ओमप्रकाश कालवा की मास्टर गलतियां
* करणीदानसिंह राजपूत *
नगरपालिका अध्यक्ष पद पर रहते ओमप्रकाश कालवा ने जो गलतियां की उसमें ओन लाईन ठेका पद्धति को लागू करना एक प्रमुख गलती है। कुछ लोगों की ठेकेदारी खत्म हो गयी। नगरपालिका में फेवी रसायन से पक्के जुड़े जैसे ठेकेदारों को छिटकाया। नाराजगी तो होनी ही थी। हजारों की बोतलें गटकने वाले दोस्त भी दुश्मन बन गये। जगदीश मेघवाल के अध्यक्ष बनने पर नगरपालिका में कुछ तो इतने खुश थे मानों इतना नाचे कि घुंघरू टूट गये। ओन लाइन टेंडरिंग में नगरपालिका को लाखों रूपये का लाभ हुआ। कालवा ने जलाने के लिए इसे अपने ऊपर लिया जबकि यह आदेश तो कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार के थे। कालवा को ठेकेदारों की राजी नाराजगी में बताना चाहिए था कि यह आदेश पिछली सरकार का है।
* राष्ट्रीय उच्च मार्ग नं 62 पर या नजदीक करोड़ों के भूखंड पर भाजपा पदाधिकारियों से संबंधित कुछ करोड़पति गरीब जब सरकारी जमीन को अपनी मान कर निर्माण कर विकास कर रहे तो उनको विकास नहीं करने दिया। ये विकास होने देते और मोतीचूर के लड्डू अपनी ओर से खिलाने थे लेकिन वहां एक ईंट नहीं छोड़ी। मतलब जानबूझकर जलाया। आखिर ऐसी गलतियां करने से खुश कौन होता?
* सीवरेज संबंधी गलतियां और बड़े घोटाले पिछली अध्यक्ष श्रीमती काजल छाबड़ा के कार्यकाल में हुए लेकिन गलत भुगतान में फंसने के बावजूद काजल छाबड़ा का कहीं नाम नहीं लिया। असल में घोटाला तो काजल के कार्यकाल में हो चुका था।
2 दिसंबर 2019 को कार्यभार ग्रहण करने वाले समारोह में यहां तक कह दिया कि सीवरेज के गड़े मुर्दे नहीं उखाड़ेंगे हां निर्माण में कहीं गलती रही होगी तो उसे ठीक करवा दिया जाएगा। काजल के घोटालों को बताने में कभी आगे नहीं आए। यह एक बड़ी गलती रही। कासनिया ने तो प्रेस कान्फ्रेंस में यह तक कह दिया कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में केस इसलिए नहीं दिया कि बिचारी लुगाई मर जासी। अधिकारी ने कह दिया था कि निश्चित रूप से पनिशमेंट होगा। क्या उदारवाद रहा था। ईओ लालचंद सांखला ने अपने हस्ताक्षरों से विधानसभा में विधायक रामप्रताप कासनिया के तारांकित प्रश्न का झूठा जवाब भेजा लेकिन उसे नहीं फंसाया। लालचंद ने अपने अकेले के हस्ताक्षर से 70 पट्टे जारी कर दिए लेकिन उसकी न शिकायत न जांच। ओमप्रकाश कालवा द्वारा जांच नहीं करवाना न कहीं शिकायत करना मास्टर गलती रही। लालचंद क्या लगता था कि उसकी शिकायत नहीं की? ईओ पूजा शर्मा की गलतियों पर पर्दा डाल बचाते रहे। परसराम भाटिया 120 दिन अध्यक्षीय कार्यकाल में भ्रष्टाचार और घोटाले करोड़ों के कर दिए मगर उसके घोटालों को उजागर करने वाले मीडिया को नहीं दिये।
अभी तो चुप रहने की विरोधियों की शिकायतें नहीं करने की गलतियां और करेंगे।०0०