बुधवार, 23 नवंबर 2022

5 साल भाजपा 5 साल कांंग्रेस: राजस्थान में यह कैसा खेल?

 





--- यह परंपरा नहीं है। जमीनी कार्यकर्ता की सुनवाई नहीं जनता के काम नहीं. ये कारण बदल देते हैं राज. --


* करणीदानसिंह राजपूत *


 राजस्थान में जनता में यह प्रचलित है कि 5 साल भाजपा और 5 साल कांग्रेस का राज अदल बदल कर आता रहेगा। कोई भी पार्टी का नेता और कार्यकर्ता यह दावा क्यों नहीं करता कि हम दूसरी पार्टी को राज नहीं देंगे। सन् 1998 से 2003 तक कॉन्ग्रेस  2003 से 2008 तक भारतीय जनता पार्टी,2008 से 2013 तक कांग्रेस पार्टी,2013  से 2018 तक भारतीय जनता पार्टी और फिर 2018 से 2023 तक कांग्रेस पार्टी का राज जो चल रहा है। 

लेकिन पूरे राजस्थान में यहां तक की देश के राजनेताओं में भी यह चर्चा हो रही है कि 2023 में भारतीय जनता पार्टी का राज आएगा।

 कांग्रेस पार्टी का कोई नेता जोर शोर से दावा नहीं करता कि हमारा राज 2023 में भी आएगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जो तीसरी बार मुख्यमंत्री पद पर आए हुए हैं वे जरूर कहते हैं कि कांग्रेस की सरकार आएगी।

 पूर्व मुख्यमंत्री भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे ने दावा किया है कि 2023 में  भारतीय जनता पार्टी आ रही है। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया भी यही दावा कर रहे हैं कि 2023 में भारतीय जनता पार्टी आएगी।

ऐसा क्यों हो रहा है। लोग इसे परंपरा सी मानने लगे हैं और इस परंपरा में वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत को ही मुख्यमंत्री मान करके भी चलते हैं। ये दोनों एक दूसरे को राज ले दे रहे हैं, लेकिन क्या असल में यही सच है? 

मेरा विचार है कि यह पांच 5 साल की राज की परंपरा नहीं नहीं है। असल में सत्ता में आने के बाद जो निकम्मा पन कार्य के प्रति शिथिलता जमीनी कार्यकर्ताओं से जुड़ाव खत्म होना जनता के काम नहीं होना प्रमुख प्रमाणिक तथ्य हैं  जो राज बदलने का काम करते हैं। राज आने के बाद सच्चाई में कार्य नहीं होता,दावे जरूर होते हैं।


पिछले बीस बाईस सालों पर दृष्टि डालें।

सन् 1998 से 2003 तक राजस्थान में कांग्रेस का राज था। इस राज को बदलने के लिए केंद्र से वसुंधरा राजे को राजस्थान में भेजा गया।भारतीय जनता पार्टी ने माना कि राजस्थान में नेता तो बहुत है मगर सभी अपने अपने क्षेत्र में लोकप्रिय हैं। पूरे राजस्थान में ऐसा ताकतवर कोई नहीं है जो कांग्रेस को हराकर भारतीय जनता पार्टी के राज को स्थापित कर सके। वसुंधरा राजे ने भयानक गर्मी में संपूर्ण राजस्थान में परिवर्तन यात्रा निकाली लोगों ने जोर-शोर से स्वागत किया और 2003 के चुनाव में राज बदल गया। लोगों ने वसुंधरा राजे को गले लगाया और सिर पर बिठाया। राज बदलने के बाद में वसुंधरा राजे के सिर पर ताज रखा गया। अखबार वाले भी यही लिखते हैं कि राजस्थान का ताज वसुंधरा के सिर पर। अब यह ताज शब्द ऐसा है कि इससे लोकतंत्र की सुगंध नहीं आती। इस शब्द से राजा और प्रजा के बीच की दूरी  सामने आती है। वसुंधरा राजे राजस्थान की राजा बन गई। उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं थी। जनता ने सिर पर बिठाया था फिर यह जनता 2008 के चुनाव में कैसे बदल गई और राज कांग्रेस को दे दिया। 

इसका कारण खोजा जाए कि सन् 2008 से 2013 तक कांग्रेस का राज रहा। अशोक गहलोत के सिर पर ताज रखा गया लेकिन गांधीवादी माने जाने वाले इस लोकप्रिय व्यक्ति को जनता ने पटकनी क्यों दे दी। सन् 2013 में राज भाजपा को दे दिया लेकिन 2018 में छीन कर पुनः कांंग्रेस को दे दिया।

 अब 2023 के चुनाव में फिर गांधी वादी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को आगे राज देने को तैयार क्यों नहीं है? 

