रविवार, 2 अप्रैल 2023

सात भगतसिंह रूप टंकी पर: सूरतगढ को जिंदा बनाने को कुर्बानी को तैयार.

 

* करणीदानसिंह राजपूत *


शहीदे आजम भगतसिंह के सात  क्रांतिकारी रूप सूरतगढ में नये तौरतरीकों से जान डालने के लिए अपने को मिटाने का निर्णय करके पानी की टंकी पर चढे और सर्दी बरसात तूफानी हवाओं में 

रात काट कर बता भी दिया।

क्रांतिकारी छात्र नेता रामू छिंपा, कमल रेगर,शक्ति सिंह भाटी,अशोक कड़वासरा,अजय सहारण, सुमित चौधरी और राकेश बिश्नोई की ताकत ने मार्ग तो दिखा दिया जिस पर चलना है ताकि सूरतगढ जिला घोषित हो।

इन सातों युवाओं ने घोषणा की है कि वे शहीद-ए-आजम भगत सिंह के मार्ग पर चलते हुए सूरतगढ़ को जिला बनाने के लिए अपनी कुर्बानी देंगे। उनकी कुर्बानी को याद रखा जाए। इसी मांग को लेकर वे 1 अप्रैल की शाम को हाउसिंग बोर्ड पुरानी कॉलोनी की पानी की टंकी पर चढ़ गए। सूरतगढ को जिला बनाओ के नारे लगाते हुए दृश्य बदल डाला।


👍 यह एक्शन फिल्म की शूटिंग नहीं हो रही थी। यह तमाशा भी नहीं था। सब कुछ सच्च सबके सामने हो रहा था। 

👍 नेता कहूं तो जंचता नहीं अभिनेता ही सही शब्द और आचरण है कि आए यह सब देखा और फिर एक एक कर चले गए। 

👍 नेताओं और अन्य नेतागिरी करने वाले जिला बनाओ अभियान समिति के सदस्यों पदाधिकारियों और लोगों के परिवार है बाल बच्चे हैं काम है सो एक एक लौट गए। आधी रात के बाद केवल पन्द्रह होंगे जो मौजूद रहे। 



👍 भगतसिंह के सात क्रांतिकारी रूप रामू छिंपा, कमल रेगर,शक्ति सिंह भाटी,अशोक कड़वासरा,अजय सहारण, सुमित चौधरी और राकेश बिश्नोई के परिवार माता पिता भाई बहन घर नहीं हैं जो वे टंकी पर चढे और उसे क्रांति स्थल बनाया। ताकि मरते जा रहे शहर सूरतगढ में नयी जान पैदा हो जाए और बीमार नेता बीमार  लोग स्वस्थ हो जाएं और जोश भरे निर्णय ले सकें। लेकिन जो आचरण नेताओं का और अन्य लोगों का सामने आता रहा है उससे तो लगता है कि अनेक नेताओं की बीमारी ठीक नहीं हो पाएगी। बीमार स्वस्थ होना चाहे तभी डाक्टर की वैद्य की दवाईयां काम करती है। 

* क्रांतिकारियों को टंकी पर चढे रात बीत गई। नेता रात को सो गए। रविवार का दिन निकल आया सूर्य निकल आया। यह पूरा दिन सोचने समझने और नये कदम उठाने के लिए है। सूरतगढ के नेता, संचालन समिति, व्यापारी दुकानदार सोच लें और मन मजबूत कर निर्णय कर आगे बढेंं। हवाई बातें नहीं करें भाषाओं से घरौंदे नहीं बनाएं। जीवित हैं तो जीवित फैसले लें। कठोर फैसले से मर नहीं जाएंगे। नाटक नहीं हों बहाने नहीं हों। स्टेयरिंग कमेटी में साठ सत्तर नही होते। स्टेयरिंग तो एक के ही हाथ में होता है जो वाहन चलाना जानता हो। संचालन समिति में संघर्ष समिति यानि एक्शन कमेटी में पांच सात ही हो जो कड़े फैसले लेने वाले हो जिनके आचरण में किंतु परंतु बहाने नहीं हों। नेताओं को भी टालना हो तो एक्शन कमेटी में लेना जरूरी नहीं, उसी को लिया जाए जो बोल्ड हो। इतने दिनों की बैठकों और कार्यक्रमों से मालुम हो ही गया होगा सच्चे नेताओं का। एक्शन कमेटी का अध्ययक्ष भी दूसरा हो जो ताकतवर हो। आंदोलन अब नये रूप में बदल गया है क्रांतिकारी रूप में। अब ढीले रूप में नहीं चलाया जा सकता। एक्शन कमेटी सूरतगढ बाजार शहर के लिए भी जो फैसले ले वे ताकतवर हों दुकानों और घरों में बैठे आंदोलन नहीं चलाए जा सकते। 

टुकड़े टुकड़े थकाने वाले फैसले ंर कलम नहीं हो जिनका शासन प्रशासन पर कोई असर नहीं हो। सरकार की नीति होती है अनदेखा करतज हुए आंदोलनों को थका थका कर खत्म कर देना और इस स्थिति में कुछ लोग उनके साथ शामिल भी हो जाते हैं। 

* क्रांतिकारी निर्णय और कदम उठाने के लिए भगतसिंह का रूप बन जाना होगा और जीवित भी रहना होगा। 

* आमरण अनशनकारियों को भी ध्यान में रखें।

** सात क्रांतिकारियों की सेल्फी फोटो सुबह करीब साढे आठ बजे की है। जोश है। यह फोटो रामू छींपा को फोन कर मंगवाई थी०0०










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