सोमवार, 27 अप्रैल 2015

बेटी चली गई प्रेमी संग? कहानी-


वह चली गई प्रेमी संग गुपचुप। माँ बाप का प्रेम फीका पड़ गया। उसका प्रेम परवान चढ़ गया। 


बसपा नेता डूंगर गेधर की चुपी सवाल बनी?


भाजपा व विधायक भादू के मामलों में चुप।
सूरतगढ़। विधानसभा चुनाव के बाद से बसपा नेता भाजपा और भाजपा के विधायक राजेन्द्र भादू के मामलों और नगरपालिका के मामलों पर एकदम चुप हैं। भादू के बाद विभागों में क्या हो रहा है? पुलिस में क्या हो रहा है? राजस्व विभाग में क्या हो रहा है? भादू की कोठी कटलों पर भी चुपी। विधानसभा चुनाव के मंचों पर भाजपा और कांग्रेस को एक ही थैली के चट्टे बट्टे बताने वाली बसपा के नेता डूंगर गेधर के चुप रहने पर सवाल उठाए जाने लगे हैं। आखिर क्यों चुप हैं? डूंगर गेधर और बसपा दोनों ही चुप हैं।
डूंगर गेधर चुनाव से पहले कहा करते थे कि वे सूरतगढ़ में ही रहेंगे। सूरतगढ़ में रहकर राजनीति करनी है तो भाजपा और भाजपा के विधायक की रीति नीति पर मुंह खोलना ही पड़ेगा।
डूंगर राम गेधर बसपा की राष्ट्रीय कार्य समिति के सदस्य हैं और यह सदस्यता भी पावरफुल ही मानी जाती है।
चुपी को राजनीति तो नहीं माना जा सकता।
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रविवार, 26 अप्रैल 2015

हाई मास्ट टावर हादसे की पुलिस में एफआइआर क्यों नहीं करवाई गई?


पुलिस से क्यों छुपाया जा रहा है हादसा जिसमें भारी नुकसान हुआ।
साधारण घटना थी या गड़बड़ या निर्माण में घोटाला? पुलिस जांच में हो जाता खुलासा।
विशेष- करणीदानसिंह राजपूत
सूरतगढ़। नगरपालिका के स्टेडियम में 30 मार्च शाम को हाई मास्ट लाईट का विशाल लम्बाई वाला टावर गिरा और 33 हजार केवी बिजली लाइन पर जा गिरा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सभा इसी स्टेडियम में 19 फरवरी को हुई थी। इस टावर के गिरने से बिजली लाइन की मीनारें भी टेढ़ी हो गई व उनके तार बस्तियों के घरों पर गिर पढ़ते तो हादसा कितना भयंकर होता। उसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। बड़े अखबारों ने केवल इतना लिखा कि हादसा टल गया। मौके पर जो हालात से उनको देखने की और देखा तो छापा नहीं। नगरपालिका के अधिशाषी अधिकारी से सहानुभूति रखी। वर्तमान में जो अधिशाषी अधिकारी कार्यवाहक बने हुए हैं वही यहां पर इंजीनियर हें और उनकी देखरेख में ही निर्माण होते रहे हें तथा घटिया और घोटालों के आरोप लगते रहे हैं।
टावर का जो आधार फाऊंडेशन सीमेंट कंक्रीट का बनाया गया वह मौके पर घटिया लग रहा था। धूल कंकड़ दिखाई दे रही थी और 


पलस्तर तक नहीं था। टावर फांऊडेशन के बोल्ट के कितने नट गायब थे या नहीं लगे थे? इन सभी का खुलासा पुलिस जांच में प्रयोगशाला में जांच करवाने से होता। लेकिन बड़े नुकसान के होते हुए भी अधिशाषी अधिकारी ने इसकी रिपोर्ट पुलिस में नहीं दी। नगर पालिका को बड़ा नुकसान हुआ लेकिन बोर्ड की अध्यक्ष श्रीमती काजल छाबड़ा ने भी इसे पुलिस को नहीं सौंपा।
यहां पर फांऊडेशन और लाइट की टूट की तस्वीरें दे रहे हैं। देखें कि किस प्रकार का निर्माण हुआ था?


