सूरतगढ में आपातकाल काला दिवस मनाया गया

सूरतगढ़ 26 जून।
आपातकाल 1975 के काला अध्याय को लागू की गई तारीख 26 जून को यहां काले दिवस के रूप में मनाया गया। लोकतंत्र रक्षा सेनानी संघ राजस्थान के संयोजक करणीदानसिंह राजपूत के आह्वान पर शहीद गुरूशरण छाबड़ा के स्मारक पर आपातकाल में जेलों में बंद रहे सेनानी व लोकतंत्र समर्थक एकत्रित हुए।आपातकाल काल का विरोध गुरूशरण छाबड़ा के नेतृत्व में हुआ था इसलिए उनक
ो याद किया गया।छाबड़ा की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया।
करणीदानसिंह राजपूत ने छाबड़ा का और आपातकाल का बयौरा दिया। खुद करणीदानसिंह राजपूत जेल में डाल दिए गए थे।उनके अखबार को सेंसर किया और बाद में बंद करवा दिया गया।
इस अवसर पर लोकतंत्र सेनानी महावीर तिवाड़ी,डा.टी.एल.अरोड़ा,मुरलीधर उपाध्याय ने उस काल के अत्याचारों को बताया।
कार्यक्रम में जेलों में बंद रहे सुगनपुरी,हनुमानमोट्यार,गुरनामसिंह,
सहयोगी रहे श्याम मोदी,एडवोकेट एन.डी.सेतिया ने भाग लिया।
पूर्व राज्य मंत्री रामप्रताप कासनिया, पूर्व विधायक अशोक नागपाल,नागरिक समिति के सचिव राजेंद्र मुद्गल,सीटू नेता मदन ओझा, नारी उत्धान केंद्र की अध्यक्ष श्रीमती राजेश सिडाना,भाजपा नगर मंडल के अध्यक्ष महेश सेखसरिया,भाजपा महिला मोर्चा की पूर्व जिलाध्यक्ष रजनी मोदी,मुरलीधर पारीक, बाबूसिंह खीची,महावीर चीनिया, नगरपालिका उपाध्यक्ष पवन ओझा, घनश्याम शर्मा,राजस्थानी साहित्यकार मनोजकुमार स्वामी,गोविंद भार्गव आदि ने भी कार्यक्रम में भाग लिया। इस अवसर पर देश में लोकतंत्र को कायम रखने का संकल्प लिया गया।
इसके बाद अतिरिक्त जिला कलेक्टर के माध्यम से प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन दिये गए।
ज्ञापन में लिखा गया है कि आपातकाल 1975 को देश की स्वतंत्रता में काला अध्याय माना गया है जिसके
बारे में आपको सर्वविदित है कि किस प्रकार से नेताओं व कार्यकर्ताओं को
जेलों में बंद किया गया व किस प्रकार से कष्ट उठाते हुए कार्यकर्ताओं ने
सबकुछ न्यौछावर करते हुए जान की परवाह नहीं करते हुए विरोध करके खत्म भी करवाया।
आपातकाल के विरोध में भारतीय
दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं 107/151/116-3 व मीसा रासुका की विभिन्न धाराओं में जेलों में ठूंसा गया। यहां तक की नाबालिगों को भी जेलों में
ठूंस दिया गया था। सालों के बाद जब राष्ट्रवादियों की सरकारें प्रदेशों में आई तब आपातकाल के बंदियों को कुछ राज्यों में पेंशन सुविधा प्रदान की गई लेकिन समस्त प्रकार के राजनैतिक बंदियों को पेंशन नहीं दी गई। केवल मीसा रासुका बंदियों को कुछ राज्यों में ही सुविधा पेंशन दी जाने लगी और आंदोलन करने वाले सैंकड़ों राजनैतिक कार्यकर्ता वंचित रह गए। जहां पर राष्ट्रवादियों की सरकारें नहीं हैं उन राज्यों में कुछ भी नहीं मिल रहा है। जहां पर कांग्रेस की सरकारें हैं वहां पर भी कुछ नहीं मिल रहा।ऐसी स्थिति में आपसे ही आग्रह है कि -
