* करणीदानसिंह राजपूत *
गायक को सुनने भारी भीड़ आएगी यह सोचकर नेता राजनीतिक दलों के प्रमुख लोग बड़ी गलती करते हैं और बाद में सच्च सामने आता है कि सभा में शोर हुड़दंग अव्यवस्था होती है। लाखों रुपये देकर बुलाए गायक को बुलाकर अपने ही कार्यक्रम का सत्यानाश करवाया। शोर और हुड़दंग के कारण असल में जो लोग वीआईपी को सुनने आए वे उसकी आधी अधूरी बातें ही सुन पाए। वीआईपी के भाषण के बीच में शोर हो तो आनंद में बाधा कार्यक्रम किरकिरा और लाखों का चूना।
* प्रमाण चाहिए तो सभाओं के विडिओ देख लेने चाहिए। और भविष्य के लिए शिक्षा लेनी चाहिए।
* जो नेता राजनीतिक पार्टियां भविष्य में सभा या चुनावी सभाएं करने की सोच रही हैं तो निर्णय करें कि आमंत्रित लोगों को भाषण सुनवाना है या शोर मचवाना है. हुड़दंगियों से कुर्सियां फिंकवानी है तुड़वानी है।
* हो सकता है कि आयोजकों के लिए चार पांच लाख रुपये की कोई वैल्यू न हो मगर जो असल में सनने आए उनके लिए वीआईपी के भाषण की वैल्यू होती है।
* आयोजन लाखों रुपये से बड़ा तो करवाया जा सकता है लेकिन समुचित व्यवस्था के लिए वालंटियर जरूर होने चाहिए जो बैज लगे हुए मौजूद हों। वालंटियर शोर शराबे को कंट्रोल करने में अहम भूमिका निभाते हैं। महिलाओं के क्षेत्र में महिला वालंटियर भी हो।
श्रोताओं को भी कोई परेशानी हो,किसके बैठने की कहां व्यवस्था है, पानी आदि के लिए वालंटियर ही काम आते हैं। जितनी बड़ी सभा उसी के अनुसार ही वालंटियर हों।
* भयानक गर्मी कूलर के आगे कहीं सुरक्षा कर्मी तो कहीं आमंत्रित कार्यकर्ता खड़े हो जाएं तो उनको कौन हटाए? मीडिया को पानी ही नहीं मिले बैठने की सीटें ही कम हो,दूसरे बैठ जाएं तो कौन करे व्यवस्था। यहां वालंटियर ही काम आते हैं। जहां वालंटियर नहीं होते वहां पर कुछ न कुछ और बहुत कुछ अव्यवस्था हो जाती है। ०0०
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