लाइट की टूट



रविवार, 19 अप्रैल 2015

वरिष्ठ पत्रकार करणीदानसिंह राजपूत,पत्रकार मुरलीधर उपाध्याय को भी आपातकाल पेंशन शीघ्र

आपातकाल 1975 के शांतिभंग में जेलों में बंदी रहे पत्रकारों व पूर्व विधायकों को भी पेंशन शीघ्र
सूरतगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार करणीदानसिंह राजपूत,पत्रकार मुरलीधर उपाध्याय,पूर्व विधायकों स.हरचंदसिंह सिद्धु व गुरूशरण छाबड़ा को भी मिलेगी पेंशन:
करणीदानसिंह राजपूत गुरूशरण छाबड़ा हरचंदसिंह सिद्धु मुरलीधर उपाध्याय




सूरतगढ़।
आपातकाल 1975 में केन्द्र की सरकार के अत्याचारों का विरोध करने वाले आपातकाल के लोकतंत्र सेनानियों को जो शांतिभंग कानून के तहत गिरफ्तार कर जेलों में ठूंस दिए गए थे, उनको भी पेंशन दिए जाने का विचार राजस्थान सरकार कर रही है। 

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

हर की पौड़ी हिन्दुओं का तीर्थ है गैर हिन्दुओं के घूमने का नहीं:


हिन्दुओं के पूजा स्थल पर हिन्दु तरीके रीति रिवाज से पूजा आराधना होती है।
मुस्लिमों के आस्था स्थलों पर उनके तरीके रीति रिवाज से अल्लाह की इबादत की जाती है।
ईसाईयों के चर्च में उनके रीति रिवाज से गौड भगवान से प्रार्थना की जाती है।
मुस्लिम इबादत स्थानों पर अन्य धर्मों हिन्दु ईसाई आदि के तरीके से अल्लाह को याद नहीं किया जाता।
ईसाईयों के चर्च में मुस्लिम व हिन्दु तरीके से पूजा नहीं होती।
ठीक इसी तरह हिन्दु पूजा स्थलों तीर्थ स्थलों पर मुस्लिम व ईसाई तरीकों से भगवान की पूजा प्रार्थना नहीं की जा सकती।
गैर हिन्दु लोग दूसरे धर्मों के मानने वाले लोग वहां हिन्दु तरीके से पूजा प्रार्थना के लिए तो जाते नहीं है।
हिन्दुस्तानी मीडिया खासकर चैनल वाले पत्रकार बंधु अन्य धर्मों के अनुयायियों को वहां पर भेजने को उत्सुक कयों है?
हिन्दु साधु संत जब भी कोई बात कहते हैं या आह्वान करते हैं तब मीडिया के मरोड़ उठने लगते हैं। मीडिया हर बयान को अपने आप विवादित कहते हुए समाचार देना शुरू कर देता है और उस पर बहस तक करवाने लग जाता है। चाहे उस बयान पर कोई बवाल मचा ही न हो। हिन्दुओं के पूजा आराधना स्थान घूमने फिरने और मौज मस्ती के स्थान तो है नहीं है जो वहां पर इस ईच्छा से जाएं?

हर की पौड़ी बाबत भाजपा सांसद आदित्य नाथ के बयान को मीडिया ने अपनी मन मर्जी से विवादित बयान देना बतला कर उस पर खबरें शुरू करदी। आदित्य नाथ का बयान था कि हर की पौड़ी पर गैर हिन्दुओं को रोका जाना चाहिए। इसी बयान पर मीडिया ने तूफान मचा दिया।
मीडिया वाले बताएं कि इसमें विवादित वाले शब्द और भावना कौन सी है?
हर की पौड़ी पर हिन्दुस्तान के कोने कोने से लोग अपने बुजुर्गों की अस्थियां पूजा पाठ से गंगा के जल में प्रवाहित करने आते हैं। वहां पर अन्य धर्मों के लोग तो अस्थियां लेकर नहीं पहुंचते और न पूजा पाठ करने जाते हैं।
तब गैर हिन्दु वहां आखिर किस लिए जाना चाहते हैं?
इनके अलावा फिर उत्तर यही हो सकता है कि वहां पर गैर हिन्दु घूमने फिरने जाते हैं।
और हर की पौड़ी इसके लिए नहीं बनी है?
वह स्थान हिन्दुओं का पवित्र स्थान है तीर्थ है तो उसे उसी अनुरूप ही रहने दिया जाना चाहिए। मीडिया वालों को खासकर चैनल वालों को अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए तूल नहीं देना चाहिए।
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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

