मनोजकुमार
स्वामी री कहाणियां री पोथी “किंयां “ पढ़ती बेळा पाठका नै केई टाळवां,
तीखा, अर अमूजो उपजावै जिसा सवालां सूं भचभेड़ा करणा पड़ै। इण रै लारै देस
-विदेस रै रचनाकारां री रचनात्मता खेचळ री, वां री दीठ अर संवेदण री लांबी
जातरावां रा भांत भांत रा पड़ाव है। आज सूं 137 बरस पैलीनार्वे रा रचनाकार हेमरिक इब्रानआपरै काळजीतणै नाटक ‘ए डॉल्स हाऊस ‘ में
आ थरपणा करी कै, “लुगाई आपरै विचारां री धिराणी है, वा आपरा फैसला खुद ई
लेवै अर मोकळा अळूझाडां अर अबखायां रै बिचाळै नींं तो किणी रो धणियाप मानै
अर नीं खुद री सुंततरता रै सागै समझौतो ई करै।” नारी सुतंतरता री बात
पैलीपोत उण नाटक में साम्ही आई ही। दूजै कांनी लुगायां रै मनोविग्यान री
पारखी ‘सीमोन द बउआ अर वर्जीनिया वूल्फ‘ रो मानणो है कै, “लुगाई
आपरै चौफेर(परिवेश) री उपज हुया करें ओ उणनें जियां ढाळणो चावै, वा ढळती
जावै। उणरो कोई अलायदो चेतन आपो नीं हुवै। वा हाड-मांस री जीवंती-जागती
काया नीं हुयर कोरी अेक जिनस हुवै। समाज रै छळछंदा में दळीजती रैवै,
तड़बड़जती रैवै पण चुंकारो ई नी करै।” तीजै कानी आज री कहाणियां रै गुंथाव
में आज रै जीवण रा चितराम है। कृष्णा सोबती रो मानणो है कै, “कहाणी रो रचाव
नी तो कोई धरम-चरचा है अर नीं सत्संग, अर नीं कोई जमो-जागण ई है। कहाणी मे
तो आज रा जीवण झळकणो चाईजै।
अै सील अर अस्लील
री थोथी बांता अबै काम नीं आवै। कहाणी में जो आज रै समाज रो पड़बिंब नीं
हुवै तो वा साव बेकार है। अै मान-मरमजात रा चोचला अबै नीं चालै।”
अेक और दीठ प्रेमचंद जिसै लेखकां री है। जिका मिनख रै मनोग्यिान नैं साम्ही लावै। जियांं , पंचपरमेश्वर, नशा अर कफन में
है। च्यारूंमेर फैलियोड़ै भिस्टाचार माथै चोट करै, जियां नमक का दरागो में
है। अै कहाणियां चावै नैतिकता री भावभोम री भलांई हुवो पण कहाणी री लगैटगै
सौ बरसां री जातरा माथै आं कहाणियां आपरी छाप तो छोड़ी‘ज है। अबै देखणो है
कै, मनोज स्वामी री कहाणियां में आं च्यारूं विचारां सूं कठै तांई समानता
है। अर कठैतांई इण संग्रै री कहाणियां आपरै तेवर अर तासीर में, सोच अर
संवेदण में साव अलायदै धरातल माथै रचीजी है।
इब्सन
री मान्यता कै, लुगाई आपरै जीवण रा फैसला लैवणै में सुतंतर है, किणी री
दबेल कोनी आ बात इण संग्रै री लगैटगै च्यार कहाणियां मांय साम्ही आवै। ‘च्यार टाबरां री मां‘
इमरती न्याव रै खातर बीसूं अबखायां रै बिचाळै जोरावर चौधरीयां सूं,
पुलिस-सत्ता सूं, धन अर धरम री धमाचौकड़ी सूं अर कूड़ी समाजू संस्थावां सूं