आखिर क्या कारण है? इसकी खोज करें तो ऐसा लगता है कि ताज पहनने के बाद सच में वह मुख्यमंत्री अपने आप को राजा और  उसके मंत्री भी सभी राजा बन जाते हैं। प्रजा की सुनवाई नहीं हो पाती। 

नेताओं के नाम  बदल बदल कर आते जाते रहते हैं. मगर कभी किसी ने उन कार्यकर्ताओं को याद किया पूछा उनके काम किए कभी उनके घर जाकर बीमारी में हालचाल ,रोजी रोटी के बारे में पूछा? भारतीय जनता पार्टी की दरियां बिछाकर खड़े होकर भाषण सुनते थे। कांग्रेस पार्टी में दरियां बिछाकर खड़े होकर भाषण सुनते थे। किसी ने भी अपने धरती पकड़ जमीनी कार्यकर्ताओं को चुनाव जीतने के बाद याद ही नहीं किया चाहे कांग्रेस हो चाहे भारतीय जनता पार्टी हो। यह जमीनी कार्यकर्ता नेताओं कोठियों में प्रवेश के लिए भी एक प्रकार से तरसते रहे, क्योंकि हर राजनेता जो विधायक बन गया उसने अपना दफ्तर अपने आलीशान मकान से चलाया। चंद लोग कोठी में आ सकते थे जा सकते थे।  विधायक से बात कर सकते थे। दोनों पार्टियों में यह बात रही। 

असल में धरती से जुड़े हुए कार्य करता ही आम जनता से दिन रात हर वक्त जुड़े हुए रहते हैं। अच्छे बुरे में साथ भी देते हैं।जय राम जी की भी करते हैं। हाथ भी जोड़ते हैं। जिस कार्यकर्ता के पास थोड़ी सी भी पावर आ गई।कोई नगर मंडल देहात मंडल का अध्यक्ष बन गया जिला अध्यक्ष बन गया तो उसने जनता को सीधे मुंह बात करना छोड़ दिया। कांग्रेसमें भी यह प्रवृत्ति रही चाहे शहर कांग्रेस का पदाधिकारी हो चाहे देहात कांग्रेस का पदाधिकारी हो या ब्लॉक कांग्रेस का पदाधिकारी हो या जनप्रतिनिधि बन गया हो। राज्य स्तर के पदाधिकारियों की तो बात ही जाने दें,वे तो सम्राट होते रहे। 

 कुर्सी जिसकी पीठटेक सिर से भी ऊंची होती है उस पर जम गया जिसे हम घूमने वाली कुर्सी कहते हैं। उसने  कभी किसी से बात करने की कोशिश नहीं की। आम जनता का काम न भारतीय जनता पार्टी के राज में हुआ न इंडियन नेशनल कांग्रेस के राज में हुआ। 


 एक बहुत सत्य पूर्ण बात रख रहा हूं कि अगर सरकारी दफ्तरों में सरकार की नीति के अनुसार कार्य होते  तब प्रशासन शहरों की ओर प्रशासन गांवों की ओर अभियान चलाने की कोई आवश्यकता ही नहीं होती। ये अभियान ही प्रमाणित करते हैं कि सरकारी दफ्तरों में जनता का काम नहीं होता। बहुत बड़ा प्रमाण है कि वर्तमान में कांग्रेस पार्टी की सरकार है मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देश पर इन अभियानों में भी काम नहीं हो रहे। उनके निर्देश ही नहीं माने जा रहे। उन पर काम नहीं हो रहे। बार-बार जयपुर से संदेश दिए जाते हैं कि आम जनता के काम किए जाएं। जिला कलेक्टर उनको आगे संदेश देते हैं कि काम किए जाएं लेकिन नगर पालिका नगर परिषद नगर विकास न्यास के अध्यक्ष और अधिकारी नहीं सुन रहे और काम नहीं हो रहे। 

इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्र में भी पंचायतों में गांव के लोगों को चक्कर पर चक्कर कटवाए जाते हैं। कोई भी काम हो खुलेआम एक ही बात चलती है कि कुछ न कुछ खर्च करना पड़ेगा और यह कुछ ना कुछ मामूली रकम नहीं होती बहुत बड़ी रकमें होती है। पैसे वालों के काम तो दफ्तरों में भी होते रहे हैं।

आए दिन भ्रष्टाचार निरोधक विभाग छापे मारता है गिरफ्तार करता है यदि जनता का काम हो तो रिश्वत देने की आवश्यकता ही नहीं होती। यह रिश्वतखोरी भारतीय जनता पार्टी के राज में भी थी और कांग्रेस के राज में भी है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि रिश्वतखोरी में रंगे हाथों पकड़े जाने वालों पर अदालत में मुकदमा चलाने की स्वीकृति संबंधित विभाग का सक्षम अधिकारी नहीं देता। यह कैसा खेल है जिसे राज्य का मुख्यमंत्री मंत्री मंडल बदलता नहीं है। जो विभाग गिरफ्तार करे उसे अदालत में चालान पेश करने की अनुमति होनी चाहिए। बेचारी जनता भ्रष्टाचारियों को पकड़वाने के बाद भी हाथ मलती रह जाती है।  पांच दिन का सप्ताह और छुट्टियां। कहने को सुनवाई के लिए सम्पर्क पोर्टल है लेकिन वहां घुमा फिराकर उत्तर मिलता है जो निकम्मे विभाग से आते हैं जिनकी शिकायत होती है। मुख्यमंत्री कार्यालय में की शिकायतों पर भी काम नहीं होता। मुख्यमंत्री मंत्री कभी भेष बदल कर विभागों में जाएं पुलिस थानों में जाएं और सुनलें सभ्य वाणी जो पीड़ित सुनते हैं। बीट कांस्टेबल से गुप्त रिपोर्ट अपराधों,नशे आदि की नहीं ली जाती। बढते अपराधों से सरकारें बदनाम होती हैं।


ये वे प्रमाणित सच्चे तथ्य हैं जिनसे तंग आकर आम जनता राज बदलने की बात करने लगती है। चाहे भारतीय जनता पार्टी का राज हो चाहे कांग्रेस पार्टी का राज हो दो ढाई साल के बाद में जनता ऊबने लगती है और फिर परिवर्तन आ जाता है। 

अब इस बात को जो प्रमाणित बात है उसको सभी  समझते हैं जानते भी हैं लेकिन कोई भी पार्टी बहुत गंभीर रूप से अपने जनप्रतिनिधियों को संगठन के पदाधिकारियों को कहती नहीं कि आम जनता की सुनो।आम जनता के काम करो। राज हर 5 साल बाद बदलने का यह प्रमुख कारण है जिसे समझने की जरूरत है। हर जनप्रतिनिधियों के चारों ओर पांच दस चापलूसों का तलवे सहलाने वालों का घेरा बन जाता है। जनप्रतिनिधियों को वही अच्छे लगते हैं और जनता दूर और दूर होती जाती है। राज बदल जाता है।०0०


* आज 23 नवंबर 2022 को सभी के समक्ष प्रस्तुत. प्रसिद्ध लेखक सत्य पारीक की पुस्तक "मरूधरा में कांग्रेस भाजपा का ब्ल्युप्रिंट"में अनेक लेखों में एक लेख। *  पुस्तक की चर्चा अलग से की जाएगी।*


करणीदानसिंह राजपूत

स्वतंत्र पत्रकार,

विजयश्री करणी भवन,

सूर्यवंशी स्कूल के पास.

मिनी मार्केट,

सूरतगढ़ ( राजस्थान)

94143 81356.


*******




यह ब्लॉग खोजें