मेडिकल स्टूडेन्ट अजीम भाटी बीकानेर की उदयपुर में षड्यंत्र हत्या का मुकद्दमा:





गीतांजलि मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पीटल का स्टूडेन्ट:सहपाठियों पर आरोप:
1 अप्रेल 2015 को नाई थाने में एफआइआर:
गीतांजलि मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पीटल प्रबंधन ने 75 लाख रूपए लिए:
ग्रुप रेंगिंग से परेशान का आरोप:डूबो कर मारे जाने का आरोप:
पुलिस द्वारा सही जांच नहीं की गई:मृतक के वस्त्र आदि भी कब्जे में सीलबंद नहीं किए:
मौत 7 सितम्बर 2014 के बाद पिता लियाकत अली भाटी सेवा निवृत कर्नल ने 1 अप्रेल 2015 को एफआइआर दर्ज करवाई।
स्पेशल रिपोर्ट- करणीदानसिंह राजपूत:

गीतांजलि मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पीटल उदयपुर के एमबीएसएस के द्वितीय वर्ष के छात्र अजीम भाटी की रेंगिंग से परेशान किए जाने और हत्या कर दिए जाने के आरोप में करीब 7 माह बाद दर्ज हुए मुकद्दमें में सहपाठियों पर आरोप लगाया गया है। आरोप लगाया गया है कि यह ग्रुप अजीम भाटी को परेशान किया करता था।

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

पीएम नरेन्द्र मोदी फंसे:बोले लड़की अचार बेचे तो कीमत और ज्यादा मिलेगी:


क्या महिला आयोग मोदी की निन्दा करेगा और जवाब मांगेगा?
भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी मोदी के शर्मनाक भाषण पर इस्तीफे की मांग कर पाएगी?
भाजपा के मंत्री सांसद अन्य पार्टियों के नेताओं की महिलाओं पर की गई शर्मनाक टिप्पणियों पर निन्दा करती रहे हैं और इस्तीफा मांगते रहे हैं।
मुद्रा कोष उदघाटन का यह भाषण टीवी चैनलों पर लाइव प्रसारित हो रहा था। तोड़ मरोड़ कर प्रसारित करने का भी नहीं कह सकते।
स्पेशल रिपोर्ट- करणीदानसिंह राजपूत
भारत के प्रधानमंत्री संघ के संस्कारित नारी का सम्मान करने का दावा करते रहने वाली राजनैतिक पार्टी के नेता अपने भाषण से बुरी तरह से फंस गए हैं। नरेन्द्र मोदी की जबान भी फिसल गई। उनके कहने का लहजा नारी का सम्मान करने वाला नहीं रहा बल्कि नारी को सजावट की सामान जैसी वस्तु मान लेने वाला रहा। प्रधानमंत्री से इस प्रकार के भाषण की कोई भी उम्मीद नहीं कर सकता जब देश में नारी पर दिए जा रहे भाषणों से आए दिन बवाल मचता रहा हो तथा संसद तक में भाजपा के मंत्री ही आग बबूला होते रहे हों।
भारतीय जनता पार्टी के नेता खासकर महिला नेता अन्यों को सावधानी का पाठ पढ़ाते रहे और उन्हीं के प्रधानमंत्री ही सावधान नहीं रह पाए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 अप्रेल को मुद्रा कोष का उदघाटन भाषण में जो कहा उस पर बहस छिड़ी है तथा पूरे देश में बवाल मचा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसान की फसल की बिक्री बाबत भाषण कर रहे थे।
उनका कहना था कि बाजार में किसान को कीमत कम मिलती है वह खुद बेचे तो लाभ अधिक मिलता है।
मोदी ने कहा कि किसान खुद कच्चा आम केरी बेचे तो आमदनी अच्छी होगी।
उसका आचार बना कर बेचे तो अधिक कीमत मिलेगी।
उसी आचार को बोतल में पैक कर बेचे तो कीमत और अधिक मिलेगी।
उसी बोतल को लड़की लेकर खड़ी हो जाए तो बिक्री और अधिक बढ़ जाएगी।
आचार की बोतल लड़की बेचे तो बिक्री और ज्यादा बढऩे के शब्दों पर कोहराम मच गया है।
इस प्रकार के शब्दों का इस्तेमाल अन्य दलों के नेता करें तो आपत्ति और प्रधानमंत्री करें तो?
देश को नारी सम्मान की सीख देते रहने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं नारी का सम्मान कैसा करते हैं?
हरियाणा में महिलाओं ने एक आंदोलन छेड़ रखा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी पत्नी को साथ रखें जो एकाकी जीवन बीता रही हैं।