अेकली मोर्चो मांडै। इणी भांत नारी सुतंतरता रा भाव ‘सात लाख रो पाणी‘ कहाणी में आधुनिक जीवण सैली ढळियोड़ी सतै री बीनणी, “कैदी”
कहाणी री जोरावर जेलर(घर धिराणी) अर अेक सींव तांई ‘गुमड़ियो कहाणी मांय
धणी री पीड़ सारू लूपरियो करणै री ठौड़ देवी देवतावां नै धोकण वाळी लुगाई
माथै ई लागू हुवै।
दूजै कांनी ‘अट्टो-सट्टो‘ कहाणी में अधखड़ का पछै पांगळै बीन सूं परणीजण वाळी काची उमर री बेबस छोरियां माथै लागू हुवै। फेरूं चावै ‘सुवाल‘
कहाणी री किरण हुवो चायै ‘किंया‘ कहाणी री वै लुगायां हुवो जिकी मिनख रै
सुवाद नें पळटण सारू आप-आप रै डील रो सौदो करणै में अर भोग री जिनस बणनै
में भागीदार बणै। इणी कठपूतळीपण री निसाणी है। चार्वाक जीवण सैली री कहाणी
‘किंया‘ धरम-करम, मान मरजादा अर नैतिकता रै पचड़ै में पड़‘र आज रै जीवण रो
अेक सखरो दरसाव देवै। आधुनिक लेखकां री कहाणियां (कृष्णा सोबती, मैत्रेयी पुष्पा आद) में अैड़ा दरसाव दड़ाछंट आवता रैवै। प्रेमचंद जिण भिस्टवाड़ै अर सूगलवाड़ै रो बखाण कियो हो, उण री कीं न कीं झलक ‘आली चामड़ी‘, ‘झाड़ागर‘ अर ‘च्यार टाबरां री मा‘
कहाणियां में मिलै। सिद्धांत रूप में च्यार तरै री प्रवृतियां मनोज स्वामी
री कहाणियां में कठैई भलांई झलको पण तेवर अर तासीर में, संवेदना री संरचना
में, मिनख रै मांयलै अमूजै नै दरसावण में कथ्य रै मोड़ अर मिजाज में,
रिस्तां रै समीकरण मै, भासा रै रळकवैं प्रयोग में अर कहाणी रचणै रै सिल्प
अर ढंग-ढाळै में मनोज स्वामी माथै किणी दूजै रचनाकार रो कोई पड़बिंब कोनी।
मनोज स्वामी माथै जे किणी री छाप है तो वा मनोज स्वामी री‘ज है। वां री
कहाणियां रो रचाव निरवाळो है, टकसाळी है अर पाठकां सारू अनुभव रै नुंवा
खितिजां नै खोलण वाळो है।
म्हनै अै कहाणियां क्यूं दाय आई, उणरै लारै अेक नंही कम सूं कम दस कारण है।
पैलो औ कै, हरेक कहाणी में खुद रो निजू कहाणीकार अर कथारस है। घटनां मांय
सूं कहाणी निकाळण सारू अेक खास कौसल चाईजै। वो कौसल इण संग्रै री पंदरै री
पंदरै कहाणियां में है। दूजो कै, सगळी कहाणियां आज रै जुगबोध सूं,
आज रै जीवण सूं जुडि़योड़ी है। यूटोपियन रचना किणी में नीं है। नीजीकरण
घणों महताऊ है। रूसी कथाकार चेखव नै कहाणी नै आपरै ढाळै ढाळण सारू संजोग रो
सायरो लेवण में कीं आंट अर अड़चल नीं ही, जदकै मोमांस कहाणी रै निस्कर्स
संजोग रै सायरै नै आछौ नीं मानता। तीजो कै, मनोज स्वामी री कहाणियां
में जे कठैई संजोग है तो कहाणी नें मनमरजी रो मोड़ देवण सारू नीं है।
