लोकसेवकों को बचाने के लिए राजस्थान विधानसभा में सोमवार 23.10.2017 को एक बिल लाया गया है। लेकिन इस विवादित बिल पर राजस्थान सरकार को अपनों से लेकर विपक्ष तक हमलों का सामना करना पड़ रहा है।
सदन में बिल को पेश करने वाले राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने तर्क दिया है कि राजस्थान में पेश 'दंड विधियां (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017' महाराष्ट्र में लाए गए बिल की तर्ज पर है। लेकिन गृहमंत्री शायद भूल गए कि महाराष्ट्र में जो बिल लाया गया था उसमें मीडिया की आजादी पर कोई बैन नहीं है। जबकि राजस्थान में जो बिल लाया गया है उसमें दो साल की सजा का प्रावधान है।
वहीं राजस्थान के बिल में अभियान स्वीकृति के लिए 180 दिन की समयावधि तय की गई है। जबकि महाराष्ट्र में यह समयावधि मात्र 90 दिन की है।
सरकार के इस विवादित बिल पर सोमवार को विपक्ष ने जमकर हंगामा किया। सदन से सड़क तक हुए प्रदर्शन के बाद सरकार के रुख में शाम तक कुछ नरमी जरुर देखी गई। राजस्थान सरकार अब बिल पर पुनर्विचार करने की बात कह रही है।
हालांकि विपक्ष का कहना है कि भ्रष्ट लोकसेवकों को बचाने के लिए लाए गए इस बिल को सरकार को वापस लेना पड़ेगा नहीं तो प्रदर्शन जारी रहेंगे।