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

राजस्थानी साहित्य अकादमी का अध्यक्ष सरकारी नौकरी वाला न हो


राजस्थानी भाषा मान्यता का प्रस्ताव पारित हुए 12 साल बीत गए अब तो देरी न हो।
राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता के इंतजार में अनेक राजस्थानी साहित्यकार स्वर्ग सिधार गए और कई इस पंक्ति में पहुंचे हुए हें। कम से कम इस आस में जी रहे लोगों की आत्मा को अब आनन्दित कर दिया जाना चाहिए।
                - करणीदानसिंह राजपूत
राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी एक बार फिर कई महीनों से अध्यक्ष बिना लावारिस सी पड़ी है और इसकी समस्त गतिविधियां शून्य पड़ी है। राज्य सरकार द्वारा अध्यक्ष का मनोनयन होता है  और वह मनोनयन उसका होगा जिसकी सिफारिश होगी या कहना चाहिए कि जिसे सरकार अपना खास मानेगी। सरकार के मर्जीदान जो भी हों उनके कार्य कभी स्वतंत्र नहीं माने जा सकते,लेकिन इसके बारे में विचार अवश्य किया जाना चाहिए कि स्वतंत्र कार्यशैली के लिए अध्यक्ष उस व्यक्ति को मनोनीत किया जाना चाहिए जो सरकार में किसी भी पद पर नियुक्त न हो। सरकारी व्यक्ति चाहे किसी बड़े पद पर हो,राजस्थान प्रशासनिक सेवा में हो,उसकी कार्यप्रणाली सरकारी तरीके से ही चलती है। उसकी सोच ही अकादमी वाली नहीं होती है तब वह कितना ही अच्छा हो,वह अकादमी का कार्य रूचि से नहीं कर सकता। इस प्रकार के व्यक्ति का मनोनयन होने पर साहित्यकार बंधु स्वयं को असहाय लुटा पिटा सा अनुभव करते हैं और गतिशील रहने के बजाय शांत हो जात हैं। साहित्यकारों की शांति का फल यह होता है कि अकादमी का उद्देश्य ही शून्य होकर रह जाता है।
सुनने में आ रहा है कि सरकारी व्यक्ति भी अकादमी में मनोनयन के लिए प्रयासरत हैं। सरकारी नौकरी वालों के भी पिछलग्गु जरूर होंगे और वे चाहते भी होंगे कि उनके व्यक्ति का मनोनयन हो जाए। सरकारी नौकरी वाले की राजनैतिक पहुंच भी जरूर होगी लेकिन सरकार को इस प्रकार की गैर राजनैतिक संस्थाओं को स्वतंत्र रूप में ही देखना चाहिए। संभव है कि मेरे इन विचारों को अन्य साहित्यकार व राजस्थानी भाषा प्रेमी मानेंगे और समर्थन देंगे।
वर्तमान में राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जब चाहेंगी तब यह मनोनयन होगा। इसकी स्वतंत्र कार्य शैली रखने से जो लाभ होगा उस पर भी विचार करना चाहिए।
राजस्थानी साहित्यकारों एवं भाषा प्रेमियों ने एक तरफ राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता के लिए संघर्ष छेड़ रखा है, मगर दूसरी ओर उनकी निष्क्रियता और किसी न किसी कारण से चुप रहने की प्रवृति के कारण राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी शून्य में तड़प रही है। समस्त गतिविधियां ठप्प पड़ी है। 
अकादमी का बजट अध्यक्ष के बिना लेप्स होता रहा है तथा एकमात्र राजस्थानी पत्रिका जागती जोत का प्रकाशन भी ठप्प पड़ा रहा है। अभी भी बुरा हाल है। इस पत्रिका का संपादक भी गैर सरकारी ही होना चाहिए।
राजस्थानी भाषा साहित्य का कोई भी कार्य नहीं हो, केवल कर्मचारियों को वेतन देने के लिए ही बजट उठाया जाए तो इसके लिए अकादमी की मौत के अलावा कोई अन्य शब्द नहीं कहा जा सकता। अध्यक्ष के बिना प्रस्तकों का प्रकाशन,पुरस्कार और सम्मेलन आदि सभी बंद पड़े रहते हैं।
    मैं पहले सन् 2009 में भी कह चुका हूं कि जागती जोत के प्रसार के बारे में भी कभी कोई प्रयास नहीं हुआ। इसके प्रचार प्रसार के लिए जो कदम उठाए जा सकते हैं, उनके बारे में भी सुझाव दे चुका हूं तथा वे समस्त सुझाव उस समय विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छपते भी रहे हैं।
