बुधवार, 11 मई 2022

अध्यक्ष जी ने सम्राट जैसा रूप दिखा दिया कि कितनी सुरक्षा और कितने स्वागत सत्कार


* करणीदानसिंह राजपूत *


सम्राट जैसा ठाठ बाट इसे कहते हैं। सूझबूझ और पावर का सदुपयोग। अधिकारी अपने गांव घर मिलने जाता है तो सरकारी गाड़ी का सदुपयोग कर लेता है। बस समझ लें ऐसा ही कुछ हुआ। समधी जी से मिलना और प्रचार प्रसार स्वागत के सभी गीत गवा लिए। बहुत कम पढ़े लिखे अल्प बुद्धि वाले को भी मालूम होता है कि चुनाव के साल डेढ साल पहले कोई बूथ सम्मेलन या संकल्प नहीं होता। 

* चुनाव तक पहले बनाए बूथ अध्यक्ष चलते नहीं। न बनते देखे हैं और न बनाए जाते हैं। डेढ 2 साल पहले अगर बनाए जाएं तो चुनाव तक पता नहीं कितने बदल जाए छोड़ दें। 

यह है सरकारी अधिकारी की तरह पावर का सदुपयोग है। सरकारी अधिकारी जब निकलता है तो बीच में  जो अन्य अधिकारी कर्मचारी होते हैं वे स्वागत सत्कार में जुट जाते हैं। कहकर भी स्वागत करवा लिया जाता है।बस ऐसा ही हुआ है। 

*एक बात जो प्रमाणित है। जन्मदिन और शादी की वर्षगांठ पर पार्टी पर जो बैलून गुब्बारे हवा भर कर खूब फुला कर सजाए जाते हैं,वे ज्यादा दिन नहीं रहते। दो-तीन दिन ही रहते हैं। बस इतनी ही उनकी जिंदगी होती है।

अध्यक्ष जी के आने से पहले स्वागत सत्कार के जो ढब्बू गुब्बारे अखबारों में चैनलों में मीडिया में फुलाए गए वे 2 दिन बाद ही फट जाएंगे या फुस्स होने शुरू हो जाएंगे। बस इतनी ही इनकी जिंदगी है। मीडिया से फैलाई गई हवा दो-तीन दिन से ज्यादा नहीं चल पाती।  नई नई न्यूज़ आते ही उस नयी की हवा बनाना शुरू हो जाता है। 

* मीडिया को ऐसा लगा था कि 2 दिन के कार्यक्रम में कम से कम 1 दिन के पांच और दूसरे दिन के पांच पूरे पृष्ठों के विज्ञापन जरूर जरूर मिल जाएंगे। इसलिए मीडिया वाले दस दिन पहले से ही रोजाना की प्रेस कांफ्रेंस का समाचार अगले दिन के अखबार में देते रहे। खूब स्पेस दिया। चार पांच पृष्ठ तक। ऐन मौके पर उजागर हुआ कि कुछ नेताओं कार्यकर्ताओं ने छोटे-छोटे विज्ञापन दिए जो सभी मिलाकर आधा पृष्ठ से ज्यादा नहीं हुए होंगे। 

*प्रचार करने और कराने का एक नया तरीका इस्तेमाल हुआ। इसमें मीडिया भ्रमित हुआ या किया गया। इसे भ्रमित कहना भी उचित नहीं।  इसे बेवकूफ बनना और बेवकूफ बनाना कहना बताना ज्यादा उचित होगा। मीडिया के ज्ञान चक्षु इससे खुल गए होंगे। आम सभा में अधिक से अधिक आने भीड़ जुटाने के लिए तो प्रचार प्रसार होता है लेकिन इसमें तो बूथ अध्यक्ष गिने हुए थे और उनको ही संकल्प लेना था।


भयानक गर्मी लू के थपेड़े और शहर से 10- 15 किलोमीटर दूर 5 हजार से अधिक बूथ अध्यक्षों को संबोधित करना इसके अलावा नेताओं का जमघट। इतनी भयानक गर्मी में ऐसे कार्यक्रम और वह भी चुनाव से डेढ़ साल पहले कोई नहीं करता। 

यह कार्यक्रम जिस तरह से आयोजित हुआ पावर दिखाई गई बस यह खेल पहले की पंक्तियों में बताया जा चुका है। बूथ अध्यक्ष अपने-अपने शहरों और गांवों में है या नहीं है?यह अच्छी तरह से मालूम कर लेना? 5 हजार से अधिक भयानक गर्मी में कैसे आएंगे? कोई लाएगा तभी आ सकते थे। लेकिन ऐसा लगा नहीं।

यदि बूथ अध्यक्षों को ही संबोधित करना था तो अधिक से अधिक भीड़ लाने की बातें  कार्यकर्ताओं से क्यों कही जा रही थी। 

जहां पर आयोजन हुआ। वहां के नेताओं ने जो टिकटार्थी  हैं,उन्होंने स्वागत सत्कार में बहुत कुछ खर्च किया मालाओं बुकों का अर्पण किया। भाग्य तो किन्हीं गिनती के लोगों के  ही खुल पाएंगे। जहां पर स्वागत सत्कार हुआ। वहां से पहले भी लोगों को इकट्ठा कर स्वागत हुआ। मेरा ध्यान रखना मेरा फेस याद रखना। बस,यह वाणी होठों से बाहर नहीं निकल पाई।