संजोग हुवो चावो नीं हुवो, वां री कहाणियां में सुवभाविक विगसाव में आ बात
आडी नीं आवै। ‘हारग्यो‘ कहाणी रै नायक भागू रै जीवण में संजोग री केई
थितियां आवै पण वै उणरै हुंस अर हौसलै नैं कमती नीं कर सकै।
मनोज स्वामी माथै नीं तो चेखव अर नीं मोपासां रो अेक तरफो असर है।चौथी बात भांत-भांत
री सैलियां नै आछी तरै परोटण री है। संवाद सैली तो लगैटगै सगळी कहाणियां
में है। छोटा-छोटा वाक्य, ओपता संवाद, सवाल अर पड़ूतर अर निरवाळी कसावट
कहाणी नै थुलथुलैपण सूं बचावै। संवाद सैली रै अलावा कठैई बिम्बात्मक है तो
कठई प्रतीकात्मक सैली, कठैई फ्लैस बैक है तो कठैई फंतासी सैली, कठैई
विवरणात्मक है तो कठैई रेखाचित्रात्मक सैली। कहाणियां में प्रयोग तो है पण
लेखक वां नै निरी प्रयोगसाला बणाणै सूं बचावण में सफल रैयो है।
पांचवीं विसेसता
कहाणियां री भासा नै लेय‘र है। म्हनै अैड़ी रूड़ी, रळकवीं, असरदार अर
सुभाविक भासा साचाणी विस्मय जनक लागै। आंचलिक सबदां अर मुहावरां सूं
सजियोड़ी इण भासा में नीं तो कठैई सबद छळ है, नीं आडंबर है। अर नीं पंडिताई
दरसावण रा भाव ई है। नमूनें सारू अै ओळ्या पढ़णै जोग है- “छोरी सट्टै छोरी
रो सौदो तै हुग्यो जाणै, उरणती देयर पाडियो लियो हुवै, वो ई जुंवा रो
खायेड़ो। इण सौदै में अेक जुवान मोट्यार छोरी अर दूजी बाण औस्था री छोरी
सरैआम इण समाज री मानखी भूख री भेंट चढ़सी। अेक सारू अधखड़ बित्योड़ो अर
दूजी सारू पांगळो, जिण रै ढंुगा हेठीटांग कोनी, पण दोनुवां नै भोगण सारू
खेलणियो चाईजै।” ०००(2)००० “अरे बड्डा के चाम सट्टै चाम ल्यार चौड़ा हुवै,
सीधे परणार ल्यांवता दिखाण।” कोई गळी में ओ केयर पार बोल्यो।‘ (अट्टो-सट्टो
पेज 11,12,13)
छठै कांनी कहाणियां में
कीं अैड़ी ओळयां है जिकी जीवण दरसण रै उद्धरणां रो रूप लेय सकै। अै उद्धरण
पाठे-मन में रड़कता रैवै, वो भूलणो चावै तो ई नीं भूल सकै। जियां “अेक
गुमडि़यो म्हारै काळजै मायं ई फूटग्यो, उण री रस्सी आंख्यां मांयकर निसरै
ही।” ( गुमडि़यो पेज 22)
(2)“देख हर
साथी साथ निभावै आ जरूरी कोनी, हर वादो पूरो हू ज्यावै आ जरूरी कोनी, केई
लासां नागी भी रैहज्यावै भायला, हर लास नै खाफण मिल ज्यावै आ भी जरूरी
कोनी।”( भायला पेज 27)
(3) “अरे! यार नां तो
फीको हूं। अर ना तातो। आपां सगळा कैदी ई तो हां उमर रै इण पड़ाव पर सजा
काटणी पड़ै। हूं तेरी नीं मेरी बात करै हो।”(कैदी पेज 31)
(4)
“करां के, बठैई थै थारै खानी सूं दरखास्त देयर बणवाओ नीसं तो थारै ई रमाण
