दिलात्मप्रकाश जैन: समाजवादी चिंतक,सबके साथी:सादा जीवन
- करणीदानसिंह राजपूत-
महापुरुषों के संतों के जीवन पर विचार करते हुए अपने जीवन को ढालते हुए एक एक कदम आगे बढ़ाना बहुत ही संघर्षपूर्ण होता है लेकिन ऐसे व्यक्तित्व इस संसार में आते रहते हैं जो अपने जीवन को कठिन परिस्थितियों में भी समाज सेवा में लगाते हुए जीवन यापन करते हैं।
श्री दिलात्म प्रकाश आत्म जैन इसी प्रकार के अनूठे व्यक्तित्व के धनी हैं।
धर्म राजनीति सामाजिक पारिवारिक सभी क्षेत्रों में एक जागरूक प्रेरणादायक संदेश देते हुए करीब 80 साल से ऊपर की जिंदगी जी रहे हैं।
अनाज का एक कारण बेकार न हो नष्ट न हो इस जैनीय विचारधारा से वे भोजन के समय थाली को भी धोकर के पीते हैं।
अन्न का सूक्ष्म कण कण भी बेकार न जाए।
मैं दिलात्म जी का जीवन सामाजिक चिंतन में देखता रहा हूं।
जब कभी किसी पर विपदा आई किसी संगठन ने आवाज उठाई तो वे उस आवाज के अंदर साझीदार के रूप में उपस्थित रहे। चाहे धरना प्रदर्शन हो आंदोलन करना हो। कुछ वर्षों से सिविल सोसायटी नामक संगठन के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए भ्रष्टाचार को रोकने में आगे रहे हैं।
ईश्वर जब जन्म देता है और जिस घर में जन्म देता है उसी दिन उस जीव की आगे की जिंदगी लिखी हुई होती है। ऐसी मान्यता है।
जैन परिवार में जन्म लेने वाले दिलात्म प्रकाश का जीवन बहुत ही इमानदारी पूर्ण मैंने देखा और सुना है तथा उनसे बातचीत के रूप में भी पाया है।
जैन जी की प्रारंभिक शिक्षा सूरतगढ़ और बाद में श्रीगंगानगर में हुई।
कक्षा 12 के बाद उन्होंने दिल्ली में कोचिंग लेकर और चेन्नई (जो पहले मद्रास था)से ,इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया।उन दिनों कनिष्ठ अभियंता को ओवरसियर कहा जाता था।
पहली नौकरी करीब 1956-57 के आसपास श्री गंगानगर में गंग कैनाल सिंचाई विभाग में लगी।
सिंचाई विभाग में उस समय भी कुछ न कुछ लेनदेन चलता था दिलात्म जी को यह पसंद नहीं था और 2 साल तक जैसे तैसे वह नौकरी की और आखिर इस्तीफा देकर घर लौट आए।
सन 1964 में नगरपालिका सूरतगढ़ में ओवरसियर के पद पर नियुक्त हुए लेकिन लेन देन के मामले में यहां भी एक-एक दिन बिताना मुश्किल हो रहा था।
एक सड़क के निर्माण को लेकर आश्वासन दिया कि पूरी होने तक नौकरी पर रहूंगा और बाद में नौकरी त्याग दी।नगरपालिका सूरतगढ़ में करीब ढाई नौकरी की।
जैन धर्म में मूर्तिपूजक होने के कारण और जैन संतों के आशीर्वाद से इस प्रकार के सरकारी नौकरियों में उन्हें लगना बेकार लगा।
जहां तक मुझे याद है राष्ट्रीय पुस्तक भंडार नमक एक स्टेशनरी की दुकान खोली और उसमें दुकानदारी करते हुए भी समाज सेवा में एक एक कदम पर अपने जीवन को ढालने लगे।
मैंने अनेक कार्यों में दिलात्म जी को नजदीक से देखा।
श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर सूरतगढ़ में पूजा करते देखा। गुरुओं के संतों के आगमन पर उनका अभिवादन चरण वंदन करते उपदेश सुनते देखा। हर माह की संक्रांति पर आचार्य के दर्शन के लिए भी उस स्थान पर पहुंचते जहां पर आचार्य विराजमान होते।
दिलात्म जी जैन राजस्थानी भाषा के आंदोलन में भी सदा सक्रिय रहते हुए विचार प्रकट करते रहे। धरना प्रदर्शन में भी उनकी उपस्थिति रही।
बीकानेर मंडल में रेल सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे। बीकानेर से प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र लोकमत के कई वर्षों तक संवाददाता भी रहे।
राजस्थान पत्रिका ने अकाल पीड़ित गरीब लोगों के लिए एक मुट्ठी अनाज योजना चलाई जिसके तहत अनाज एकत्रित करके बाटा गया था। सूरतगढ़ में दिलात्मप्रकाश जी जैन ने विद्यालयों में जाकर छात्र छात्राओं से एक मुट्ठी अनाज दान में देने की अपील की। पत्रिका की यह योजना यहां सूरतगढ़ में बहुत अच्छे ढंग से सफल हुई। स्कूलों से बोरिया भर-भर गेहूं पत्रिका के सूरतगढ़ कार्यालय में भेजा गया, जो टिब्बा क्षेत्र में एक परिवार को 40 किलो भेंट किया गया। इसमें पीड़ितों की सूची राजस्व तहसील के पटवारियों से प्राप्त की गई थी।
राष्ट्रीय स्तर की संस्था "श्रीआत्मानन्द जैन महा सभा" की उतरी भारत कार्यकारिणी के दिलात्मप्रकाश जी वर्षों से सदस्य हैं।
श्री गंगानगर में स्थापित श्री आत्मवल्लभ जैन कन्या महाविद्यालय के निदेशक मंडल में कुछ वर्षों तक सदस्य भी रहे हैं।
राजनीति में उनकी विचारधारा समाजवादी चिंतक की रही है।
दिलात्म जी को बेबाक ही सुनने का अवसर मिला है।
सादा जीवन और खादी का पहनावा।
सादा जीवन उच्च विचार!
15-2-2018.