फलां फलां जगह फलां  फलां नेता ने स्शंवागत किया मालाएं पहनाई बुके भेंट किए लेकिन सच यही है कि यह एक रिश्तेदारी मिलन पूरा हुआ।

इसमें लगते हाथ लोकार्पण आदि जुड़ गए।

 इस बहाने से पार्टी को लोगों को एक संदेश भी गया कि पावर क्या होती है और पावर के आगे हाथाजोड़ी क्या होती है? चुनाव से पहले बड़े से बड़े ने और इलाके के बड़े नेताओं ने सिर नवाया हाथ जोड़े स्वागत सत्कार किया? सभी ने देखा और जिन्होंने मौके पर नहीं देखा उन्होंने बाद में वीडियो क्लिप्स में देख लिया। आगे देखते रहेंगे और दिखाते रहेंगे।

अब सवाल आता है कि इतने तामझाम के बावजूद कितने आदमी थे?वीडियो क्लिप्स देखें या मौके पर उपस्थित थे। 

* ढाई हजार के लगभग कार्यकर्ता बूथ के अध्यक्ष। यदि बूथ के अध्यक्ष को संकल्प दिलाना जरूरी था तो समझें कि आधे अध्यक्षों ने तो संकल्प लिया ही नहीं और जिन्होंने संकल्प लिया उनमें से बूथ अध्यक्ष कम और नेता कार्यकर्ता सर्वाधिक रहे। एक नारे का उल्लेख जरूरी हो रहा है। एक बूथ दस यूथ। याद आया। अब जो ढाई हजार थे उनमें कितने यूथ थे? 


समधी से मिलना कोई बुरी बात नहीं है। ये परंपराएं रीति रिवाज होने चाहिए। अच्छे लगते हैं। यही हमारी सभ्यता संस्कृति है। 

* समधी के आसपास और  दूर-दूर तक यह प्रमाणित होते रहना कि फलां व्यक्ति का समाधि सम्राट जैसी पावर रखता है तो भी कोई बुरा नहीं। 

*  इस भयानक गर्मी लू के थपेड़ों के बीच में स्वागत सत्कार  के लिए इतने लोगों का भी एकत्रित होना बहुत बड़ी बात है। 

* चलो पावर दिखाई और यह भी बताया कि दूसरे राजा से बदला लेना है। उसकी सत्ता छीन लेनी है। उसकी सत्ता को पलटना है इसलिए सब एक बुलंद नारा दें। 

सबको जो कुछ मैंने ऊपर लिखा है वह नजर आ रहा है। मुझे भी आ रहा है। सरकारी अधिकारी जिस तरह से गाड़ी का सदुपयोग करता है उसी तरह से पार्टी का भी उपयोग हुआ लेकिन शिकायत कौन करे किस के आगे करे और यह शिकायत सुनी भी नहीं जाए। ऐसे पंगे में बड़े क्या छोटे क्या कोई भी पड़ना नहीं चाहता।


 हां,मुझे एक खटका और लग रहा है। हरियाले जिले में पंचायतों के चुनाव में ऐसा झटका लगा था कि सारे नेता और सारे कार्यकर्ता साफ हो गए। एक भी पेड़ पर पत्ता नहीं रहा। नौ जागीरें जिन पर सम्राट और राजा के होते दूसरे बैठ गए। 

दिल्ली के सम्राट और राजस्थान के राजा दोनों को मालूम हुआ कि कहीं भी प्रधान भी नहीं बना पाए। 

ऊपर से दिल्ली और दिल्ली के बाद पंजाब मैं जो झटका लगा हुआ है। उसका असर पंजाब से चिपते सीमा क्षेत्र में हुआ है। वो ताल और ठोक रहे हैं कि राजस्थान में भी कुश्ती लड़ेंगे। 

अब इस झटके को भी लोगों में प्रचारित करते हैं तो खुद की कमजोरी साबित होती है। यह कमजोरी भी साबित नहीं होने देना चाहते।


 इसलिए आठ दस दिन में खूब गुब्बारे फुलाए गए लेकिन इन गुब्बारों का जीवन केवल 2 दिन का है।

 चुनाव के समय दुबारा बहुत कुछ करना होगा और नए गुब्बारे फुलाने होंगे। उस समय ऐन मौके पर गुब्बारे भी ना जाने कौन फुलाए। शाही फरमान न जाने किसे मिले। अब स्वागत सत्कार वाले रह जाएं और पूजा कोई करके चुपचाप वरदान ले आए।

हमारे यहां के चुनाव से पहले हिमाचल और गुजरात के चुनाव हैं। 

वहां पर सम्राट की पावर कैसी साबित होगी उस हिसाब से फिर राजस्थान में गुब्बारे फुलाए जाएंगे। एक दृश्य भी लोगों ने नेताओं ने देखा।शेरनी की पावर सब पर भारी पड़ती अहसास करा रही थी। उसकी पावर का जयकारा।०0०

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दि.11 मई 2022.





करणीदानसिंह राजपूत,

(58 वर्ष से पत्रकारिता)

( राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत)

सूरतगढ़ ( राजस्थान)

94143 81356.

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