बुधवार, 27 अप्रैल 2016

पत्रकारिता में आगे बढने के लिए शब्द सही लिखना सीखें:


शब्द मंत्र होता है और मंत्र लिखने में त्रुटि रही तो लाभ नहीं मिल सकता:
त्रुटियां लिखते रहे तो आगे नहीं बढ़ पाऐंगे:त्रुटियां बताने वाले को सम्मान दें क्योंकि वह आगे बढ़ाने का मार्ग दर्शक होता है:
- करणीदानसिंह राजपूत -
पत्रकारिता व्यक्तित्व विकास में सभी मार्गों से सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। पत्रकारिता का प्रथम धर्म है कि शब्द को सही लिखे क्योंकि शब्द के त्रुटिपूर्ण लिखे जाने से उसका अर्थ ही बदल जाता है या फिर कोई अर्थ निकलता ही नहीं है। शब्द को मंत्र की महिमा से मंडित किया जाता है। मंत्र लिखने में शुद्ध होना चाहिए अगर वह त्रुटि वाला हुआ तो वह सही बोला ही नहीं जाएगा। जब सही बोला नहीं जाएगा तब उसके नाद का आवाज का गूंज का लाभ नहीं मिल पाएगा।
पत्रकारिता की प्रथम सीढ़ी यह मानी जानी चाहिए कि जो शब्द लिखें वह सही हो। अनेक बार नया शब्द होता है जो समझ में नहीं आता हो तो अन्य से समझ लेना चाहिए या उसके बजाय जो शब्द प्रचलित हो उसका उपयोग कर लेना चाहिए।
आजकल पत्रकारिता क्षेत्र में उतरने वाले नौजवान एक बार शब्द लिखने के बाद उसको सुधारने की कोशिश नहीं करते। कोई बतला देता है तो यह मानते हैं कि वह गलती क्यों निकाल रहा है? अब पाठक है तो उसे इतना हक तो बनता है कि वह जो पत्र पत्रिका पढ़ रहा है और उसमें लगातार गलतियां छप रही है तो ध्यान दिलाए। पाठक ध्यान दिला कर कोई अनुचित कार्य नहीं कर रहा है। वह ीालाई का कार्य कर रहा है कि पत्रकार लेखक भविष्य में वह गलती न दुहराए। लेकिन जब बार बार गलतियां आने लगे तो पाठक संपादक को बतलाता है।
पाठक के सुझाव कई बार पत्रकार संवाददाता नहीं मानता और यह प्रमाणित करने लगता है कि वह गलत लिख रहा है और लिखता रहेगा। पाठक कौन होता है गलती निकालने वाला और उस पाठक का सम्मान करना छोड़ देता है। अब यहां समझने वाली बात है कि अगर शुद्ध लेखन होगा तो उन्नति पाठक की नहीं बल्कि पत्रकार की होगी।
अब दूसरे तरीके से समझा जाए कि कोई भी व्यक्ति या परिवार अपने घर में अपंग संतान नहीं चाहता और किसी रोग से हो जाए या घटना से हो जाए तो उसका उपचार ईलाज करवाने को अपने जीवन की सारी पूंजी लगाने को तत्पर हो जाता है। कमसे कम आगे कोई संतान अपंग न हो उसका प्रबंध करता है इलाज करवाता है। आजकल तो अपंग से संबोधन तक नहीं किया जाता बल्कि दिव्यांग नाम दे दिया गया है। जब यह स्थिति है तो पत्रकार को तो अपने में सुधार करना ही चाहिए ताकि कम्पीटिशन के युग में कभी मात न खा सके।


यह बात इसलिए लिख रहा हूं कि पत्रकारिता एक ऐसा कार्य है जिसे व्यक्ति स्वयं की ईच्छा से चुनता है। जब स्वयं का चुना हुआ कार्य है तो उसमें गलतियां नहीं हों और हो जाए तो आगे न हो। यह विचार होना चाहिए।
पत्रकारिता और लेखन में कभी भी कोई पूर्ण नहीं हो पाया है। ऐसा बड़े बड़े पत्रकार कह गए हैं। पत्रकारिता में सारे जीवन में कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। बस। सीखने का गुण और सद्भाव होना चाहिए।


करणीदानसिंह राजपूत

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