1.समस्त भारत में एक रूपता से सभी प्रकार के आपातकाल के राजनैतिक बंदियों
को चाहे वे किसी भी कानून की किसी भी धारा में हो उन्हें स्वतंत्रता
सेनानियों के समकक्ष मानते हुए पेंशन व अन्य सुविधाएं प्रदान की जाए।
2. जिन राजनैतिक बंदियों का जेल का व अन्य रिकार्ड गुम हो गया व जेलों
में व सरकारी कार्यालयों में खत्म हो गया है। उनके लिए जेल में बंद रहे
अन्य कार्यकर्ता का शपथ पत्र लेकर सुविधाएं प्रदान करवाई जाएं।
3. जो आपातकाल बंदी दिवंगत हो चुके हैं,उनकी वीरांगनाओं को स्वतंत्रता
सेनानी वीरांगनाओं की तरह ही पेंशन व सुविधाएं प्रदान करवाई जाएं।
4. रेल यात्रा व प्रदेशों की रोडवेज में निशुल्क यात्रा की सुविधा दी जाए
जिसमें किलो मीटर निर्धारित कर दिए जाएं। अधिकांश सेनानी 60-70 से 80-85
वर्ष से अधिक आयु के हो चुके हैं इसलिए एक सह यात्री की भी निशुल्क
यात्रा सुविधा प्रदान की जाए।
5. अनेक लोकतंत्र रक्षा सेनानियों के परिवारों के पास स्वयं का आवास नहीं
है इसलिए स्थानीय संस्थाओं नगरपालिका,नगरपरिषद व ग्राम पंचायत क्षेत्र
में निशुल्क भवन या निशुल्क भूखंड प्रदान किया जावे।
6. लोकतंत्र सेनानियों को राजकीय विश्राम गृहों /सर्किट हाऊस आदि में
राजकीय स्तर पर ठहरने की सुविधा दी जाए।
7. राष्ट्रीय दिवस समारोह स्वतंत्रता दिवस गणतंत्र दिवस समारोह व अन्य
मंत्री आदि के समारोह में जिला स्तर पर या जिस स्थान पर निवास है वहां
उपखंड/तहसील में आमंत्रित किया जाए।
8.अंतिम संस्कार में राजकीय सम्मान से समस्त प्रक्रिया हो।
9. जो आपातकाल रक्षा लोकतंत्र सेनानी पति पत्नी दोनों ही दिवंगत हो चुके
हैं उनके परिवारजनों ने आपातकाल में कष्ट तो सहन किया ही था इसलिए वारिस
परिजनों पुत्रों आदि को एकमुस्त 10 लाख रूपए तक की सम्मान निधि प्रदान की
जाए।
आपातकाल में अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करनेे की कोई कीमत नहीं
होती और न कार्यकर्ता कीमत प्राप्त करने के लिए ही आंदोलन करता है। लेकिन
कार्यकर्ताओं का सम्मान करना कार्यकर्ताओं को राष्ट्रीय विकास की धारा
में बराबर का स्थान प्राप्त हो सके इसके लिए पेंशन निधि आदि की सुविधा
प्रदान कराना राष्ट्रीय विचारधारा की सरकारों का परम कर्तव्य है। वर्तमान
में यह दायित्व निभाने का कर्तव्य आपका है।
हम आशा करते हैं कि आपके नेतृत्व में सभी को समान रूप से लोकतंत्रसेनानी
का सम्मान और स्वतंत्रता सेनानी के समकक्ष का दर्जा प्रदान किया जाए।
लोकतंत्र सेनानियों की उम्र 60 साल से लेकर 90-95 साल की हो चुकी
है,अनेक दिवंगत हो गये जिनकी पत्नियां बहुत कष्ट व परेशानियों में है,
उसको भी ध्यान में रखते हुए अपना निर्णय प्रदान करें।
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संयोजक,
करणीदानसिंह राजपूत,
आपातकाल लोकतंत्र रक्षा सेनानी संघ,
सूरतगढ़
9414381356.