बधजैगी। भाईड़ा साच्याणी अणहोई भींत सूं काठी हुवै।” ( भींत सूं काठी पेज
30)
सातवो कारण कहाणी रै अंत नै लेयर
है। पाठक कहाणी पढ़तो जावै पण कहाणी रो अंत किंयां हुवैला, इण रो अंदाज वो
पेला सूं नीं लगाय सकै। अै कहाणियां सीधी सपाट अर सरल रेखा में चालण वाळी
नीं होय‘र घुमावदार है। अचाणक कोई कौध्ंा, कोई बदळाव इसो हुवै कै, कहाणी
नुंवो मोड़ लेय लेवै। ‘सात लाख रो पाणी, ‘हुवो चावै ‘वोट फोरणा है, ‘ ‘हारग्यो‘ हुवो चावै, ‘ आली चामड़ी, ‘बेटो बऊ‘ हुओ चावै ‘झाड़ागर‘ अै सगळी कहाणियां केई अैड़ा घुमाव लेवै जिकां रै बारक् में पाठक पैला सूं नीं सोच सके।
आठवीं बात कथानक
री है। सबळा कथानक अेक-दुजै सूं न्यारा है। कथानकां में नी ंतो दुसराव है
अर नीं घिसी-पीटी बातां री कोई पड़त है। हरेक कथानक आप-आपरा नुंवा खितिज
खोलै, पाठकांरी जिग्यासा बधावै अर जीवण रै सागै जुगलबंदी करतो रैवै। नींतो
कठैई कोई अल्लम गल्लम है, नींतो कोई बिखराव अर नीं कोई गैर जरूरी विस्तार।
नंवै कांनी दुंद
अर तणाव रा केई अैड़ा दरसाव है जिका कहाणियां नै अेक न्यारो-निरवाळो रूप
देवै। अै दरसाव ‘कैदी‘, ‘भींत सूं काठी‘, ‘सुवाल‘ अर ‘आली चामड़ी‘ कहाणियां
में है। ‘कैदी‘ कहाणी में कैदी री जूण भूगतण वाळै आज रै मिनखरी पीड़ा है।
‘भींत सूं काठी‘, कहाणी में वारस प्रमाण पत्र बणावण सारू जागा-जागा फोड़
भुगतण रा, दफ्तरी कानूनां रै आळ जंजाळ रा, वकीलां रै दावपेच में पजण अर
रिस्वत री राफड़ लीला सूं जुडि़योड़ा केई तणाव है। आ ई बातं ‘सुवाल‘ अर
‘आली चामड़ी‘ कहाणियां में है। ‘सुवाल‘ री किरण अर ‘आली चामड़ी‘ रो भैरो
मेघवाळ जिकै तणावां मांय सूं निसरै वै संवेदनसील पाठकां नै मांय झकझोरदै।
अर छेकड़लो दसवों बिन्दूं संरचना
सूं बेसी कहाणियां में विनसमत संवेदण रा है। कहाणीकार तटस्थ दरसक हुवण री
जागा वां सगळा निरबळ, दुखी अर तळतळीजता पात्रां सारू साची हमदरदी अर कंवळो
काळजो राखै जिका आं कहाणियां में पीड़ा भोगण सारू लाचार है।
टूकै
में कैयो जाय सकै है कै, अै कहाणियां साहित्य री दूजी विधावां री भेळप रै
कारण बेसी अरथवान बण सकी है। इयां में कठैई कविता वाळो लालित्य तो कठैई
बातपोसी वाळी रंजकता, कठैई संस्मरणां रो आस्वाद है तो कठैई सबद चितरामां रा
सांगोपा्रग चित्रण, कठैई निबंधा वाळी कसाावट है तो कठैई विरतांतां वाळी
रोचकता।
म्हे इण पोथी “किंयां.......!!!“ रो सुवागत करूं अर कामना करूं कै, मनोज स्वामी लगोलग इसो करता र।वै जिको कथात्मकता अर कलात्मकता रै स्तर माथै खरो उतरै।