आपराधिक कानून (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017 के अनुसार ड्यूटी के दौरान किसी जज या किसी भी सरकारी कर्मी की कार्रवाई के खिलाफ कोर्ट के माध्यम से भी प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई जा सकती। इसके लिए सरकार की स्वीकृति अनिवार्य होगी। हालांकि यदि सरकार स्वीकृति नहीं देती है तब 180 दिन के बाद कोर्ट के माध्यम से प्राथमिकी दर्ज कराई जा सकती है।
अध्यादेश के प्रावधानों में यह भी कहा गया है कि इस तरह के किसी भी सरकारी कर्मी, जज या अधिकारी का नाम या कोई अन्य पहचान तब तक प्रेस रिपोर्ट में नहीं दे सकते, जब तक सरकार इसकी अनुमति न दे। इसका उल्लंघन करने पर दो वर्ष की सजा का भी प्रावधान किया गया है।
पीयूसीएल ने किया विरोध
इस पर पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने ऐतराज जताया है। पीयूसीएल अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने बताया कि इसके विरोध में 21 अक्टूबर को प्रेस सम्मेलन किया जाएगा।
पीयूसीएल की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, ‘PUCL स्तब्ध है की वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार अपने गलत कारनामो को ढकने के लिए अब संवैधानिक व उच्चतम न्यायलय के घोषित कानून के विरुद्ध जाकर इस तरह के संशोधन लायी है की लोक सेवकों के अपराधों के विरुद्ध न कोई पुलिस FIR दर्ज़ कर सकती, ना जांच कर सकेगी, न मजिस्ट्रेट अनुशंधान आदेशित कर सकेगा न खुद कर पायेगा, जब तक सरकार आज्ञा नहीं देती। साथ ही इसके बारे में कोई लिख नहीं सकता, छाप नहीं सकता, जब तक आदेशित न हो।