राजस्थानी भाषा एवं साहित्य के विकास व समृद्धि के लिए इस पत्रिका का प्रदेश के हर उच्च प्राथमिक विद्यालय से ऊपर तक के हर शिक्षण संस्थान में,ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, जिला परिषद के कार्यालयों में और नगरपालिका नगर निगम के कार्यालयों पुस्तकालयों में सरकारी स्तर पर पहुंचाया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए। इसके लिए बजट सीधा शिक्षा विभाग, पंचायत राज विभाग और स्वायत शासन विभाग से ही अकादमी के पास पहुंचाने का कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए। राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता देर सवेर निश्चित ही मिलेगी इसलिए राजस्थानी को हर कार्यालय में विकसित करना भी जरूरी है।
    अकादमी की स्थापना भाषा साहित्य व संस्कृति के विकास व समृद्धि के लिए की जाती है। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की स्थापना का भी यही उद्देश्य था, लेकिन इस उद्देश्य का बीच बीच में अनेक बार विभिन्न तरह से गला घोंटा जाता रहा। राजस्थान सरकार अध्यक्ष के मनोनयन में ढील करे तो कोई प्रश्र करने वाला नहीं। राजस्थान के कण कण में वीरता और रण बांकुरों का इतिहास रमा हुआ है तथा हिन्दी का भक्ति व वीर रस तो राजस्थानी का ही है। रण बांकुरे राजस्थान के वर्तमान राजस्थानी साहित्यकारों ने चुपी क्यों धारण कर रखी है? कहा जाता है कि बीकानेर के महाराजा पृथ्वीराज की कविता ने महाराणा प्रताप को अकबर से युद्ध करने के लिए जोश भर दिया था। अब राजस्थानी साहित्यकार राजस्थान सरकार को क्यों नहीं जगा सकते? आखिर वे किन स्वार्थों व कारणों से चुप हैं? क्या इसके पीछे पुरस्कारों का   या भविष्य में कभी मिलने वाला अध्यक्ष पद व सदस्यता का लालच छिपा है। ये शब्द कड़वे माने जा सकते हैं मगर सच्च तो यही है।
    राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता के लिए राजस्थान विधान सभा में राज्य सरकार ने 25 अगस्त 2003 को एक प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भिजवाया था जिसके तहत राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल किए जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ था।  उस समय प्रदेश में अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे। अब तक 12 साल बीत गए लेकिन संवैधानिक मान्यता नहीं मिल पाई। अब केन्द्र और राज्य दोनों में भाजपा की सरकार है और भारत के हर क्षेत्र के विकास की चाहत है तो फिर देरी करने के बजाए राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल किए जाने का प्रस्ताव भी पारित कर दिया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने कई भाषणों में इस प्रकार के वकतव्य दिए हैं कि काल करे सो आज कर,आज करे सो अब,पल में प्रलय होएगी,फिर करेगो कब? जो कार्य करना ही है तब उसे टालते रहने से कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। राजसथानियों को तो लाभ उस दिन मिलने लगेगा जब राजस्थानी को मान्यता मिल जाएगी।
राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता के इंतजार में अनेक राजस्थानी साहित्यकार स्वर्ग सिधार गए और कई इस पंक्ति में पहुंचे हुए हें। कम से कम इस आस में जी रहे लोगों की आत्मा को अब आनन्दित कर दिया जाना चाहिए।

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