने इस चुनाव में अपनी राजनैतिक ताकत दिखाई। भादु ने भाजपा में प्रवेश कर लिया।
गंगाजल मील 2008 से 2013 तक विधायक रहे। यह उनकी जीत का स्वर्णिम काल था। इलाके के और सूरतगढ़ शहर के विकास में चार चांद लगा सकते थे। लेकिन इसके लिए जनता का बनना होता है। चुनाव जीत कर भी जनता की आवाज नहीं बन सके। सन 2013 में गंगाजल मील कांग्रेस की टिकट ले आए और जनता ने पासा पलट दिया। मील साहब हार गए और भाजपा के राजेन्द्र सिंह भादु बहुत अच्छे वोटों से जीत गए। मील साहब और टीम ने 2013 से 2018 तक जनता को जोड़ने जैसा काम नहीं किया। कुछ लोग ही घेरा बनाए रहे जो 2008 से ही जुडे़ हुए थे।
सन 2018 में मील ने टिकट मांगी और दो बार पीलीबंगा से विधायक रहे सरदार हरचंद सिंह सिद्धु ने भी टिकट मांगी। सिद्धु की ओर से कुछ महत्वपूर्ण नेताओं की ताकत भी थी। दोनों की मांग दिल्ली में स्वीकार नहीं हो पाई। राहुल नीति के कारण टिकट मील परिवार के हनुमान मील को मिला। 2008 से 2018 तक की मील की कार्य प्रणाली का वजन हनुमान मील पर पड़ा। जो लोग 2008 से 2013 तक गंगाजल मील साहब की विधायकी का लाभ लेते रहे। घेरा बनाए रहे आम जनता की सुनने नहीं दिया। वे हनुमान मील के चुनाव में साथ नहीं रहे तमाशा देख रहे थे। यह हार हुई। उसके बाद गहनता से इसकी समीक्षा होनी चाहिए थी। जो नजदीकी तमाशा देखने में थे उनके नाम और चुनाव की भूमिका अपने घरेलु रजिस्टर में उतारते। ऐसा नहीं हुआ। 2018 के चुनाव में सीख मिली। कांग्रेस में रहते 2013 से 2023 तक 10 साल की सत्ता से दूरी बन गई। मील परिवार को 2003,2008,2013 और 2018 कुल चार मौके इस इलाके में मिल गए।
2018 की पराजय के बाद तीन साल बीत गए और 2022  शुरू हो गया। इन तीन सालों में मील साहब और हनुमान मील ने प्रदेश में कांग्रेस राज होते हुए क्या किया है? लोग स्थानांतरणों से दुखी होते रहे और कटते रहे दूर होते रहे।
अभी कांग्रेस राज है और हनुमान मील प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य होते हुए बहुत कुछ करवा सकते हैं। 
वैसे मील परिवार को कांग्रेस में तीन मौके मिल गए। एक में जीत दो में हार।  सूरतगढ़ विधानसभा में महत्वपूर्ण हिस्सा आता है नगरपालिका। सन  2019 से कांग्रेस का बोर्ड है। पालिका अध्यक्ष गंगाजल मील और हनुमान मील के हर समय साथ और दोनों के कहने में है लेकिन शहर में विकास के नाम पर जनता खुश नहीं। हनुमान मील टिकट मांगेगे तो पालिका के काम कितना लाभ दे पाएंगे।
* सबसे एक बड़ा पोइंट भी आएगा। अभी 2022 में पंचायत समिति सूरतगढ़ के प्रधान पद पर गंगाजल जी के भाई हजारी मील निर्वाचित हुए। यह आवाज जरूर उठेगी कि क्या मील परिवार को ही सब दिया जाता रहे। यह कारण टिकट वितरण में महत्वपूर्ण रहेगा। कांग्रेस में तीन बार विधानसभा की टिकट और मौके तथा प्रधानगी कुल मिला कर मील परिवार के अलावा नये कांग्रेसी चेहरे के दावे को मजबूत करने वाले होंगे। कांग्रेस यह सूरतगढ़  सीट भाजपा से छीन लेने की कोशिश करेगी और इसके लिए नये चेहरे को टिकट देने के कारण मजबूत होंगे। मील अपना दावा आसानी से तो छोड़ेंगे नहीं। एकदम शक्ति शून्य हो गए हों वाली बात भी नहीं है। राजनैतिक ताकत कभी भी शून्य नहीं होती। उसका तरीका जनहित में या जनता के साथ फिर से जुड़ जाने में बदलना होता है और वह झुक कर विनम्र होकर किया जाता है। यह तरीका मील परिवार कितना कर पाए हैं वे जानते हैं या फिर जनता जानती होगी। मील खुद तो समीक्षा कर ही सकते हैं। जनता कभी सामने बोलती नहीं।
* काम के बारे में एक उदाहरण नहीं सैकड़ों उदाहरण होंगे। आगे और रिपोर्ट अखबारों में आती रहेंगी और टिकट बंटने के समय चर्चा होती रहेगी। 
अभी डूंगरराम गेदर के अभिनन्दन और शक्ति प्रदर्शन पर पक्ष विपक्ष का हिस्सा ना बनते हुए जो स्थिति सामने हैं उसको नजरों से दूर नहीं किया जा सकता।
*फिलहाल कांग्रेस के पास नये चेहरे के रूप में डूंगरराम गेदर के अलावा कोई है नहीं। कोई और पनप जाए ऐसा भी लगता नहीं है।०0०
दि. 6 मार्च 2022.
अपडेट 19 अक्टूबर 2023.
करणीदानसिंह राजपूत,
पत्रकार ( राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत)
सूरतगढ़ ( राजस्थान )
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.सूरतगढ़ सीट:चुनाव 2023.समाचार विचार रिपोर्ट:जानकारियां. पढते रहें।
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