सोमवार, 22 मई 2017

कांग्रेस राज और गंगाजल मील के काल में हुआ छल:ऐटा सिंगरासर माइनर


पहले 9- 5-2016.
अप डेट  22-5-.2017.*
- करणीदानसिंह राजपूत -
ऐटा सिंगरासर माइनर का निर्माण पानी की उपलब्धता से जुड़ा हुआ है। इस मांग को ध्यान से समझने की जरूरत है कि जो गंगाजल मील वर्तमान भाजपा सरकार व विधायक राजेन्द्रसिंह भादू को कोसने में और आरोप लगाने में लगे हुए हैं। गंगाजल मील और कांग्रेस पार्टी इस मांग में जो खेल खेलती रही है उसमें छल और कपट भरे हुए रहे हैं तथा अभी भी वही नीति है।
कांग्रेस राज और मील के काल में किसानों को भरमाने का जो छल हुआ इसे जानेंगे तो हैरत में रह जाऐंगे कि नहर बन जाती तो किसान पानी के लिए सदा तड़पता रहता। यह छल भी साधारण नहीं था। बहुत सोच कर किया हुआ छल था। ऐटा सिंगरासर माइनर की मांग सबसे पहले प्रभावी रूप में राजेन्द्र भादू ने सन 2006 में कानौर हैड पर धरना प्रदर्शन कर रखी थी। यह तो निश्चित था कि भादू का कदम भी चुनाव के लिए था ताकि लोग जुड़ जाएं और राजनैतिक व्यक्ति के लिए इस वास्ते कठघरे में खड़ा नहीं किया जा सकता। जब चुनाव का दौर शुरू हुआ तब कांग्रेस के प्रत्याशी गंगाजल मील इस मांग और सूरतगढ़ में रेल ओवर ब्रिज की समस्या को ले उड़े। मील ने भादू से पहले अपने चुनावी प्रचार में इनको आधार बना लिया। मील चुनाव जीत गए।


 ऐटा सिंगरासर माइनर बनवाने का दबाव चला तब किसानों के साथ छल किया गया। भादू की मांग थी कि इंदिरागांधी नहर से पानी दिया जाए। इसके लिए इंदिरागांधी नहर से एक लोटा पानी भी लेना संभव नहीं था। पहले केन्द्रीय जल आयोग की मंजूरी के बिना माइनर नहर भी संभव नहीं थी। 

कांग्रेस राज और मील का काल जिसमें छल किया गया। माइनर के निर्माण के लिए इस योजना को घग्घर झील से पानी देने का प्रस्ताव तैयार किया गया व योजना को लघु सिंचाई योजना में केवल 5 ग्रामों की बना दिया गया। अगर मान लें कि मील यह माइनर बनवा देते तो 54 ग्रामों के बजाय पानी केवल 5 ग्रामों की जमीन को ही मिलता। यह पानी घग्घर झील में होता तो मिलता। घग्घर झीलों में पानी केवल बाढ़ का आता है जो पिछले पांच सात सालों से आया ही नहीं है। अगर यह माइनर बन जाती तो मील साहेब से सवाल पूछने का है कि इसमें पानी कहां से चलता। 49 ग्रामों से धोखा भी होता।

अब गंगाजल मील और उनके भतीजे पृथ्वीराज मील इस आँदोलन में जुड़े हैं और कांग्रेस भी कह रही है कि साथ देंगे। लेकिन जो हालात बने उन पर नजर डालें कि आँदोलन में जुटे गंगाजल मील और पृथ्वीराज मील का क्या पैंतरा रहा कि वे कई दिनों बाद बोले कि गांधीवादी तरीके से आँदोलन चलाऐंगे। यह गांधीवादी तरीका कई दिनों बाद अचानक कैसे याद आया। इसके पीछे भी चुनावी सोच रही है। हर कोई शायद इसे न समझ पाए।
इस आँदोलन के उग्र रूप धारण करने के विचार लगातार आ रहे थे। इसमें सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का मामला भी बन जाने की पूर्ण संभावना थी। इसकी धाराएं और सजा का काल ऐसा होता कि उसके तहत चुनाव लड़ नहीं सकते थे। मील अगले चुनाव में उतरने की तैयारी में है जो धरी रह जाती इसलिए घोषणा की गई कि गांधीवादी तरीका अपनाया जाएगा।
यहां यह भी सोचने बिंदु है कि इस आँदोलन में तो कांग्रेस गांधीवादी बनी लेकिन अन्य कार्यों में गांधीवादी तरीके कहां गायब हो जाते हैं ।
यह आँदोलन आगे किस हालात में जाएगा यह वक्त बताएगा लेकिन सरकार से समझौते की स्थितियां कई बार बनी और अभी भी बनी हुई है।

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